

सुरनर वंदित पंचमेरु नरलोक में। 
सुरसरिता का जल स्वच्छ, बाहर मल धोवे।


शशि द्युति सम उज्ज्वल धौत, अक्षत थाल भरें। 
हैं वकुल कमल कुसुमादि, सुरभित मनहारी। 
घृत शर्कर युत पकवान, लेकर थाल भरें। 




दाड़िम केला अंगूर, उत्तम फल लाऊँ। 




परमानंद जिनेन्द्र की, शाश्वत मूर्ति अनूप।