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रोहिणी व्रत पूजा (वासुपूज्य जिनपूजा)!

July 2, 2020पूजायेंjambudweep

रोहिणी व्रत पूजा (वासुपूज्य जिनपूजा)

 

गीताछंद

वासवगणों से पूज्य भगवन्! वासुपूज्य महान हो।

तीर्थंकरों में बारहवें, वर तीर्थकर्ता मान्य हो।।

वर भक्ति श्रद्धाभाव से, प्रभु आप आह्वानन करें।

पूजा रचाकर आपकी, निज आत्म आराधन करें।।१।।

 ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।

ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।

ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।

 

अथाष्टक

(नाराच छंद)

सिंधु नीर स्वच्छ शुद्ध स्वर्ण कुंभ में भरूँ।

आप पाद पूजते हि कर्मकालिका हरूँ।।

रोहिणी नक्षत्र में उपोषणादि१ कीजिए।

वासुपूज्य देव पूज शोक दूर कीजिए।।१।।  

ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

 

अष्टगंध गंधपूर्ण नाथपाद पूजिए।

राग आग दाह नाश पूर्ण शांत हूजिए।।

रोहिणी नक्षत्र में उपोषणादि कीजिए।

वासुपूज्य देव पूज शोक दूर कीजिए।।२।।

  ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

चन्द्र चन्द्रिका समान श्वेत शालि लाइये।

नाथ पाद पूजते अखंड सौख्य पाइये।।

रोहिणी नक्षत्र में उपोषणादि कीजिए।

वासुपूज्य देव पूज शोक दूर कीजिए।।३।।  

 ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

पारिजात मालती गुलाब पुष्प लाइये।

काम मल्ल जीतने जिनेश को चढ़ाइये।।

रोहिणी नक्षत्र में उपोषणादि कीजिए।

वासुपूज्य देव पूज शोक दूर कीजिए।।४।।

 ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

 

मुद्ग लड्डुकादि पायसादि थाल में भरे।

भूख व्याधि नाशने जिनेन्द्र अर्चना करें।।

रोहिणी नक्षत्र में उपोषणादि कीजिए।

वासुपूज्य देव पूज शोक दूर कीजिए।।५।।  

 ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

रत्नदीप में कपूर ज्वालते शिखा बढ़े।

आप पूजते सुज्ञान ज्योति चित्त में बढ़े।।

रोहिणी नक्षत्र में उपोषणादि कीजिए।

वासुपूज्य देव पूज शोक दूर कीजिए।।६।।

ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

रक्त चंदनादि मिश्र धूप अग्नि में जलें।

आप पास में समस्त कर्म भस्म हो चलें।।

रोहिणी नक्षत्र में उपोषणादि कीजिए।

वासुपूज्य देव पूज शोक दूर कीजिए।।७।।

 ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

 

आम दाडिमादि खारिकादि थाल में भरे।

आप चर्ण पूजते अनन्त सिद्धि को वरें।।

रोहिणी नक्षत्र में उपोषणादि कीजिए।

वासुपूज्य देव पूज शोक दूर कीजिए।।८।।  

ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

तोय गंध शालि पुष्प अन्न दीप धूप हैं।

सत्फलों से युक्त अघ्र्य से जजूँ अनूप है।।

रोहिणी नक्षत्र में उपोषणादि कीजिए।

वासुपूज्य देव पूज शोक दूर कीजिए।।९।।  

ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अर्घंनिर्वपामीति स्वाहा।

 

दोहा

शांतीधारा मैं करूँ, जिनपदपंकज मांहि।

शांति करो सब लोक में, कर्मकीच धुल जांहि।।१०।।

                                              शांतये शांतिधारा।

कमल वकुल मल्ली कुसुम, सुरतरु के उनहार।

पुष्पांजलि करते प्रभू, मिले सकल सुखसार।।११।।

                                               दिव्य पुष्पांजलि:।

 

 

पंचकल्याणक अघ्र्य

स्रग्विणी छंद

मात विजयावती गर्भ में आवते, मास आषाढ़ षष्ठी वदी थी जबे।

इन्द्र आ गर्भकल्याण पूजा करें, अर्चते पाप सब एक क्षण में टरें।।१।।

 ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णाषष्ठ्यां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घंनिर्वपामीति स्वाहा।

 

फाल्गुनी कृष्ण चौदश जनम आपका, इन्द्र कीना न्हवन मेरु पे आपका।

जन्म कल्याण उत्सव शचीपति करें, नित्य पूजें तुम्हें विघ्न बाधा टरें।।२।।

 ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णाचतुर्दश्यां जन्मकल्याणक-प्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घंनिर्वपामीति स्वाहा।

