तर्ज-जन्म मानव का पाया है जो…..
यह तो जिनवर का दरबार है, यहाँ भक्ति तो करना पड़ेगा।
मन में यदि भक्ति की शक्ति है, तन से व्याधि को भगना पड़ेगा।।टेक.।।
आज कलियुग का अभिशाप है,
हिंसा का जग में साम्राज्य है।
पैâला आतंक अन्याय है,
केवल प्रभु भक्ति आधार है।।
मृत्युविजयी श्री जिनराज की,
पूजा से कष्ट हरना पड़ेगा।।ये तो…..।।१।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारक मृत्युञ्जयिपंचपरमेष्ठिन:!
अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारक मृत्युञ्जयिपंचपरमेष्ठिन:!
अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारक मृत्युञ्जयिपंचपरमेष्ठिन:!
अत्र मम सन्निहिता: भवत भवत वषट् सन्निधीकरणं।
-अथाष्टक-
तर्ज-ए री छोरी बांगड़ वाली…..
महाकष्टकारी कलियुग में, प्रभु भक्ति ही सहारा है…..।।०।।
कितना जल पीकर मैंने, तन तृषा शांत करना चाहा।
जाना अब जल से पूजन ही, दे भव जलधि किनारा है।।महा….।।१।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारकमृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ठंडी कई मशीनों से, तन घर शीतल करना चाहा।
जाना अब चन्दन से पूजन, हरता ताप हमारा है।।महा…….।।२।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारकमृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
वासमती का अखंडित चावल, घर में खाया जाता है।
उसे चढ़ाकर पूजन में, पाऊँ अक्षय पद प्यारा है।।महा….।।३।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारकमृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
अच्छे बाग बगीचों के, पुष्पों से घर को सजाते हैं।
वही पुष्प पूजन में चढ़ाकर, हो मन शांत हमारा है।।महा….।।४।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारकमृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
भक्ष्य अभक्ष्य सभी कुछ खाकर, तन को रोगी बना लिया।
पूजन में नैवेद्य चढ़ा, नशता क्षुधरोग हमारा है।।महा….।।५।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारकमृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
बिजली की रोशनी से घर को, खूब चमाचम करते हैं।
घृत दीपक से प्रभु आरति कर, मिलता ज्ञान उजाला है।।महा….।।६।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारकमृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्य: मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
पाप कर्म के उदय से मानव, पर को दुख देता रहता।
धूप दहन कर कर्म नशाऊँ, पूजन द्रव्य ये प्यारा है।।महा….।।७।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारकमृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्य: अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल अंगूर अनन्नासादिक, खाने में स्वादिष्ट लगें।
उनको पूजन में भी चढ़ाऊँ, मिले मोक्षफल प्यारा है।। महा….।।८।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारकमृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अष्ट द्रव्य में रत्न मिला, ‘‘चन्दनामती’’ मैं लाया हूँ।
मृत्युंजयि पद हेतु चढ़ाऊँ, अर्घ्य प्रभू को प्यारा है।।महा….।।९।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिनिवारकमृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
स्वर्णिम झारी में लिया, गंगा नदि का नीर।
