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माता मोहिनी एवं मैना का संवाद!

November 20, 2013ज्ञानमती माताजीjambudweep

माता मोहिनी एवं मैना का संवाद


तर्ज-बार-बार तोहे क्या समझाऊँ…….

माता मोहिनी – बार-बार समझाऊँ बेटी, मान ले मेरी बात।

तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।टेक.।।

मैना – भोली भाली माता मेरी, सुन तो मेरी बात।

हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।टेक.।।

माता – तूने तो बेटी अब तक, संसार न कुछ देखा है।

फिर भी मान लिया क्यों इसको, यह सब कुछ धोखा है।।

खाने और खेलने के दिन, क्यों करती बर्बाद।

तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।१।।

मैना – प्यारी माँ इस नश्वर जग में, कुछ भी नया नहीं है।

जो कुछ भोगा भव भव में, बस दिखती कथा वही है।।

ग्रन्थों से पाया मैंने, हे माता ज्ञान का स्वाद।

हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।१।।

माता – ये सुन्दर गहने मैना, मैं तुझको पहनाऊँगी।

अपनी गुड़िया सी पुत्री की, शादी रचवाऊँगी।।

सजधज कर जब बनेगी दुलहन, शरमाएगा चाँद।

तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।२।।

मैना – तेरी प्यारी बातों में माँ, मैंना नहिं आयेगी।

सोने चाँदी के गहनों को, वह न पहन पाएगी।।

रत्नत्रय का अलंकार बस, मुझे पहनना मात।

हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।२।।

माता – मेरी बात न मान तो अपने, पिता का ख्याल तो करले।

पुत्ररूप में माना तुझको, उनसे कुछ तो समझ ले।।

वे नहिं सह पाएंगे तेरे, कठिन त्याग की बात।

तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।३।।

मैना – मैंने अपने पिता का सचमुच, प्रेम अथाह है पाया।

तेरी ममता की मुझ पर तो, सदा रही है छाया।।

फिर भी तू ही समझा सकती है, पितु को सब बात।

हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।३।।

माता – मेरे बस की बात नहीं, तेरे भाई-बहन समझाना।

सब रोकर बोले हैं जीजी, को लेकर ही आना।।

तू ही मेरे घर की रौनक, तू मेरी सौगात।

तेरे जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।४।।

मैना – मोह की बातें कर करके माँ, मुझे न अब भरमाओ।

मेरे भाई बहनों को अब, प्यार से तुम समझाओ।।

माता की गोदी में उन्हें, जीजी की रहे न याद।

हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।४।।

माता –तेरी वैरागी बातों से, मैं तो पिघल जाती हूँ।

पर तेरे बिन घर कैसे, जाऊँ न समझ पाती हूँ।।

मेरी मैना मुझे छोड़ क्या, रह लेगी दिन-रात।

तेरी जैसी सुकुमारी की, दीक्षा का युग है न आज।।५।।

मैना – माँ मैंने अपने मन में, दृढ़ निश्चय यही किया है।

गृह पिंजड़े से उड़ने का, मैंने संकल्प लिया है।।

तू प्यारी माँ देगी आज्ञा, मुझे है यह विश्वास।

हम और तुम मिलकर ही, युग को बदल सकते आज।।५।।

माता – आज है पुत्री शरदपूर्णिमा, तेरा जनमदिन आया।

आज के दिन तूने अपना, यह निर्णय मुझे सुनाया।।

पत्थर दिल करके बेटी मैं, देती आज्ञा आज।

सुखी रहे मैना मेरी, यह ही है आशीर्वाद।।६।।

(कागज पर स्वीकृति लिखकर मैना को देती है)

मैना – जनम जनम के पुण्य से मैंने, तुझ जैसी माँ पाई।

तेरे ही संस्कारों की तो, मुझ पर है परछाई।।

ग्रन्थ दहेज में मिला तुझे जो, मैंने चखा वह स्वाद।

उस ग्रंथ के अध्यन से, मुझको हुआ है वैराग।।६।।

माता – तूने जम्बूस्वामी जैसा, मुझे आज समझाया।

बालब्रह्मचारिणी प्रथम हो, सफल तेरी यह काया।।

युगयुग यश फैलेगा तेरा, मुझे है यह विश्वास।

मुझको भी इक दिन लेना, गृहबन्धन से निकाल।।७।।

मैना – आज ही सच्चा जनम हुआ है, मेरा मैंने माना।

शरदपूर्णिमा का महत्त्व अब, ठीक से मैंने जाना।।

ब्रह्मचर्य सप्तम प्रतिमा ले, मैंने किया गृह त्याग।

दीक्षा ग्रहण कर मुझको, असली मिलेगा साम्राज।।७।।

सूत्रधार – जनम से जिनके धन्य हुई है, शरदपूर्णिमा रात।

संयम के द्वारा उसी, पूनो का सार्थक प्रभात।।

जग वालों देखो वही कन्या, ज्ञानमती कहलाई।

उनकी दीक्षा स्वर्ण जयंती भी सबने है मनाई।।

सदी बीसवीं के ये गणिनी, प्रमुख हुई विख्यात।

हम सब उन्हीं माता का, पाएँ सदा ही आशिर्वाद।।८।।

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