 

कृष्ण फाल्गुन सुचौदस दिगम्बर हुए, बाह्य अंतर परिग्रह सभी तज दिये।

देव दीक्षा सुकल्याण पूजा करें, आज हम पूजते सर्व पीड़ा हरें।।३।।

 ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णाचतुर्दश्यां दीक्षाकल्याणक-प्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घंनिर्वपामीति स्वाहा।

 

माघ शुक्ला द्वितीया तिथी जो भली, घात के घातिया तुम हुए केवली।

इन्द्र ने ज्ञान कल्याण पूजा करी, पूजते ज्ञान ज्योती मेरे अंतरी।।४।।

 ॐ ह्रीं माघशुक्लाद्वितीयायां केवलज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घंनिर्वपामीति स्वाहा।

 

भाद्रपद शुक्ल चौदस प्रभू शिव गये, देव निर्वाण कल्याण पूजत भये।

भक्ति से मोक्ष कल्याण पूजा करें, पंचकल्याण लक्ष्मी तुरंते वरें।।५।।

 ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्लाचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घंनिर्वपामीति स्वाहा।

                                                                                                                                                             शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।

जाप्य – ॐ ह्रीं अर्हं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय नम:।

जयमाला

दोहा

वासुपूज्य वसुपूज्यसुत, वासवगण से वंद्य।

तुम गुणमणिमाला धरूँ, कंठ मांहि सुखकंद।।१।।

चाल-हे दीनबंधु…….

जय वासुपूज्य देव तीन लोक वंद्य हो।

जय जय अनंत सुगुण रत्न के करंड हो।।

हे नाथ! भक्ति भाव से मैं वंदना करूँ।

अनंत सौख्य सिंधु नाथ अर्चना करूॅँ।।१।।

चंपापुरी को धन्य आप जन्म से किया।

माता जयावती की कुक्षि से जनम लिया।।

आयू है बाहत्तर सुलक्ष वर्ष की कही।

तन की ऊँचाई दो सौ असी हाथ प्रम कही।।२।।

तनकांति पद्मरागमणी के समान है।

है चिन्ह महिष का कहा जाने जहान है।।

कल्याणकों पाँचों की भू पवित्र कही है।

चंपापुरी निर्वाणभूमि सौख्य मही है।।३।।

जो वासुपूज्य देव की आराधना करें।

सम्यक्त्वशुद्ध तीन रत्न साधना करें।।

जो रोहिणी नक्षत्र दिवस व्रत विधी करें।

तुम नाम मंत्र जाप से भव जल निधी तरें।।४।।

वह हस्तिनापुरी नरेश जो कि अशोक था।

उसकी प्रिया थी रोहिणी जिसको न शोक था।।

इक बार वक्ष कूटती रोती थी भामिनी।

तब रोहिणी ने प्रश्न किया धाय सामनी।।५।।

 हे मात! कहो कौन-सी ये नृत्य कला है।

तब धाय कहे तू हुई उन्मत्त भला है।।

यह देख के आश्चर्य नृपति पुत्र उठाया।

ऊँचे महल की छत से उसे भू पे गिराया।।६।।

तत्क्षण सुरों ने पुत्र को आसन पे बिठाया।

ढोरे चंवर यह आश्चर्य सबको दिखाया।।

राजा मुनी से एक बात पूछता सही।

क्यों नाथ! रोहिणी को रुदन ज्ञान भी नहीं।।७।।

मुनि ने कहा यह रोहिणी व्रत का माहात्म्य है।

रोना किसे कहते हैं जो इसको न ज्ञान है।।

यह फल तो है मनाक् क्रम से मोक्ष मिले है।

संसार के सुख भोग बोध कमल खिले हैं।।८।।

घत्ता

जय जय तीर्थंकर, भव संकट हर, विघ्न अद्रि को चूर्ण करें।

जो तुम पद ध्यावें, शिवसुख पावें, ‘‘ज्ञानमती’ को पूर्ण करें।।९।।

 

ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।

दोहा

धर्मचक्र को धारते, तीर्थंकर जिनदेव।

‘‘ज्ञानमती’ लक्ष्मी सहित, तुरत सिद्ध पद देव।।१०।।

 ।। इत्याशीर्वाद: ।।

 

Tags: Vrat's Puja
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