गुरुओं का सम्मान जहाँ पर, करे नित्य भवि प्राणी।
तारे और सितारे उनके, श्री गुण गाते भारी।।१।।
जब गुरु भक्ति से निश्चित ही, चिंतामणि रत्न मिले हैं।
फिर कल्पवृक्ष सम सुंदर, जन-जन पंकज क्यों न खिले हैं।।२।।
गुलाब के कांटों में सदा ही, फूल खिला करते हैं।
पूज्य गणिनी ज्ञानमती जी की वाणी में, अमृत झरा करते हैं।।३।।
यह है प्राचीन शुद्ध परम्परा, आचार्य गुरुवर शांतिसागर जी की।
उनके स्मरण को हम सभी, कभी नहीं भुला सकते हैं।।४।।
भव्य जनों को मोक्ष मार्ग में, लगा लगा कर करें सुधार।
ऐसी गणिनी ज्ञानमती जी, ज्ञान दान दे करो उपकार।।५।।
जिन श्रुत गुरु की भक्ति करके, श्रद्धा विनय वात्सल्य गुणधार।
जगह जगह के तीर्थ क्षेत्र की, रक्षा कर मंदिर निर्माण।।६।।
देश राष्ट्र की उन्नति करके, कर उत्साह समाज सुधार।
ऐसी गणिनी ज्ञानमती जी, करें नित्य जग जन उद्धार।।७।।
साहित्य रचना के माध्यम से, खूब किया जिनधर्म प्रचार।
अभयमती को आशीष देकर, मुझ पर कर दो माँ उपकार।।८।।