Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

नारायण श्रीकृष्ण और मयूरपिच्छ!

July 10, 2017विशेष आलेखHarsh Jain

नारायण श्रीकृष्ण और मयूरपिच्छ


नारायण श्रीकृष्ण का जैनग्रंथ में स्वरूप

‘सुपीतवासोयुगलं वसानं वनेवतंसीकृतवर्हिर्वहम्। अखण्डनीलोत्पलमुण्डमालं सुकण्ठिकाभूषितकम्बुकण्ठम्।।’
(हरिवंशपुराण, आचार्य जिनसेन, ३५/५५/४५५, ई. ७८३)
अर्थ — जो पीले रंग के दो वस्त्र पहने हुए थे, वन के मध्य में मयूर—पिच्छकी कलंगी लगाये हुए थे, अखण्ड नील कमल की माला जिनके गले में भी, जिनका शंख के समान सुन्दर कण्ठ एवं उत्तम कण्ठी से विभूषित थे।
‘फलप्रवालस्तबकसुमन: पिच्छधातुभि:। काचगुश्जामणिस्वर्णभूषिता अप्यभूषयन्।।’
अर्थ — यद्यपि वे सभी गोप बालक काच, गुंजामणि तथा सुवर्ण के आभूषणों से आभूषित थे तथापि उन्होंने अपने आपको विविध प्रकार के फल—पत्ते, पुष्पगुच्छ, मयूरपिच्छ और गेरु आदि धातुओं से अलंकृत कर रखा था।
‘बहिपीडं नटवरवपुं कर्णयो: कर्णकारं। बिभद्र वास: कनककपिशं वैजयन्ती च मालाम्।।
रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतर्कीित:।।’
(वही, १०/२१/०५)
अर्थ — मोर पंख का मुकुट धारण किए, कानों में कनेर का फूल लगाए, सुवर्ण के समान दीप्त पीताम्बर पहने, गले में वैजयन्ती माला धारण किए नटवर श्रीकृष्ण ने बांसुरी के छिद्रों को अपने अधरामृत से पूर्ण करते हुए ग्वाल बालों के साथ अपने चरणचिन्हों से सुशोभित वृन्दावन में प्रवेश किया।
‘चूतप्रवालबर्हस्तबकोत्पलाब्ज, मालानुपृक्तपरिधानिविचित्रवेषौ। मध्ये विरेजतुरलं पशुपालगोष्ठ्यां रेग्यथा नटवरौ क्व च गायमानौ।।’
(वही, १०/२१/०८)
अर्थ — अहो नूतन आम्र पल्लव, मयूरपिच्छ, पुष्प गुच्छ तथा स्थल जल में उत्पन्न होने वाले कमलों की मालाओं को धारण किए हुए बलराम और श्रीकृष्ण जब कभी गोपबालों के बीच गान करते तब यही प्रतीत होता कि कोई दो श्रेष्ठ नट रंगभूमि में गा रहे हैं।
‘श्यामं हिरण्यपरिधिं वनमाल्यबर्हधातुप्रवालनटवेषमनुव्रतांसे।
विन्यस्तहस्तमितरेण धुनानमब्जं कर्णेत्पलालककपोलमुखाब्जहासम्।।’
अर्थ — नारायण का श्याम शरीर था, वे स्वर्ण वर्ण का पीताम्बर पहने थे, नवीन पुष्पों की माला, मयूरपिच्छ, चित्र—विचित्र धातुओं एवं नव पल्लवों से अपना नटवर वेष बनाए हुए थे।‘
बर्हिणस्तबकधातुपलाशै: वद्धमल्लपरिबर्हविडम्ब:। र्किहचित् सबल आलि स गोपैर्गा: समाह्नयति यत्र मुकुन्द:।।’
(वही, १०/३५/०६)
अर्थ — हे सखी ! जब कभी मयूरपिच्छ, पुष्पगुच्छ, गेरु आदि धातुओं और कोमल पल्लवों से पहलवानों का वेष बनाए हमारे श्रीकृष्ण, बलरामजी एवं अन्य ग्वालबालों के साथ गउवों को पुकारते हैं तब वायु के द्वारा उड़ाए गए उनके चरणरज को पाने की लालसा से यमुना जी की गति तक रूक जाती है। सारांश यह है कि जनसमूह को विदित है कि नारायण श्रीकृष्ण के जन्म के सुअवसर पर जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है, जिसमें बच्चों के माथे पर मयूर पंख लगाकर उनके संस्कार किये जाते हैं एवं निग्र्रन्थ साधु भी मयूरपिच्छी को जीव रक्षा हेतु उपयोग में लाते हैं। यह परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही हे, जिसे अब परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। इस बात पर सरकार के मंत्री व उच्चाधिकारियों को गहराई से चिन्तन करना चाहिये। और हमारे देश की संस्कृति की रक्षा करनी चाहिये। इसलिये मयूरपंख पर अनुचि रूप से प्रतिबन्ध न लगाया जाये और इस सम्प्रदाय—निरपेक्ष राज्य में वैष्णव धर्म एवं दिगम्बर धर्म की परम्परा में हस्तक्षेप न किया जाये।
पिच्छि—कमण्डलु पेज नं ३०-३७

राष्ट्रीय पक्षी ‘मयूर’

भारत का राष्ट्रीय पक्षी ‘मयूर’ (पावो क्रिस्टेटस) है। हंस के आकार के इस रंग—बिरंगे पक्षी की गर्दन लंबी, आँख के नीचे एक सपेâद निशान और सिर पर पंखे के आकार की कलगी होती है। मादा की अपेक्षा नर मयूर अधिक सुंदर होता है। उसकी चमचमाती नीली गर्दन, वक्ष ओर कांस्य हरे रंग की लगभग २०० पंखुड़ियों वाली भव्य पूछ हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रही है। मादा मयूर का रंग भूरा होता है। वह नर मयूर से थोड़ी छोटी होती है और उसकी पूंछ बड़ी नहीं होती। नर मयूर अपने पंखों को फैलाकर अपने नृत्य से बड़ा ही लुभावना दृश्य पैदा करता है।
(भारत २०१० से साभार उद्धृत)
Previous post चौदह मार्गणा! Next post तत्वार्थश्लोकवार्तिकभाष्य में द्रव्य लक्षण!
Privacy Policy