शांतिधार प्रभु पद किया, हरो जगत की पीर।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
बेला कमल गुलाब के, पुष्पों का भंडार।
पुष्पांजलि प्रभु चरण में, करे जगत उद्धार।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
(दशों दिशाओं में सरसों या पीले चावल क्षेपण करें)
(१)
पूर्व दिशा की शक्ति अनाहत सोलह स्वर में समाहित है।
लघु स्वर अ से अ: तक अनिधन वर्ण सभी शक्तीयुत हैं।।
अत: शक्तियुत बीजाक्षर हम सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी की पूजन पूरब दिश के सब कष्ट हरें।।१।।
-दोहा-
पूर्व दिशा से आ रही, अशुभ दृष्टि नश जाय।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ¸ ऌ ल¸ ए ऐ ओ औ अं अ: पूर्वदिशात: समागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं पूर्वदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(२)
आग्नेय दिश में कवर्ग की विद्याशक्ति अनाहत है।
अनादि अनिधन कवर्ग के पाँचों व्यंजन में समाहित है।।
अत: शक्तियुत बीजाक्षर हम सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी का अर्चन आग्नेय दिशागत कष्ट हरें।।२।।
-दोहा-
आग्नेयदिश की सभी, अशुभ दृष्टि नश जाय।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं क ख ग घ ङ कवर्गबीजाक्षरसमूह! आग्नेयदिशात: समागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं आग्नेयदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(३)
दक्षिण दिश में चवर्ग बीजाक्षरों की शक्ति अनाहत है।
अनादि अनधिन चवर्ग के पाँचों व्यंजन में समाहित है।।
अत: शक्तियुत बीजाक्षर हम सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी का अर्चन दक्षिणी दिशागत कष्ट हरें।।३।।
-दोहा-
दक्षिण दिशा से आ रही, अशुभ दृष्टि नश जाय।।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं च छ ज झ ञ चवर्गबीजाक्षरसमूह! दक्षिणदिशात: समागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं दक्षिणदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम्ा: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(४)
टवर्ग बीजाक्षर नैऋत्यदिशा की शक्ति बताते हैं।
ट से ण तक पाँचों अक्षर तन की व्याधि मिटाते हैं।।
अत: शक्तियुत बीजाक्षर हम सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी का अर्चन नैऋत्य दिशागत कष्ट हरें।।४।।
-दोहा-
नैऋत दिशा से आ रही, अशुभ दृष्टि नश जाय।।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं ट ठ ड ढ ण टवर्गबीजाक्षरसमूह! नैऋत्यदिशात: समागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं नैऋत्यदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(५)
पश्चिम दिश में तवर्ग बीजाक्षर की शक्ति अनाहत है।
अनादि अनिधन तवर्ग के पाँचों व्यंजन में समाहित है।
अत: शक्तियुत बीजाक्षर, हम सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी का अर्चन, पश्चिमी दिशागत कष्ट हरें।।५।।
-दोहा-
पश्चिम दिशा से आ रही, अशुभ दृष्टि नश जाय।।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं त थ द ध न तवर्गबीजाक्षरसमूह! पश्चिमदिशात: समागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं पश्चिमदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(६)
पवर्ग बीजाक्षर वायव्य दिशा की शक्ति बताते हैं।
