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महाहिमवान के महापद्म सरोवर में तेरह कूट

July 20, 2017स्वाध्याय करेंjambudweep

महाहिमवान के महापद्म सरोवर में तेरह कूट


                                                  महहिमवंते दोसुं पासेसुं वेदिवणाणि रम्मािण। गिरिसमदीहत्ताणिं वासादीणं च हिमवगिरिं२।।१७२३।।
                                                  सिद्धमहाहिमवंता हेमवदो रोहिदो य हरिणामो। हरिता हरिवरिसो वेरुलिओ अड इमे कूडा।।१७२४।।
                                                  हिमवंतपव्वदस्स य कूडादो उदयवासपहुदीिंण। एदाणं कूडाणं दुगुणसरूवाणि सव्वािंण।।१७२५।।
                                                  जंणामा ते कूडा तंणामा वेंतरा सुरा होंति। अणुवमरूवसरीरा बहुविहपरिवारसंजुत्ता।।१७२६।।
                                                  पउमदहाउ दुगुणो वासायमोहि गहिरभावेणं। होदि महाहिमवंते महपउमो णाम दिव्वदहो।।१७२७।।
वा १०००। आ २०००। गा २०।
                                                                                 तद्दहपउमस्सोवरि पासादे चेट्ठदे य हिरिदेवी। बहुपरिवारेिंह जुदा सिरियादेवि व्व वण्णिजगुणोहा।।१७२८।।
                                                                                 णवरि विसेसो एसो दुगुणा परिवारपउमपरिसंखा। जेत्तियमेत्तपसादा जिणभवणा तत्तिया रम्मा।।१७२९।।
                                                                                 ईसाणदिसाभाए वेसमणो णाम सुंदरो कूडो। दक्खिणदिसाविभागे कूडो सिरिणिचयणामो य।।१७३०।।
                                                                                 णइरिदिभागे वूडं महहिमवंतो विचित्तरयणमओ। पच्छिमउत्तरभागे कूडो एरावदो णाम।।१७३१।।
                                                                                 सिरिसंचयं ति कूडो उत्तरभागे दहस्स चेट्ठेदि। एदेहि कूडेिंह महहिमवंतो य पंचसिहरो त्ति।।१७३२।।
                                                                                 एदे सव्वे कूडा वेंतरणयरेिह परमरमणिज्जा। उववणवेदीजुत्ता उत्तरपासे जलम्मि जिणकूडो।।१७३३।।
                                                                                 सिरिणिचयं वेरुलियं अंकमयं अच्छरीयरुजगाइं। उप्पलसिहरी कूडा सलिलम्मि पदाहिणा होंति।।१७३४।।

महाहिमवान के महापद्म सरोवर में तेरह कूट

महाहिमवान् पर्वत के दोनों पाश्र्वभागों में रमणीय वेदी और वन हैं। इनकी लम्बाई इसी पर्वत के बराबर और विस्तारादिक हिमवान् पर्वत के समान है।।१७२३।। इस पर्वत के ऊपर सिद्ध, महाहिमवान्, हैमवत, रोहित्, हरि, हरिकान्त, हरिवर्ष और वैडूर्य, इसप्रकार ये आठ कूट हैं।।१७२४।। हिमवान् पर्वत के कूट से इन वूकूट की ऊँचाई और विस्तारप्रभृति सब दुगुणा-दुगुणा है।।१७२५।। जिन नामों के वे वूकूट, उन्हीं नाम वाले व्यन्तरदेव उन कूटकूटर रहते हैं। ये देव अनुपम रूपयुक्त शरीर के धारक और बहुत प्रकार के परिवार से संयुक्त हैं।।१७२६।। महाहिमवान् पर्वत पर स्थित महापद्म नामक द्रह पद्मद्रह की अपेक्षा दुगुणे विस्तार, लंबाई व गहराई से सहित है।।१७२७।। विस्तार १०००। आयाम २०००। गहराई २०। उन तालाब में कमल के ऊपर स्थित प्रासाद में बहुत से परिवार से संयुक्त तथा श्रीदेवी के सदृश वर्णनीय गुणसमूह से परिपूर्ण ह्री देवी रहती है।।१७२८।। यहाँ विशेषता केवल यह है कि ह्रीदेवी के परिवार और पद्मों की संख्या श्रीदेवी की अपेक्षा दूनी है। इस तालाब में जितने प्रासाद हैं उतने ही रमणीय जिनभवन भी हैं।।१७२९।। इस तालाब के ईशानदिशाभाग में सुन्दर वैश्रवण नामक वूकूटदक्षिणदिशाभाग में श्रीनिचय नामक वूकूटनैऋत्यदिशाभाग में विचित्र रत्नों से निर्मित महाहिमवान् वूकूटपश्चिमोत्तरभाग में ऐरावत नामक वूकूटर उत्तरभाग में श्रीसंचय नामक वूकूटत है। इन वूकूटकूट महाहिमवान् पर्वत पंचशिखर कहलाता है।।१७३०-१७३२।। ये सब वूकूटटन्तर नगरों से परम रमणीय और उपवनवेदियों से संयुक्त हैं। तालाब के उत्तरपाश्र्व भाग में जल में जिनवूकूटट।१७३३।। श्रीनिचय, वैडूर्य, अंकमय, आश्चर्य, रुचक, उत्पल और शिखरी, ये वूकूटटमें प्रदक्षिण रूप से स्थित हैं।।१७३४।।
 
Tags: Jain Geography
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