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भरत-ऐरावत के विजयार्ध के कूटों के नाम

July 18, 2017स्वाध्याय करेंjambudweep

भरत-ऐरावत के विजयार्ध के कूटों के नाम


अथ भरतैरावस्थविजयार्धकूटान् तत्रस्थदेवांश्च गाथाचतुष्टयेनाह—
 
सिद्धं दक्खिणअद्धादिमभरहं खंडयप्पवादमदो।
तो पुण्णभद्द वेयड्ढकुमारं माणिभद्दक्खं१।।७३२।।
तामिस्सगुहगमुत्तरभारहकूडं च वेसवण चरिमं।
सिद्धुत्तरद्धतामिस्सादिमगुहगं च माणिभद्दमदो।।७३३।।
तो वेयड्ढकुमारं पुण्णादीभद्द खंडयपवादं।
दक्खिणरेवतअद्धं वेसवणं पुव्वदो दुवेयड्ढे।।७३४।।
सिद्धं दक्षिणार्धादिमभरतं खण्डप्रपातमतः।
ततः पूर्णभद्रं विजयार्धकुमारं माणिभद्राख्यं।।७३२।।
तामिश्रगुहमुत्तरभरतकूटं च वैश्रवणं चरमं।
सिद्धोत्तरार्धतामिश्रादिमगुहं च माणिभद्रमतः।।७३३।।
ततो विजयार्धकुमारं पूर्णादिभद्रं खण्डप्रपातं।
दक्षिणैरावतार्धं वैश्रवणं पूर्वतः द्विविजयार्धे।।७३४।।
सिद्धं। सिद्धकूटं दक्षिणार्धभरतं खण्डप्रपातं,
ततः पूर्णभद्रं विजयार्धकुमारं माणिभद्राख्यं।।७३२।
। तामिस्स। तामिस्रगुहं उत्तरभरतकूटं चरमं वैश्रवणं।
इत उपर्यैरावतविजयार्धकूटानि सिद्धकूटं उत्तरार्धैरावतं तमिस्रगुहं माणिभद्रमतः।।७३३।।
तो। ततो विजयार्धकुमारं पूर्णभद्रं खण्डप्रपातं
दक्षिणैरावतार्धं वैश्रवणं ९ एतानि कूटानि १८ भरतैरावतस्थयोर्विजयार्धयोः भवन्ति।।७३४।।
वंचणयाणि खंडप्पवादए णट्ठमाल तामिस्से।
कदमालो छक्वूकूडे वसंति सगणामवाणसुरा।।७३५।।
क्रञ्चनमयानि खण्डप्रपाते नृत्यमालः तमिस्रे।
कृतमालः षट्कुटेषु वसंति स्वकनामवानसुराः।।७३५।।
वंचण। तानिकूटानि काञ्चनमयानि, तत्र खण्डप्रपाकूटे नृत्यमालाख्यो व्यन्तरदेवोस्ति।
तमिस्रकूटे कृतमालाख्यः इतरेषु षट्सुकूकूट षु स्वकीयस्वकूयवूकूट म व्यन्तरदेवा वसन्ति।।७३५।।
अथ उक्तानां विजयार्धजिनालयानामुदयादित्रयमाह— कोसायामं तद्दलवित्थारं तुरियहीणकोसुदयं।
जिकूहं वूडुवरिं पुव्वमुहं संठियं रम्मं।।७३६।।
क्रोशायामं तद्दलविस्तारं तुरीयहीनक्रोशोदयं।
जिकूहं वूकूट परि पूर्वमुखं संस्थितं रम्यं।।७३६।।
कोसा।कूद्धकूट स्योपरि क्रोशायामं २००० तदर्धविस्तारं १०००।
चतुर्थांश ५०० हीनक्रोशोदयं १५०० पूर्वमुखं रम्यं जिनेन्द्रगेहं संस्थितं।।७३६।।
 

भरत-ऐरावत के विजयार्धके कूट के नाम

भरतैरावत स्थित विजयार्धोंकू के वूकूट र उन पर अवस्थित देवों का वर्णन चार गाथाओं द्वारा करते हैं— गाथार्र्थकू१. सिद्धवूकूट २. दकूणार्ध भरतवूकूट ३. खण्डप्रपात, ४. पूर्णभद्र, ५. विजयार्धकुमार, ६. मकूद्र नामा वूकूट ७कूमिस्रगुह वूकूट कूउत्तरभरत वूकूट र अन्तिकू वैश्रवण वूकूट भरतक्षेत्र स्थित विजयार्धकूत पर ९ कूट , तकू१ सिद्धकूट उत्तराकू ऐरावत कूट तमिस्रगुह, ४ मणिभद्र, ५ विजयार्धकुमार, ६ पूर्णभद्र, ७ खण्डप्रपात, ८ दक्षिणैरावतार्ध और ९ वैश्रवण ये ऐरावत क्षेत्र स्थित विजयार्ध पर्वत पर पूर्व दिशा से लगाकर क्रमपूर्वक हैं।।७३२, ७३३, ७३४।। विशेषार्थ—उपकूक्त ९ कूटकूट रावत स्थित विजयार्ध पर्वतों पर हैं। ये पूर्व दिशा से प्रारम्भ कर क्रम से स्थित हैं। गाथार्थ—भरतैरावत स्थित विजयार्धों केकूभी १८ कूट कूट नमय हैं। इनमें से खण्डप्रकूत नामक कूट पकूट त्यमालकू तमिस्र कूट पकूट तमाल तथा कू अवशेष कूटोंकूट कू-अपने कूट नाकूट री व्यन्तर देव निवास करते हैं।।७३५।। उक्त विजयार्ध स्थित जिनालयों के उदय आदि तीन (उदय, व्यास और लम्बाई) कहते हैंकूसिद्ध कूटोंकूट एक कोश लम्बे, अर्ध कोश चौड़े तथा चतुर्थ भाग हीन अर्थात् पौन कोश उँचे, पूर्वाभिमुख अतिरमणीक जिन मन्दिर हैं।।७३६।। विशेषार्थ—भरतैरावत क्षेत्रों के दोनों विजयार्धों पर कूत सिद्धकूटटोंकूट ऊपर २००० धनुष (१ कोश) लम्बे, १००० धनुष (१/२ कोस) चौड़े और १५०० धनुष (३/४ कोश) उँचे, पूर्वाभिमुख रमणीक जिनमन्दिर हैं।
 
Tags: Jain Geography
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