प से म तक पाँचों अक्षर तन की व्याधि मिटाते हैं।।
अत: शक्तियुत बीजाक्षर, हम सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी का अर्चन वायव्यदिशागत कष्ट हरें।।६।।
-दोहा-
वायव्य दिशा से आ रही, अशुभ दृष्टि नश जाय।।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं प फ ब भ म पवर्गबीजाक्षरसमूह! वायव्यदिशागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं वायव्यदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(७)
उत्तर दिशा में य र ल व बीजाक्षर की शक्ति अनाहत है।
अनादि अनिधन इन व्यंजन वर्णों में शक्ति समाहित है।।
अत: शक्तियुत बीजाक्षर, हम सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी का अर्चन उत्तर दिश के सब कष्ट हरें।।७।।
-दोहा-
उत्तर दिशा से आ रही, अशुभ दृष्टि नश जाय।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं य र ल व बीजाक्षरसमूह! उत्तरदिशागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं उत्तरदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(८)
श स ष ह बीजाक्षर ईशान दिशा की शक्ति बताते हैं।
ये चारों व्यंजन मानव के तन की शक्ति बढ़ाते हैं।।
अत: शक्तियुत बीजाक्षर, हम सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी का अर्चन ईशानदिशागत कष्ट हरें।।८।।
-दोहा-
दिश ईशान से आ रही, अशुभ दृष्टि नश जाय।।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं श स ष ह बीजाक्षरसमूह! ईशानदिशात: समागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं ईशानदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(९)
अधोदिशा के सभी देवता अपनी जागृत शक्ति करें।
यज्ञभाग ले करके अपना परमेष्ठी की भक्ति करें।।
ये दैवी शक्तियाँ प्रगट हो सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी का यह अर्चन अधोदिशागत कष्ट हरें।।९।।
-दोहा-
अधो दिशा से आ रही, अशुभ दृष्टि नश जाय।।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं अधोदिशास्वामीधरणेन्द्रदेव! अधोदिशात: समागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं अधोदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(१०)
ऊर्ध्व दिशा के सभी देवता अपनी जागृत शक्ति करें।
यज्ञभाग ले करके अपना परमेष्ठी की भक्ति करें।।
ये दैवी शक्तियाँ प्रगट हो सबकी रक्षा सदा करें।
पंचपरमेष्ठी का यह अर्चन ऊर्ध्व दिशागत कष्ट हरें।।१०।।
-दोहा-
ऊर्ध्व दिशा से आ रही, अशुभ दृष्टि नश जाय।।
विषयुत वायु पवित्र हो, अपमृत्यु टल जाय।।
ॐ ह्रीं ऊर्ध्वदिशास्वामीसोमेन्द्रदेव! ऊर्ध्वदिशात: समागतविघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभार्थं ऊर्ध्वदिशायां पुष्पांजलिं क्षिपेत्। मृत्युञ्जयिश्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
स्वर व्यंजन की शक्तियाँ, हैं अनादि सुप्रसिद्ध।
दशों दिशा की वायु को, करें सदा सुपवित्र।।१।।
वर्णमातृका को नमूँ, अर्घ्य चढ़ाऊँ आज।
माता सम रक्षा करो, देकर आशिर्वाद।।२।।
ॐ ह्रीं षोडशस्वरत्रयस्त्रिंशद्व्यंजनसमन्वितायै अनाहतविद्यायै नम: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। समस्तदिग्भ्य: समागत विघ्नान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय आरोग्यलाभं कुरु कुरु स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं महाव्याधिविनाशक आरोग्यप्रदायकमृत्युंजयि- श्रीपंचपरमेष्ठिभ्यो नम:।
