
वर रत्नत्रय जिनधर्म हैं, सम्यक्त्वरत्न प्रधान है। 
रेवानदि को जल लाय, कंचन भृंग भरूँ। 




सित कुमुद नील अरविंद, लाल कमल प्यारे। 






एला केला फल आम्र, जंबू निंबु हरे। 



सम्यग्दर्शन रत्न आठ अंग युत माना।
















समकित होते ही हुआ, सम्यग्ज्ञान अपूर्व।
















सकल-विकल के भेद से, चारित द्विविध महान्।


मुनीधर्म के भेद, तेरह विध श्रुत में कहे।



























तीर्थंकर प्रभु के श्रीविहार में, धर्मचक्र आगे-आगे।