युगों-युगों से ज्ञान की गंगा, जहाँ बहती अविराम है।
तीन लोक चौदह भुवनों में, यही वो पावन धाम है।।
तीर्थंकर भगवान की भूमि, लोचन ललित ललाम है।
माँ ज्ञानमती की कर्मभूमि है, शत-शत इसे प्रणाम है।।१।।
धर्म क्रांति लाने वाली, आगम ज्योति जगाने वाली ।
कीर्ति ध्वजा फहराने वाली, अक्षय पद पहुँचाने वाली ।।
ऋषि-मुनियों की पावन भूमि, शत-शत इसे प्रणाम है ।
माँ शत-शत तुम्हें प्रणाम है, माँ शत-शत तुम्हें प्रणाम है ।।२ ।।
चरण तुम्हारे पड़े धरा पर, फैला जग में उजियारा,
छाया था जो युगों-युगों से, दूर हुआ सब अंधियारा,
श्रीमुख से हुई स्वयं प्रवाहित, आगम की निर्मल धारा,
सम्यक् दर्शन, ज्ञान चरित, सब सहज भाव उर में धारा।।३।।
मन भाव विमल करने वाली, जग का कल्मष हरने वाली, हे!
शुभ्र ध्यान धरने वाली, हे! मोक्ष वरण करने वाली, हे!
माता तुम्हें प्रणाम है, शत-शत तुम्हें प्रणाम है,
माँ शत-शत तुम्हें प्रणाम है, माँ शत-शत तुम्हें प्रणाम है।।४।।
धर्म संस्कृति रक्षा हित माँ, जीवन तुमने वार दिया,
सन्मार्ग से भटके जन का, तुमने माँ उद्धार किया,
जीयो और जीने दो सबको, जिनधर्म का सार दिया,
काट बेड़ियाँ भवबंधन की, भव सागर को पार किया।।५।।
ज्ञान की ज्योति जगाने वाली, अमृत पान कराने वाली,
जीवन को हर्षाने वाली, प्रेम सुधा बरसाने वाली, हे!
माता तुम्हें प्रणाम है, शत-शत तुम्हें प्रणाम है,
माँ शत-शत तुम्हें प्रणाम है, माँ शत-शत तुम्हें प्रणाम है।।६।।
भावों के सौरभ सुमनों से, माँ का अभिनंदन करते हैं,
मन प्रेम सुधारस भाव जगा, हम शत-शत वंदन करते हैं,
भावों के अक्षत चन्दन से, हम माँ की पूजन करते हैं, हे!
हंस वाहिनी वाणी माँ, हम तेरा अर्चन करते हैं।।७।।
मन भाव विमल करने वाली, जग का कल्मष हरने वाली, हे!
शुभ्र ध्यान धरने वाली, हे! मोक्ष वरण करने वाली, हे!
माता तुम्हें प्रणाम है, शत-शत तुम्हें प्रणाम है,
माँ शत-शत तुम्हें प्रणाम है, माँ शत-शत तुम्हें प्रणाम है।।८।।