बेसमेंट में दफ्तर का होना वास्तु की दृष्टि से उन्नति के लिये प्रतिकूल है। सिर्फ दफ्तर की स्थिति ही नहीं, बल्कि बैठने की जगह, बैठने की दिशा, बैठने की जगह के इर्दगिर्द का निर्माण, बैठने की जगह से आसपास दिखने वाले दृश्य, खिड़की, दरवाजा आदि की स्थिति तथा दफ्तर के प्रवेश द्वारा आदि तमाम बातों का वास्तु की दृष्टि से बहुत महत्व है। वास्तु दृष्टि के मुताबिक उन्नति के लिये जरूरी है कि दफ्तर में बैठने की जगह ही नहीं बैठने की दिशा भी अनुकूल होनी चाहिए। दफ्तर का प्रवेश द्वार ही नहीं उसका बाहरी और भीतरी निर्माण, दफ्तर की ज्यामितीय संरचना, बैठने के आसपास का वातावरण आदि कई चीजों का वास्तु से जबर्दस्त रिश्ता होता है। वास्तु की दृष्टि से दफ्तर की स्थिति, उसमें बैठने की दिशा यूं होनी चाहिए। बेसमेंट में दफ्तर का होना शुभ नहीं होता। दफ्तर की बजाय बेसमेंट में स्टोर होना ज्यादा शुभ होता है। दफ्तर का मुंह उत्तर या पूरब में खुले तो वास्तु की दृष्टि से यह सही होता है। दक्षिण, उत्तर—पश्चिम , दक्षिण —पश्चिम , पश्चिम तथा बीच के स्थान पर बनें बेसमेंट के ऑफिस तो कतई शुभ नहीं होते। दफ्तर में मालिक जहां बैठे, उसकी पीठ के पीछे खिड़की नहीं होनी चाहिए। कंधे पर भी खिड़की अशुभ है। दफ्तर में मालिक के बैठने की जगह पर सिर के ऊपर जाल, पीठ के पीछे और कंधे के बगल में दरवाजा या खिड़की अथवा रोशनदान ये सभी चीजें नुकसानदायक हैं। वास्तु की दृष्टि से दफ्तर गली के ऊपर होना भी अशुभ है। अगर दफ्तर हो भी तो गली के ऊपर बैठना, बाहर की तरफ देखना, वास्तु की दृष्टि से यह स्थिति उन्नति में बाधक है। गलियारे की सीध में बैठना भी वास्तु की दृष्टि से सही नहीं है। आफिस में वास्तु की दृष्टि से जब आप बैठे तो मुंह हमेशा उत्तर की तरफ होना चाहिए या फिर पूरब की ओर । उत्तर पूर्व की स्थिति भी बेहतर है। वास्तु की दृष्टि से आफिस के प्रमुख या मालिक के बैठने की जगह पर पीठ के पीछे ठोस दीवार का होना आवश्यक है। खिड़की कदापि नहीं होना चाहिए। हां, मुंह के बिल्कुल ठीक सामने खिड़की होना फिर भी फलदायी है।