जब मुनी बैठते है, ख्ड़े हो जाते है , सो जाते है अपने हाथ और पाव पसारते है , संकोच लेते है, जब वे आन शयन करते है, कर्वट बदलते है, तब वे अपना शरीर पिच्छिका लोगो में यति विशयक विश्वास उत्पन्न करने का चिन्ह है। तथा पिच्छीका धारण करने से वे मुूनिराज प्राचीन मुनियों के प्रति निधि स्वरुप है ऐसा सिद्ध होता है।