(९, २७ या १०८ बार जपते हुए लवंग या पुष्प क्षेपण करें)
तर्ज-ऊँचे ऊँचे शिखरों वाला है….
जिनवर के गुण हमें गाना है, सब संकट टलेंगे।
संकट टलेंगे-सारे रोग भगेंगे-२।।जिनवर के….।।टेक.।।
जब जब धरती पे संकट आए, गुरुओं ने धार्मिक यत्न बताए।
हमको भी गुरु मंत्र पाना हे, सब संकट टलेंगे।।जिनवर के…।।१।।
मैना व श्रीपाल पे कष्ट आया, सिद्धचक्र पाठ से उसे भगाया।
हमको भी यही अपनाना है, सब संकट टलेंगे।।जिनवर के…।।२।।
राजा विजय को अपमृत्यु बतायी, मंदिर में जा उसने पूर्णायु पाई।
मंदिर में हमको भी जाना है, सब संकट टलेंगे।।जिनवर के…।।३।।
दशों दिशा के बीजाक्षरों को, आह्वान करव्ाâे बुलाया सभी को।
उनकी शक्ति जगाना है, सब संकट टलेंगे।।जिनवर के…।।४।।
सोलह स्वर और तेंतिस है व्यंजन, इनसे दशों दिश का करना है बंधन।
पंचपरमेष्ठी को ध्याना है, सब संकट टलेंगे।।जिनवर के…।।५।।
कोरोना महामारी है आई, दुनियां में इसने त्राहि त्राहि मचाई।
धैर्य से इसे सह जाना है, सब संकट टलेंगे।।जिनवर के…।।६।।
महाव्याधिनाशक पाठ यह करना, अपमृत्यू के कष्ट को हरना।
जयमाला अर्घ्य चढ़ाना है, सब संकट टलेंगे।।जिनवर के…।।७।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमति माताजी, भक्तों को स्वस्थता के मंत्र बतातीं।
हर घर को स्वस्थ बनाना है, सब संकट टलेंगे।।जिनवर के…।।८।।
मृत्युंजयी प्रभु से प्रार्थना यही है, ‘‘चन्दनामती’’ की कामना यही है।
पूर्णायु सबको पाना है, सब संकट टलेंगे।।जिनवर के…।।९।।
ॐ ह्रीं कोरोनाआदिमहाव्याधिविनाशक आरोग्यप्रदायकमृत्युंजयिश्रीपंच-परमेष्ठिभ्यो नम: जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-दोहा–
परमेष्ठी की भक्ति से, मिले परमपद शीघ्र।
पूजन वन्दन शक्ति से, हो नीरोग शरीर।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तीन लोक का हर प्राणी जिनके चरणों में झुकता है।
तीन लोक का अग्रभाग जिनकी पावनता कहता है।।
जन्म मृत्यु से रहित नाथ वे मृत्युञ्जयि कहलाते हैं।
मृत्युञ्जयि प्रभु के वन्दन से जन्म मृत्यु नश जाते हैं।।१।।
जिसने जन्म लिया है जग में मृत्यू उसकी निश्चित है।
इसी जन्ममृत्यू के कारण सारे प्राणी दुक्खित हैं।।
जन्म समान न दुख कोई अरु मरण सदृश नहिं भय जग में।
जान लें यदि संभावित मृत्यू अर्धमृतक नर हों सच में।।२।।
हे प्रभुवर! जिस तरह आपने जन्म मृत्यु का नाश किया।
अविनाशी परमातम पद को पाकर सौख्य अपार लिया।।
उसी तरह का सौख्य निराकुल नाथ! मुझे भी मिल जावे।
देव शास्त्र गुरु की भक्ती का फल सच्चा तब मिल जावे।।३।।
कभी जन्म कुण्डलियाँ अपमृत्यू का भय दिखलाती हैं।
कभी हाथ की रेखाएँ कुछ अल्प आयु दरशाती हैं।।
शारीरिक वेदना कभी जब असहनीय हो जाती है।
रोग ग्रसित मानव की इच्छा मरने की हो जाती है।।४।।
जिनशासन कहता है लेकिन ऐसा नहीं विचार करो।
आत्मघात की इच्छा से मरना न कभी स्वीकार करो।
क्योंकि ऐसा मरण सदा भव-भव में दु:ख प्रदाता है।
नरक पशू योनी में प्राणी अगणित कष्ट उठाता है।।५।।
सुखमय जीवन में भी अपमृत्यु के ग्रह रह सकते है।
हो जाय प्राण घातक हमला तो असमय में मर सकते हैं।।
मोटर गाड़ी या वायुयान की दुर्घटना हो सकती हैं।
भूकम्प बाढ़ बम विस्फोटों से त्राहि-त्राहि मच सकती है।।६।।
ऐसे असमय के मरण देख मानव का मन घबराता है।
मेरा न अकाल मरण होवे यह भाव सहज में आता है।।
