Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

नवदेवता

February 22, 2017जैनधर्मjambudweep

नवदेवता


अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य और चैत्यालय इन्हें नवदेवता कहते हैं।
पाँचों परमेष्ठी का लक्षण ऊपर कहा जा चुका है।
अरिहंत भगवान के द्वारा कहे गये धर्म को जिनधर्म कहते हैं। इसका मूल जीवदया है। जिनेन्द्र देव द्वारा कहे गये एवं गणधर देव आदि ऋषियों के द्वारा रचे गये शास्त्र को जिनागम कहते हैं। अरिहंत देव की प्रतिमा को जिनचैत्य कहते हैं और जिनमंदिर को चैत्यालय कहते हैं।
जिनमंदिर में जाकर जिन प्रतिमा के दर्शन करने से महान पुण्यबंध होता है। जिनेन्द्र भगवान के दर्शन१करने के विचार मात्र से एक उपवास का फल होता है, मंदिर जाने के लिए उद्यम करने से दो, आरंभ करने से तीन, गमन करने पर चार, कुछ आगे जाने पर पाँच, मध्य में पहुँचने पर पन्द्रह, चैत्यालय का दर्शन होने पर एक मास, मंदिर में पहुँचने पर छह मास, द्वार में प्रवेश करने पर एक वर्ष, प्रदक्षिणा देने पर सौ वर्ष, जिनेन्द्र भगवान का दर्शन करने पर हजार वर्ष के उपवासों का फल होता है, ऐसा जानकर प्रतिदिन देव दर्शन करना चाहिए।

Tags: Bal Vikas Part-2
Previous post स्थावर जीव Next post 07. वर्तमानकालीन तीर्थंकरों की पंचकल्याणक तिथि!

Related Articles

पंचगुरुभक्ति

August 10, 2013jambudweep

Filtered Water

May 7, 2013jambudweep

पंचेन्द्रिय तिर्यंच के भेद

February 2, 2014jambudweep
Privacy Policy