धर्मप्रिय बंधुओं!
यह हम सभी का महाभाग्य है कि ८४ लाख योनियों में भ्रमण करते हुए वर्तमान में हम जैनधर्म के अनुयायी बनकर भगवान ऋषभदेव आदि तीर्थंकर परम्परा के पूजक हैं। अत: हम सभी को इस जीवन में सतत जिनेन्द्र भक्ति के साथ पुण्यार्जन करते रहना परम आवश्यक है। साथ ही आत्मकल्याण हेतु अभिषेक, पूजन आदि श्रावक के कर्तव्य और संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन हेतु दान का हमारे ग्रंथों में अत्यधिक महत्व बताया गया है। इन्हीं बातों के साथ अब हम सबके मध्य सर्वोच्च जैन साध्वी गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी ने शाश्वत तीर्थंकर जन्मभूमि महातीर्थ अयोध्या के नवविकास हेतु समाज को प्रेरित किया है। अत: श्री दिगम्बर जैन अयोध्या तीर्थक्षेत्र कमेटी के अन्तर्गत इस शाश्वत तीर्थभूमि के विकास एवं नवनिर्माण की सुन्दर योजनाएॅँ बनायी गयी हैैं, जिसमें आप यथायोग्य तन-मन-धन न्यौछावर करके अपने जीवन को धन्य करें, इसी अपेक्षा के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत है महातीर्थ अयोध्या के संदर्भ में यह पाती।
-जगद्गुरु पीठाधीश
स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी
(अध्यक्ष)