Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र

December 17, 2022जैन तीर्थSurbhi Jain

मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र

बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री १०८ शांतिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के पंचम पट्टाधीश आचार्यश्री १०८ श्रेयांससागर महाराज की प्रेरणा से लगभग २५-३० वर्ष पूर्व इस तीर्थ के विकास का कार्य एवं जीर्णोद्धार प्रारंभ हुआ।

वहाँ के आर्यिका संघ के, क्षेत्र के ट्रस्टियों एवं महाराष्ट्र प्रान्तीय भक्तों के विशेष आग्रह पर माताजी का संघ सहित १९९६ का चातुर्मास मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र पर ही हुआ, इस चातुर्मास में अनेक उपलब्धियों के साथ एक विशेष उपलब्धि हुई, जो विश्व का आश्चर्य ही कही जाएगी, वह है पर्वत की अखण्ड शिला में प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेव की १०८फुट विशालकाय खड्गासन मूर्ति निर्माण की पावन प्रेरणा। पुन: समस्त सरकारी कार्यवाही पूर्ण करके, मूर्ति निर्माण हेतु नई कमेटी गठित करके ३ मार्च २००२ को पर्वत पर शिलापूजन समारोह भव्यतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

प्रतिमा के मुखकमल निर्माण का शुभारंभ २५ दिसम्बर २०१२ को हुआ और मूर्ति निर्माण का कार्य योजनाबद्ध तरीके से चला। हस्तिनापुर में विराजमान पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का ८२ वर्ष की उम्र में अपने कमजोर शरीर से भी इतना लम्बा विहार कर संघ सहित आना ही स्वयं में एक चमत्कार से कम नहीं है, शायद यह सम्पूर्ण जैन समाज का विशेष पुण्य ही था, जो कि पूज्य माताजी के पावन चरण इस सिद्धक्षेत्र पर पुन: पड़े और अत्यधिक दुरुह कार्य सरलतापूर्वक सम्पन्न होकर माघ कृ. एकम्-२४ जनवरी २०१६ को रवि पुष्य के पवित्रयोग में प्रतिमा का निर्माण पूर्ण हुआ और विश्व की सबसे विशालकाय मूर्ति निर्मित होकर जिनशासन की गरिमा और महिमा का दिग्दर्शन सभी को करा रही है।

Previous post जृम्भिका (जमुई) तीर्थ परिचय
Privacy Policy