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रात्रि भोजन क्यों नही

July 9, 2014स्वाध्याय करेंjambudweep

रात्रि भोजन क्यों नही


 

सुधीर-  भाई सुनील ! रात्रि भोजन के करने से क्या हानि होती है,हमें समझाओॽ

सुनील- हाँ सुनो। किसी जमाने में हस्तिनापुर नगर में यशोभद्र महाराज के यहाँ रुद्रदत्त नाम के एक पुरोहित जी थे। एक बार उनकी पत्नी ने रात्रि में रसोई बनाई। चूल्हे के ऊपर बर्तन रखकर बघार के लिए वह हींग लेने बाहर चली गई। इधर एक मेंढक उछलकर उसमें गिर पड़ा। पुरोहित की स्त्री को कुछ मालूम नहीं हुआ। उसने आकर उसी में बैंगन छोंक दिये और उसी में बेचारा मेंढक मर गया। रात्रि में राज्य कार्य से समय पाकर पुरोहित जी आये।

बहुत देर हो गयी थी,घर में सब सो गये थे,दीपक बत्ती कुछ नहीं था। भूखे पुरोहित जी ने अपने हाथ से खाना परोस लिया और खाने लगे। जब मुँह में मेंढक का ग्रास पहुँचा और वह दाँतो से नहीं चबा,तब पुरोहित जी ने उसे निकाल कर एक तरफ रख दिया और प्रातः उसे देखा तो मेंढक था। फिर भी पुरोहित जी को ग्लानि नहीं आई और न ही उसने रात्रि भोजन का त्याग ही किया।

फलस्वरूप आयु के अन्त में मरकर उल्लू हो गया।

पुनः मरकर नरक गया। पुनः कौवा हो गया,पुनः नरक गया। पुनः बिलाव हो गया,पुनः नरक गया।

पुनः सावर हो गया,पुनः गिद्ध पक्षी हो गया। पुनः नरक गया। पुनः सूकर हो गया,पुनः नरक गया।

पुनः गोह हो गया और पुनः नरक चला गया। पुनरपि वहाँ से निकलकर जल में मगर हो गया और वहाँ भी हिंसा पाप करके नरक चला गया।

इस प्रकार दस बार तिर्यंच योनि के भयंकर दुःख भोगे और साथ दस बार नरक के दुःखों को भी प्राप्त किया। देखो सुधीर ! पाप का फल बट के बीज के समान सघन वृक्षरूप से फलित हो गया।

सुधीर – अरे,रे ! उसने तो मेंढक खाया भी नहीं था फिर भी इतना भयंकर फल मिला।

सुनील – हाँ भाई ! रात्रि भोजन के फल से ऐसे ही दुर्गति के दुःख उठाने पड़ते हैं। रात्रि में खाने वाले लोग प्रायः मरकर उल्लू,बिल्ली आदि पर्याय में जन्म लेते हैं। पुनः वहाँ पर हिंसादि पाप करने से नरक में चले जाते हैं और देखो! इस जन्म में भी हानि ही होती है।

यदि रात्रि में भोजन के साथ चींटी खाने में आ जाये तो बुद्धि का विनाश हो जाता है। यदि कसारी भोजन में मिल जाये और खाने में आ जाये तो कंपन की बीमारी हो जाती है। यदि मकड़ी भोजन में मिल जाये तो कोढ़ रोग उप्तन्न हो जाता है। जूँ खाने में आ जाये तो जलोदर रोग हो जाता है। फाँस खाने में आने से गले में पीड़ा हो जाती है। खाने के साथ केश खा जाने से स्वर भंग हो जाता है। मक्खी का भक्षण हो जाने से वमन हो जाती है। खाने में बिच्छू के आ जाने से तालु में छिद्र हो जाता है। ऐसे ही अनेकों मच्छर,जन्तु आदि के भोजन में मिल जाने से अनेक रोग पैदा हो जाया करते हैं इसीलिए इन प्रत्यक्ष दोषों को जानकर तथा परभव में अनेक कुयोनियों के दुःखों से डरकर रात्रि भोजन का त्याग कर देना चाहिये।

सुधीर – मित्र ! एक बात और है कि पुराने जमाने में लाईट नहीं थी,तब अनेक दोष आते थे। आज लाईट के युग में ऐसे जीवों का भोजन में सम्मिश्रित होना सम्भव नहीं है।

सुनील – नहीं,नहीं ! आप समझे नहीं,भाई लाईट के सहारे तो और अधिक बारीक-बारीक जीव आ जाते हैं जो कि भोजन में एकमेक हो जाते हैं और दीखते ही नहीं हैं अतः रात्रि भोजन सर्वथा वर्जित ही है।

 सुधीर –अच्छा,मैं आज से जीवन भर रात्रि भोजन का त्याग करता हूँ।

सुनील –अब चलो मित्र,गुरु के पास नियम करें क्योकि गुरु से लिया हुआ नियम विशेष फलदायी एवं प्रमाणिक रहता   है।

Tags: Jinagam navneet
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