ब्रह्मचर्य की महिमा का गुणगान भारतीय संस्कृति, विशेषत: जैन धर्म की विशेषता रही है। ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ हैं ‘निर्मल ज्ञान स्वरूप आत्मा’ और उस आत्मा में लीन होने का नाम ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य आत्मा की आंतरिक शक्ति है, अनुशासित आचरण है। जैन धर्म एवं दर्शन में ब्रह्मचर्य के द्वारा अब्रह्म पर नियंत्रण का विस्तार से वर्णन है। ब्रह्मचर्य की महिमा का गुणगान करते हुए कहा गया है—
एकमेव व्रतं श्लाघ्यं ब्रह्मचर्य जगत्त्रये। यद् विशुद्धि सामापन्ना: पूजयन्ते पूजितैरपि।।
अर्थात् एक ब्रह्मचर्य व्रत ही तीनों लोकों में प्रशंसनीय है जो कि विशुद्धि को प्राप्त हुए पूज्य पुरूषों के द्वारा भी पूजा जाता है। अनगार धर्मामृत में कहा गया है— ‘जो पुरूष ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं, वे ही पुरूष सच्चे सुख—मोक्ष सुख को प्राप्त करते हैं।’ ‘ब्रह्मणि आत्मनि चरणं ब्रह्मचर्यं ’ स्वयं की आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य है। इन्द्रिय संयम ही ब्रह्मचर्य है। आचार्यों ने कहा है जिस तरह रोग से मुक्ति पाने के लिये औषधि का सेवन आवश्यक है, उसी तरह भव रूपी रोग से मुक्त होने के लिये ब्रह्मचर्य की परम आवश्यकता है। ‘ब्रह्मव्रते परिनिष्ठो भव्य जीवो लौकान्तिकों भवेत्’ ब्रह्मचर्य में निष्ठ भव्य जीव एक भवावतारी लौकान्तिक देव होता है । व्यवहार नय और निश्चय नय की अपेक्षा से मैथुन त्याग की क्रिया को व्यवहार ब्रह्मचर्य और अपने विशुद्ध आत्म स्वरूप में ही रमण करने का नाम निश्चय ब्रह्मचर्य है। अणुव्रत, महाव्रत, स्वदारसंतोषव्रत, ब्रह्मचर्य प्रतिमा आदि ब्रह्मचर्य के ही स्वरूप हैं/ नाम हैं। आचार्य प्रणीत ग्रंथों में ब्रह्मचर्य की महिमा का गुणगान किया गया है। प्रथमानुयोग के अनेक कथानक ब्रह्मचर्य की महत्ता को प्रकट करते हैं। ब्राह्मी सुंदरी ने ब्रह्मचर्य व्रत को धारण कर नारी की गरिमा बढ़ाई। आज भी अनेक नारियां उनकी परम्परा का निर्वहन करती हुई व्रत को धारण कर अपनी स्त्री पर्याय को सफल बना रही हैं।’ —कहा गया है— ‘‘सीता सुरै : सदा पूज्या जाता मंदोदरी तथा शीलात् मदन मंजूषा जुष्टा यौग्यैगुणेरभूत्’’ शील के प्रभाव से सीता, मन्दोदरी, रयणमंजूषा इत्यादि सतियां देवों द्वारा पूजी गयी एवं गुणों को प्राप्त हुई थीं। सती सीता, मनोरमा, अनंगसरा, अंजना, चंदना, अनंतमती, सुलोचना आदि की जय जयकार इसी व्रत के कारण अनेक हुई थी । इसी व्रत के कारण देवता भी इनकी सहायता करने आये। इसी व्रत के अनंगसरा, अंजना , चंदना, अनंतमती, सुलोचना आदि की जय जयकार इसी व्रत के कारण हुई थी । इसी व्रत के कारण अनेक बार देवता भी इनकी सहायता करने आये। इसी व्रत के कारण अनेक बार देवता भी इनकी इसी व्रत के कारण विजय—विजया सेठ सेठानी प्रसिद्ध हो गये। कुलभूषण —देशभूषण ने एक क्षण की देर नहीं की और व्रत को अपनाकर वैराग्य पथ पर चल पड़े। सुदर्शन सेठ के स्वदार संतोष व्रत के ही कारण सूली सिंहासन बन गयी। अनेकानेक उदाहरण हैं जब ब्रह्मचर्य के कारण मानव पर्याय सफल बनी। कहा भी गया है।
‘‘शील रतन सबसे बड़ा सब रत्नों की खान’ तीन लोक की संपदा रही शील में आन’’
