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प्रभु पतित पावन!

November 25, 2013जिनेन्द्र भक्तिjambudweep

प्रभु पतित पावन ..( स्तुति )


प्रभो! पतित पावन मै अपावन, चरन आयो शरण जी ।

यों विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन—मरन जी ।।

तुम ना पिछान्या आन मान्या, देव विविध प्रकार जी ।

या बुद्धि सेती निज न जान्यो, भ्रम गिन्यो हितकार जी ।।

भव विकट वन में करम वैरी, ज्ञान धन मेरो हर्यो ।

सब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय, अनिष्ट गति धरतो फिर्यो ।।

धन घड़ी यों धन दिवस यों ही, धन जनम मेरो भयो ।

अब भाग्य मेरो उदय आयो, दरश प्रभु जी को लख लयो ।।

छवि वीतरागी नगन मुद्रा, दृष्टि नासा पै धरैं ।

वसु प्रातिहार्य अनन्त गुणयुत, कोटि रवि छवि को हरैं ।।

मिट गयो तिमिर मिथ्यात्व मेरो, उदय रवि आतम भयो ।

मो उर हरष ऐसो भयो, मनु रंक चिन्तामणि लयो ।।

मैं हाथि जोड़ नवाय मस्तक, वीनऊँ तुम चरण जी ।

सर्वोत्कृष्ट त्रिलोकपति जिन, सुनहुँ तारण तरण जी ।।

जाचूँ नहीं सुरवास पुनि नर राज परिजन साथ जी ।

‘बुध’ जाचहूँ तुम भक्ति भव-भव दीजिये शिवनाथ जी ।।

Tags: Stuti
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