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प्रत्यक्ष प्रमाण!

February 12, 2014जैनधर्मaadesh
[[श्रेणी:प्रमाण_का_वर्णन]] ==

प्रत्यक्ष प्रमाण


विशद ज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं। उसके दो भेद हैं-देशप्रत्यक्ष और सकल प्रत्यक्ष। देश प्रत्यक्ष के अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान ऐसे दो भेद हैं और सकल प्रत्यक्ष में एक केवलज्ञान ही है

। अवधिज्ञान – द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा से रूपी पदार्थों को स्पष्ट जानना अवधिज्ञान है। इसके तीन भेद हैं-देशावधि, परमावधि और सर्वावधि। देशावधिज्ञान देवों के और नारकियों के होता है वह भवप्रत्यय है तथा क्षयोपशम के निमित्त से होने वाला अवधिज्ञान मनुष्य और तिर्यञ्चों में पाया जाता है वह गुण प्रत्यय कहलाता है। यह ज्ञान असंयत सम्यग्दृष्टि और देशविरत मनुष्यों में भी हो सकता है। परमावधि और सर्वावधिज्ञान तद्भव मोक्षगामी चरम शरीरी मुनियों को ही होते हैं। मन:पर्यय ज्ञान – मन:पर्यय ज्ञानावरण और वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाला ज्ञान मन:पर्यय ज्ञान है। यह ज्ञान मानुषोत्तर पर्वत के अन्तर्गत पर के मन में स्थित पदार्थों को स्पष्ट जान लेता है। इसके दो भेद हैं-ऋजुमति और विपुलमति। ऋजु अर्थात् सरल मन, वचन, काय के अर्थ को जानने वाला ऋजुमति है और कुटिल मन, वचन, कायगत अर्थ को जानने वाला विपुलमति है। ऋजुमति ज्ञान होकर छूट भी सकता है किन्तु विपुलमति ज्ञान छूटता नहीं है। यह चरम शरीरी को ही होता है। वैसे तो मन:पर्यय ज्ञान वृद्धिंगत चारित्रधारी, किसी-एक ऋद्धि वाले, संयमी मुनि को ही होता है। सभी को नहीं हो सकता है। केवलज्ञान – जगत्त्रय, कालत्रयवर्ती, समस्त पदार्थों को युगपत् जानने वाला केवलज्ञान है। इस केवलज्ञान रूपी दर्पण में सम्पूर्ण लोकाकाश और अलोकाकाश एक साथ झलकता है।

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