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मानुषोत्तर पर्वत के जिनमंदिर एवं कूटों की संख्या!

July 6, 2017जैनधर्मjambudweep

मानुषोत्तर पर्वत के जिनमंदिर एवं कूटों की संख्या


अनन्तरं मानुषोत्तरस्वरूपं गाथात्रयेणाह—
अंते टंकच्छिण्णो बाहिं कमवड्ढिहाणि कणयणिहो।
णदिणिग्गमपहचोद्दसगुहाजुदो माणुसुत्तरगो१।।९३७।।
अन्तः टज्र्च्छिन्नो बाह्ये क्रमवृद्धिहानिकः कनकनिभः।
नदीनिर्गमपथचतुर्दशगुहायुतः मानुषोत्तरः।।९३७।। अंते।
अभ्यन्तरे टज्र्च्छिन्नो बाह्ये शिखरात् क्रमवृद्धः मूलात्
क्रमहानियुक्तः कनकनिभः नदीनिर्गमपथैश्चतुर्दशगुहाभिर्युतो
मानुषोत्तराख्यशैलो ज्ञातव्यः।।९३७।।
मणुसुत्तरुदयभूमुहमिगिवीसं सगसयं सहस्सं च।
बावीसहियसहस्सं चउवीसं चउसयं कमसो।।९३८।।
मानुषोत्तरोदयभूमुखमेकविंशं सप्तशतं सहस्रं च।
द्वाविंशधिकसहस्रं चतुर्विंशतिः चतुःशतं क्रमशः।।९३८।। मणुसु।
मानुषोत्तरोदयभूमुखव्यासाः क्रमेण एकविंशतिसप्तशतोत्तरसहस्रयोजनानि १७२१
द्वाविंशत्यधिकसहस्रयोजनानि १०२२ चतुर्विंशत्युत्तरचतुः शतयोजनानि ४२४ भवन्ति।।९३८।।
तण्णगसिहरे वेदी चावाणं चदुस्सहस्सतुंगजुदा।
सोहइ बलयायारा चरणण्णिदकोसवित्थारा।।९३९।।
तन्नगशिखरे वेदी चापानां चतुः सहस्रतुङ्गयुता।
शोभते बलयाकारा चरणान्वितक्रोशविस्तारा।।९३९।। तण्णग।
तन्मानुषोत्तरनगस्य शिखरे चापानां चतुः सहस्रतुङ्गयुता
चतुर्थांशान्वितक्रोशविस्तारा २५०० वलयाकारा वेदी शोभते।।९३९।।

मानुषोत्तर पर्वत के जिनमंदिर एवं कूटों की संख्या

अब मानुषोत्तर पर्वत का स्वरूप तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं—
गाथार्थ—पुष्कर द्वीप के मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है। वह अभ्यन्तर में टज्र्छिन्न और बाह्य भाग में क्रमिक वृद्धि एवं हानि को लिए हुए है। स्वर्ण सदृश वर्ण वाला एवं नदी निकलने के चौदह गुफाद्वारों से युक्त है।।९३७।।
विशेषार्थ—पुष्कर द्वीप के मध्य में मानुषोत्तर नाम का पर्वत स्थित है। वह अभ्यन्तर मनुष्यलोक की ओर टज्र्छिन्न अर्थात् नीचे से ऊपर तक एक सदृश है तथा बाह्य-तिर्यग्लोक की ओर शिखर से क्रमिक वृद्धि और मूल से क्रमिक हानि को लिए हुए है। उसका वर्ण स्वर्ण सदृश है तथा चौदह महानदियों के निर्गम स्वरूप चौदह गुफाद्वारों से युक्त है।
गाथार्थ—मानुषोत्तर पर्वत का उदय, भू व्यास और मुख व्यास क्रमशः एक हजार सात सौ इक्कीस योजन, एक हजार बावीस योजन और चार सौ चौबीस योजन प्रमाण है।।९३८।।
विशेषार्थ—मानुषोत्तर पर्वत की उँचाई १७२१ योजन, भूव्यास अर्थात् मूल में चौड़ाई १०२२ योजन और मुख व्यास अर्थात् ऊपर की चौड़ाई ४२४ योजन प्रमाण है तथा इसकी नींव १७२१/४ · ४३० योजन १ कोश है।
गाथार्थ—उस मानुषोत्तर पर्वत के शिखर पर चार हजार धनुष उँची और सवा कोस (१-१/४) चौड़ी वलयाकार वेदी शोभायमान है।।९३९।।
 
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