Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

नन्दीश्वर पूजा

July 29, 2020पूजायेंjambudweep

नंदीश्वर द्वीप पूजा



[अष्टान्हिका व्रत एवम नंदीश्वर पंक्ति व्रत में] 
 
अथ स्थापना
 
                                   (गीता छंद)
 
सिद्धांत सिद्ध अनादि अनिधन, द्वीप नंदीश्वर कहा।
मुनि वंद्य सुरनर पूज्य अष्टम-द्वीप अतिशययुत महा।।
वहाँ पर चतुर्दिक शाश्वते, बावन जिनालय शोभते।
प्रत्येक में जिनबिंब इक सौ-आठ सुर मन मोहते।।१।।
 
दोहा
 
 जिन प्रतिमा के जिनभवन, परमशांति के धाम।
आह्वानन कर पूजते, मिले आत्मविश्राम।।२।।
 
ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिंबसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
 
ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिंबसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
 
ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिंबसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
 
 
अथ अष्टक
 
 क्षीरोदधि का उज्ज्वल जल ले, कंचन झारी भर लाया हूँ।
जिनवर प्रतिमा के चरणों में, त्रयधारा देने आया हूँ।।
कंचन थाली में चंदन से, बावन जिनमंदिर की रचना।
बावन पुंजों को धर कर मैं, पूजूँ प्रभु लेकर तव शरणा।।१।।
 
ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।
 
 
 
 
मलयज चंदन कर्पूर मिला, भर कनक कटोरी लाया हूँ।
जिनवर प्रतिमा के चरणों में, चर्चन करके हर्षाया हूँ।।
कंचन थाली में चंदन से, बावन जिनमंदिर की रचना।
बावन पुंजों को धर कर मैं, पूजूँ प्रभु लेकर तव शरणा।।२।।
 
 ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
 
 
 
 
 
 
मोतीसम उज्ज्वल शालि पुंज, ले पुंज चढ़ाने आया हूँ।
निज का अक्षय पद शीघ्र मिले, बस ये ही इच्छा लाया हूँ।।
कंचन थाली में चंदन से, बावन जिनमंदिर की रचना।
बावन पुंजों को धर कर मैं, पूजूँ प्रभु लेकर तव शरणा।।३।।
 
 ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालयजिनबिम्बेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
 
 
 
मचकुंद कमल बेला गुलाब, बहु सुरभित पुष्पों को लाया।
निजगुण सुगंधि फैले जग में, चरणों में रखकर हर्षाया।।
कंचन थाली में चंदन से, बावन जिनमंदिर की रचना।
बावन पुंजों को धर कर मैं, पूजूँ प्रभु लेकर तव शरणा।।४।।
 
ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
 
 
 
 
पूरणपोली पेड़ा बरफी, पकवान बनाकर लाया हूँ।
सब उदर व्याधि के नाश हेतु, तव अर्पण कर सुख पाया हूँ।।
कंचन थाली में चंदन से, बावन जिनमंदिर की रचना।
बावन पुंजों को धर कर मैं, पूजूँ प्रभु लेकर तव शरणा।।५।।
 
  ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
 
 
 
 
 
दीपक ज्योती के जलते ही, सब अंधकार नश जाता है।
दीपक से तव पूजा करके, सज्ज्ञान उजेला आता है।।
कंचन थाली में चंदन से, बावन जिनमंदिर की रचना।
बावन पुंजों को धर कर मैं, पूजूँ प्रभु लेकर तव शरणा।।६।।
 
 ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
 
 
 
 
 
 
दशगंध धूप धूपायन में, खेवूँ मैं कर्म जला डालूँ।
यश सौरभ से दशदिश महके, निजआत्म गुणों को मैं पालूँ।।
कंचन थाली में चंदन से, बावन जिनमंदिर की रचना।
बावन पुंजों को धर कर मैं, पूजूँ प्रभु लेकर तव शरणा।।७।।  
 
ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
 
 
 
लीची अंगूर अनार आम, बहु सरस फलों को लाया हूँ।
तव चरणों में अर्पण करके, शिवफल के हित ललचाया हूँ।।
कंचन थाली में चंदन से, बावन जिनमंदिर की रचना।
बावन पुंजों को धर कर मैं, पूजूँ प्रभु लेकर तव शरणा।।८।।
 
  ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा।
 
 
 
 
 
जल चंदन अक्षत पुष्प चरू, वर दीप धूप फल लाया हूँ।
तव चरणों में यह अर्घ समर्पण, करके अति हर्षाया हूँ।।
कंचन थाली में चंदन से, बावन जिनमंदिर की रचना।
बावन पुंजों को धर कर मैं, पूजूँ प्रभु लेकर तव शरणा।।९।।
 
 ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
 
 
 