हे भव्यात्मन!् इसलिए सदा तुम मृत्यंजय स्तोत्र पढ़ो।
मृत्युंजय मंत्र के सवा लाख मंत्रों को जपकर सौख्य भरो।।७।।
ये ह्रां ह्रीं अरु ह्रूं ह्रौं ह्र: बीजाक्षर शक्तीशाली।
पाँचों परमेष्ठी नाममंत्र के साथ बने महिमाशाली।।
अपमृत्यु विनाशक महामृत्युंजय मंत्र इसे जो जपते हैं।
पूर्णायु प्राप्त कर चिरंजीव हो स्वस्थ काय युत बनते हैं।।८।।
जिनशासन के ग्रंथों में भी अपमृत्यु विनाशक मंत्र कहा।
पोदनपुर नृप श्री विजयराज ने मृत्यु विजय का यत्न किया।।
सच्ची रोमांचक कथा प्रभू भक्ती की महिमा कहती है।
नवजीवन वैâसे मिला उन्हें व्रत नियम की गरिमा रहती है।।९।।
इकबार निमितज्ञानी ने राजा की अपमृत्यू बतलाई।
नृपसिंहासन पर वङ्कापात की भावी घटना समझाई।।
राजा ने सात दिनों तक सारे राजपाट को त्याग दिया।
जिनमंदिर में जा अनुष्ठान कर नियम सल्लेखना धार लिया।।१०।।
नृपसिंहासन पर पत्थर की मूरत मंत्री ने बनवाई।
हुआ निश्चित तिथि पर वङ्कापात मूरति पर अशुभ घड़ी आई।।
सिंहासन प्रतिमा चूर हुई राजा का नहीं बिगाड़ हुआ।
टल गया अकाल मरण उनका जिनधर्म का जय जयकार हुआ।।११।।
धर्मानुष्ठान समापन करके राज्य पुन: स्वीकार किया।
इस चमत्कार को देख प्रजा ने धर्म का जय जयकार किया।।
हे भव्यात्मन्! यदि तुमको भी अपमृत्यु की आशंका होवे।
यह मृत्युञ्जय स्तोत्र पठन तुमको नित मंगलमय होवे।।१२।।
अट्ठारह दिन तक स्तोत्र पढ़ो दश-दश माला प्रतिदिन जप लो।
मृत्युंजय यंत्र के सम्मुख माला जप स्तोत्र पाठ कर लो।।
उस यंत्र का कर अभिषेक परम औषधि सम उसको ग्रहण करो।
स्तोत्र पाठ के संग यहाँ लघु मंत्र को भी नौ बार पढ़ो।।१३।।
इक भोज पत्र का यंत्र बना अपने संग उसे सदा रक्खो।
गुरुमाता गणिनी ज्ञानमती जी से सम्पूर्ण विधी समझो।।
अपनी सम्पूर्ण व्यथा गुरु के सम्मुख कहकर मन शान्त करो।
मृत्युंजय मंत्र स्तोत्र आदि पढ़कर निज मन निर्भ्रान्त करो।।१४।।
प्रात: स्तोत्र पाठ करके घर से बाहर यदि निकलोगे।
दुर्घटना संकट आदि सभी से अपनी रक्षा कर लोगे।।
कितनी भी विषम परिस्थिति में कोई निमित्त बन जाएगा।
आयू यदि अपनी शेष रही तो कोई मार न पाएगा।।१५।।
निज जन्मकुण्डली के ग्रह को यह प्राणी बदल भी सकता है।
हाथों की रेखा भी पुरुषार्थ से निराकार कर सकता है।।
जब कर्मों की स्थिति का घटना बढ़ना भी हो सकता है।
तब मृत्युंजय स्तोत्र पाठ से काल न क्यों रुक सकता है।१।१६।।
हे नाथ! मरण होवे मेरा तो मरण समाधीपूर्वक हो।
संयमधारी गुरु के समूह में संयम धारणपूर्वक हो।।
दो-तीन या सात-आठ भव में मैं भी शिवपद को प्राप्त करूँ।
मिथ्यात्व असंयम से मिलने वाला भव भ्रमण समाप्त करूँ।।१७।।
श्री गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माता की शिष्या चन्दनामती।
मृत्युंजय पद की प्राप्ति हेतु स्तोत्र की यह रचना कर दी।।
जब तक मृत्युंजय पद न मिले मृत्युंजयि प्रभु का ध्यान करूँ।
अरिहन्त-सिद्ध के चरणों में मैं कोटीकोटि प्रणाम करूँ।।१८।।
-महामृत्युंजय मंत्र-
(१) ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ ह्रूँ णमो आइरियाणं, ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्र: णमो लोए सव्वसाहूणं मम सर्वग्रहारिष्टान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय सर्वशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
(२) ॐ ह्रीं अर्हं झं वं ह्व: प: ह: मम सर्वापमृत्युजयं कुरु कुरु स्वाहा।