अन्य धर्मों में भी ब्रह्मचर्य व्रत को महत्व दिया गया है। वीर शिवाजी, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी आदि अनेक उदाहरण हैं जब उन्होंने ब्रह्मचर्य की महिमा को बताया। इसके विपरीत कामवासना में फसकर गर्त में गिरने वालों के भी अनेक उदाहरण हैं। जैसे रावण यशोधरा (कुवडे के संग) चारूदत्त (वेश्या) धनश्री आदि। किसी भी देश या समाज का युवा वर्ग उसकी संपदा होती है। पर आज के परिप्रेक्ष्य में ब्रह्मचर्य व्रत को ध्यान में रखकर यदि हम दृष्टिपात करें, तो हम पाते हैं कि यह पीढ़ी यद्यपि साहस और बुद्धि से सम्पन है पर शांति से अशांति की ओर, सरलता से विषमता की ओर, सादगी से विलासता की ओर, संतोष से असंतोष की ओर यर्थाथ से दिखावा की ओर बढ़ रही है। भौतिकवाद ने सुखसुविधाओं के ढेर लगाकर मनुष्य को विलासी बना दिया और भोगवादी संस्कृति ने उसके विवेक पर परदा डालकर उसे विषय भोगों की उस अंधी दौड़ में शामिल कर दिया जिसका कोई अंत नहीं है। युवाओं की ही क्या कहें आज मानवीय संबंधों में बिखराव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। सामाजिक मूल्य, पारिवारिक रीति—रिवाज, संस्कार टूट रहे हैं। परिवार को सूत्र में बांधने वाले रिश्ते तार—तार हो रहे हैं। आये दिन आने वाली मीड़िया एवं अखबारों की खबरें देखकर सुनकर/पढ़कर लगता है कहाँ जा रहे हैं हम ? बाप ने किया बेटी को गर्भवती, महिला के साथ हुआ सामूहिक बलात्कार, कलयुगी भाई ने किया बहन के पवित्र रिश्ते को तार—तार, ससुर ने डाला, बहु की इज्जत पर डाका शिक्षक ने किया छात्रा का यौन शोषण, दो वर्ष की मासूम हुई हैवानियत का शिकार, चलती कार में गैंग रेप, पंचायत ने दिया बलात्कार करने का फैसला, अस्पताल के पीछे मिले सैंकडों कन्या भ्रूण लड़की पर फेंका तेजाब, दो प्यार करने वालों का सरे आम सिर कलम किया गया, मंत्री की रासलीला, महात्वाकांक्षा की भेंट चढ़ी एक और बाला, सदन में जनप्रतिनिधि मोबाइल पर नग्न तस्वीर देखते हुए पकड़े गये, संत बाबा फंसे यौन आरोप में ? इंटरनेट की साइटों ने की अनेक जिंदगिया बरबाद , बढते हुए ई अपराधों के जाल में अनेक युवा फंसे। अनगिनत ये शीर्षक रोज पढ़ने सुनने और देखने को मिल रहे हैं। सामाजिक मर्यादायें एवं मानवीय रिश्तों की टूटती गरिमायें, सब हमारी मानसिक विकृतियों को दर्शा रही हैं और दर्शा रही हैं हमारी संयम हीनता को। यह सच है कि मनुष्य अनादिकाल से कामभोग का दास बना हुआ है। समस्त वासनाओं में तीव्र काम वासना है। अन्य इन्द्रियों का दमन करना तो सम्भव है पर कामेन्द्रिय को वश में करना कठिन है। अनादिकाल से हम भोग—भोग रहे है क्या कभी इच्छायें शांत हुई हैं। हमारे आचार्यों ने बार—बार कहा है कि असंयम ही हमारे दुखों का कारण है ।कामातुर इंसान का विवेक नष्ट हो जाता है वह पशुतुल्य हो जाता है इसीलिये धर्मगुरुओं ने काम वासनाओं को जीतने के लिये ब्रह्मचर्य का उपदेश दिया है। वे कहते हैं दो ही मार्ग हैं या तो ब्रह्मचर्य की साधना करो, श्रमण मार्ग अपनाओ या गृहस्थ धर्म का पालन करो। गृहस्थों को स्वदारसंतोष व्रत पालन करने को प्रेरित किया गया है।
वस्तुत:देखा जाये तो आज का वातावरण और दिनचर्या इस तरह से हो गयी है कि हम पाँचों इन्द्रिय और मन के विषयों के दास होते जा रहे हैं। दिन भर अनंत इच्छाओं का सागर हमारे मन में लहराता है हम वाणी और काया की अपेक्षा मन से अधिक पाप करते हैं। आचार्यों ने जिस नारी देह की कटु निंदा की उससे दूर रहने को कहा, वही नारी देह आज की उपभोक्ता वादी संस्कृति का मुख्य बिंदु बन गयी है। जिस स्त्री देह को मांस का पिण्ड, आंखों को दो गड्डे आदि कहकर हेय कहा इसी स्त्री देह की खूबसूरती पर सारा विश्व केन्द्रित हो रहा है। जितना उपयोग और उपभोग नारी का आज विज्ञापन आदि के माध्यम से हो रहा है उतना कभी नहीं हुआ। कौन से बालों के जुऐं कौन सी घिन देह और कौन सी विषवेल नारी आज शैम्पू से लहराते बाल, खुशबु, बिखेरती, जलवा दिखाती, नग्नता का प्रदर्शन करती नारी अपनी देह को अधिकार सुविधा और हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं/ हो रही है। इसी देह प्रदर्शन ने जहाँ युवा पीढी को बहकाया वहीं सामाजिक ताना बाना एवं पारिवारिक मूल्यों को भी चोट पहुंचायी है।