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महाहिमवान पर्वत का महापद्म सरोवर

February 12, 2017स्वाध्याय करेंjambudweep

महाहिमवान पर्वत का महापद्म सरोवर


भरहावणिरुंदादो अडगुणरुंदो व दुसय उच्छेहो।

होदि महाहिमवंतो हिमवंतवियं वणेहिं कयसोहो।।१७१७।।

रुं ८०००० । उ २०० ।

पउमद्दहाउ दुगुणो वासायामेहि गहिरभावेणं।

होदि महाहिमवंते महपउमो णाम दिव्वदहो।।१७२७।।

वा १००० । आ २००० । गा २० ।

तद्दहपउमस्सोवरि पासादे चेट्ठदे य हिरिदेवी।

बहुपरिवारेहिं जुदा सिरियादेवि व्व वण्णिजगुणोहा।।१७२८।।

णवरि विसेसो एसो दुगुणा परिवारपउमपरिसंखा।

जेत्तियमेत्तपसादा जिणभवणा तत्तिया रम्मा।।१७२९।।

ईसाणदिसाभाए वेसमणो णाम सुंदरो कूडो ।

दक्खिणदिसाविभागे कूडो सिरिणिचयणामो य।।१७३०।।

णइरिदिभागे कुड महहिमवंतो विचित्तरयणमओ।

पच्छिमउत्तरभागे कूडो एरावदो णाम।।१७३१।।

सिरिसंचयं ति कूडो उत्तरभागे दहस्स चेट्ठेदि ।

एदेहिं कूडेहिं महहिमवंतो य पंचसिहरो त्ति।।१७३२।।

एदे सव्वे कूडा वेंतरणयरेहिं परमरमणिज्जा ।

उववणवेदीजुत्ता उत्तरपासे जलम्मि जिणकूडो।।१७३३।।

सिरिणिचयं वेरुलियं अंकमयं अच्छरीयरुजगाइं।

उप्पलसिहरी कूडा सलिलम्मि पदाहिणा होंति।।१७३४।।

महाहिमवान पर्वत का महापद्म सरोवर

महामहिमवान् पर्वत का विस्तार भरत क्षेत्र से अठ गुणा और ऊँचाई दो सौ योजन प्रमाण है व हिमवन्त के समान ही वनों से शोभायमान है।।१७१७।।

वि. ८००००/१९ । उं. २०० । महाहिमवान् पर्वत पर स्थित महापद्म नामक द्रह पद्मद्रह की अपेक्षा दुगुणे विस्तार, लम्बाई व गहराई से सहित है।। १७२७।।

विस्तार १०००। आयाम २०००। गहराई २०। उस तालाब में कमल के ऊपर स्थित प्रासाद में बहुत से परिवार से संयुक्त तथा श्रीदेवी के सदृश वर्णनीय गुणसमूह से परिपूर्ण ह्री देवी रहती है।।१७२८।।

यहाँ विशेषता केवल यह है कि ह्री देवी के परिवार और पद्मों की संख्या श्री देवी की अपेक्षा दूनी है। इस तालाब में जितने प्रासाद हैं उतने ही रमणीय जिनभवन भी हैं।।१७२९।।

इस तालाब के ईशान दिशा भाग में सुन्दर वैश्रवण नामक कूट, दक्षिण दिशा भाग में श्रीनिचय नामक कूट, नैऋत्यदिशा भाग में विचित्र रत्नों से निर्मित महाहिमवान् कूट, पश्चिमोत्तर भाग में ऐरावत नामक कूट और उत्तर भाग में श्रीसंचय नामक कूट स्थित है। इन कूट से महाहिमवान् पर्वत पंचशिखर कहलाता है।।१७३०-१७३२।।

ये सब कूटन्तर नगरों से परमरमणीय और उपवन वेदियों से संयुक्त हैं। तालाब के उत्तरपाश्र्व भाग में जल में जिनकूटकूट। १७३३।।

श्रीनिचय, वैडूर्य, अंकमय, आश्चर्य, रुचक, उत्पल और शिखरी, ये कूटकूटमें प्रदक्षिण रूप से स्थित हैं।। १७३४।।

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