सोरठा
 
 अमल वापिका नीर, जिनपद धारा मैं करूँ।
शांति करो जिनराज, मेरे को सबको सदा।।१०।।
 
                                               शांतये शांतिधारा।
 
कमल केतकी फूल, हर्षित मन से लायके।
जिनवर चरण चढ़ाय, सर्वसौख्य संपति बढ़े।।११।।
 
                                                    दिव्य पुष्पांजलि:।
 

 

जाप्य-ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो नम:।  

 
 
 
 

जयमाला

दोहा
 
 नंदीश्वरवरद्वीप में, अकृत्रिम जिन सद्म।
उनमें जिनप्रतिमा अमल, नमूँ नमूँ पदपद्म।।१।।
 
शंभु छंद
 
 जय जय नंदीश्वर पर्व जगत् में, महापर्व कहलाता है।
जय जय बावन जिनमंदिर से, इंद्रों के मन को भाता है।।
जय जय जय रत्नमयी प्रतिमा, शाश्वत हैं आदि अंत विरहित।
जय जय प्रत्येक मंदिरों में, इक सौ अठ इकसौ आठ प्रमित।।२।।
चारों दिश में एकेक कहे, अंजनगिरि अतिशय ऊँचे हैं।
इनके चारों जिनमंदिर को, पूजत ही दु:ख से छूटे हैं।।
अंजनगिरि के चारों दिश में, बावड़ियाँ एक एक सोहें।
इन सोलह बावड़ियों के मधि, दधिमुख पर्वत सुरमन मोहें।।३।।
इनके सोलह जिनमंदिर की, हम नित्य वंदना करते हैं।
जिनप्रतिमाओं की अर्चाकर, निज आत्म संपदा भरते हैं।।
सोलह बावड़ियों के बाहर, दो कोणों पर दो रतिकर हैं।
इन बत्तिस रतिकर पर्वत पर, शाश्वत जिनमंदिर रुचिकर हैं।।४।।
इन बत्तिस रतिकर मंदिर के, जिनबिंबों को मैं नित पूजूँ।
चउ सोलह बत्तिस के मिलकर, बावन जिनगृह सबको पूजूँ।।
अंजनगिरि नीलमणी सम हैं, दधिमुख नग दधिसम श्वेत कहे।
रतिकर नग स्वर्णिम वर्ण धरें, ये शाश्वत पर्वत शोभ रहे।।५।।
प्रत्येक वर्ष में तीन बार, आष्टान्हिक पर्व मनाते हैं।
सुरगण नंदीश्वर में जाकर, पूजा अतिशायि रचाते हैं।।
हम वहाँ नहीं जा सकते हैं, अतएव यहीं से नमते हैं।
अर्चन परोक्ष से ही करके, भव भव के पातक हरते हैं।।६।।
चारणऋद्धी धर ऋषिगण भी, इन प्रतिमाओं को ध्याते हैं।
जिनवर के गुणमणि नित गाते, फिर भी नहिं तृप्ती पाते हैं।।
यद्यपि इनका परोक्ष वंदन, पूजन है तो भी फल देता।
भावों से भक्ती की महिमा, परिणाम विशुद्धी कर देता।।७।।
मुनिराज भाव से शुक्लध्यान, ध्याते शिवपुरश्री पा जाते।
तब भला परोक्ष भक्ति करके, क्यों नहीं महान पुण्य पाते।।
जिनप्रतिमा चिंतामणि पारस, जिनप्रतिमा कल्पवृक्ष सम हैं।
ये केवल ‘‘ज्ञानमती’’ देने में, भी तो अतिशय सक्षम हैं।।८।।
 
दोहा
 
 श्रीनंदीश्वर द्वीप की, महिमा अपरंपार।
जो श्रद्धा से नित जजें, पावें सौख्य अपार।।९।।
 
 ॐह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपसंबंधिद्वापंचाशत्-जिनालय-जिनबिम्बेभ्यो जयमाला पूर्णार्घंनिर्वपामीति स्वाहा।
 
                                                                                              शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
 
गीताछंद
 
 जो भव्य आष्टान्हिक परब में, आठ दिन पूजा करें।
वरद्वीप नंदीश्वर जिनालय-बिम्ब के गुण उच्चरें।।
वे सर्वसुखसंपत्ति ऋद्धी-सिद्धि को भी पाएंगे।
सज्ज्ञानमति की गुणसुरभि को, विश्व में फैलाएंगे।।१०।।
 
।।इत्याशीर्वाद:।।
 
 
 
Tags: Vrat's Puja
Previous post आचार्य श्रीवीरसागर महाराज की पूजन Next post नमिनाथ पूजा

Related Articles

सम्मेदशिखर पूजन

July 25, 2020jambudweep

आचार्य श्रीवीरसागर महाराज की पूजन

July 29, 2020jambudweep

श्री शांतिनाथ जिनपूजा!

February 19, 2017jambudweep
Privacy Policy