Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

वक्रता :!

November 21, 2017शब्दकोषjambudweep
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == वक्रता : == सो सद्दो तं धवलत्तणं च रयणायरम्मि उप्पत्ती। संखस्स हिययकुडिलत्तणेण सव्वं पि पब्भट्ठं।।

—गाहारयणकोष : ११३

वही शब्द (ध्वनि), वही शुभ्र ताप और रत्नाकर में उत्पत्ति। यह सब कुछ होते हुए भी शंख अपने हृदय की वक्रता के कारण सर्वत्र भ्रष्ट होता है। व्यक्ति घर, धन, परिवार से महान होने पर भी अपनी वक्रता से सर्वत्र दु:खी होता है।

Tags: सूक्तियां
Previous post अरिहंत! Next post *अनशन :*!

Related Articles

लोभी :!

November 21, 2017jambudweep

संसार :!

November 21, 2017jambudweep

परमागम के अनमोल मोती,दर्शनपाहुड!

March 11, 2015jambudweep
Privacy Policy