बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के १३१ वें संयम वर्ष ( २००३ -२००४ ) के अवसर पर इस पुस्तक का प्रकाशन हुआ | इसमें महाराज के जीवनचरित्र का वर्णन है , जिन्होंने बीसवीं सदी में जन्म लेकर धरती पर लुप्तप्राय हो रही मुनि परम्परा को पुनरुज्जीवित किया था तथा जिन्होंने वास्तव में शान्ति के सागर बनकर समस्त प्राणियों को शान्ति का उपदेश प्रदान किया था |