माँ वसुन्धरा के अन्दर निधियों का अनमोल खजाना छिपा है। अनादि काल से आदिब्रह्मा, (भ.ऋषभदेव) नारायण श्रीकृष्ण, ऋषि—मुनि, आचार्य देव ने इस विषय पर हमें जानकारियाँ दी है। इसके राज को जानने के लिए वैज्ञानिकों ने तमाम उम्र लगा दी एवं लगाते चले जा रहे हैं । कोई वैज्ञानिक यह नहीं कहता ऐसा होगा। उनके वक्तव्य में ऐसा होने की संभावना है। वैज्ञानिकों ने तूफान, बरसात जमीन के अन्दर पानी, तेल के कुंए आदि की जानकारी के लिए कई यंत्रों का निर्माण किया । इन यंत्रों से प्राप्त जानकारियाँ पूर्णत: सत्य एवं पूर्णत: असत्य नहीं होती। जर्मन और प्रांस ने यंत्रों का अविष्कार किया है जो हमें ऊर्जाओं की जानकारी देता है। उस यंत्र का नाम बोविस है। इस यंत्र से स्वस्तिक की ऊर्जाओं का अध्ययन किया जा रहा है। वैज्ञानिकों ने उसकी जानकारी विश्व को देने का प्रयास किया है। विधिवत पूर्ण आकार सहित बनाये गये एक स्वास्तिक में करीब १ लाख बोविस उर्जाएँ रहती हैं । जानकारियाँ बड़ी अदभुत एवं आश्चर्यजनक हैं।
स्वस्तिक: सव्रतो ऋद्ध
(अमर कोष)
स्वास्तिक का महत्व सभी धर्मों में बताया गया है। विभिन्न देशों में अलग—अलग नामों से जाना जाता है। ४ हजार साल पहले सिन्धु घाटी की सभ्यताओं में भी स्वास्तिक के निशान मिलते हैं । बौद्ध धर्म में स्वास्तिक का आकार गौतम बुद्ध के हृदय स्थल पर दिखाया गया है। मध्य एशिया देशों में स्वास्तिक का निशान मांगलिक एवं सौभाग्य सूचक माना जाता है। नेपाल में हेरंब के नाम से पूजित होते हैं। वर्मा में महा पियेन्ने के नाम से पूजित है। मसोपोटेमिया में अस्त्र—शस्त्र पर विजय प्राप्त हेतु स्वस्तिक चिन्ह प्रयोग किया जाता है। हिटलर ने भी इस स्वास्तिक चिन्ह को ग्रहण किया था। जर्मन के राष्ट्रीय ध्वज में स्वास्तिक विराजमान है। क्रिस्चियन समुदाय क्रोस का प्रयोग करते हैं। वह स्वस्तिक का ही रूप है। जैन समुदाय एवं सनातन समुदाय में स्वस्तिक को मांगलिक स्वरुप माना गया है। वास्तु शास्त्र में चार दिशाएँ होती हैं। स्वास्तिक चारों दिशाओं का बोध कराता है। पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, चारों दिशाओं के देव पूर्व के इन्द्र, दक्षिण, के नाम पश्चिम के वरुण, उत्तर के कुबेर। स्वास्तिक की भुजाएँ चारों उप दिशाओं का ज्ञान कराती है। ईशान, अग्नि, नैऋत्य, वायव्य । स्वस्तिक के आकार में आठों दिशाएँ गर्भित हैं। वैदिक हिन्दु धर्म के अनुवूâल स्वस्तिक को गणपति का स्वरूप माना है। स्वास्तिक की चारों दिशाओं से चार युग—सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग की जानकारी मिलती है।
चार वर्ण— ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र।
चार आश्रम— ब्रह्मचर्य, गृहस्थ , वानप्रस्थ, संन्यास ।
चार पुरुषार्थ— धर्म , अर्थ, काम और मोक्ष।चार वेद इत्यादि अनंत जानकारी का बोधक है।
स्वास्तिक की चार भुजाओं से जिनधर्म के मूल सिद्धांतों का बोध होता है।
समवसरण में भगवान का दर्शन चारों दिशाओं से समान रूप से होता है।
चार घातिया कर्म— ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अंतराय।
चार अनंत चतुष्टय— अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतसुख, अनंतवीर्य।
उपवन भूमि में चारों दिशाओं में क्रमश: अशोक, सप्तच्छद, चंपक और आम्र वन होते हैं।
चार अनुयोग— प्रथमानुयोग, करणानुयोग,चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग।
चार निक्षेप—नााम , स्थापना, द्रव्य, भाव। चार कषाय— क्रोध, मान, माया, लोभ।
मुख्य चार प्राण— इन्द्रीय, बल, आयु, श्वासोच्छवास ।
चार संज्ञा— आहार, निंद्रा, मैथुन, परिग्रह।
चार दर्शन— चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल । चार आराधना— दर्शन, ज्ञान, चारित्र एवं तप।
चार गतियां— देव, मनुष्य, तिर्यंच, नरक। स्वस्तिक के बारे में इतनी जानकारी देने का मुख्य उद्देश्य— स्वास्तिक के आकार में अनगिनत जानकारियाँ अनेक शक्तियों से गर्भित है— शरीर की बाहरी शुद्धि करके शुद्ध वस्त्रों को धारण करके ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए (जिस दिन स्वस्तिक बनावें) पवित्र भावनाओं से नौ अंगुल का स्वास्तिक ९० डिग्री के एंगल में सभी भुजाओं को बराबर रखते हुए बनायें। केसर से, कुमकुम से, सिन्दुर और तेल के मिश्रण से अनामिका अंगुलि से ब्रह्म मुहूर्त में विधिवत बनाने पर उस घर के वातावरण में कुछ समय के लिए अच्छा परिवर्तन महसूस किया जा सकता है। स्वास्तिक के अंदर बोविस यंत्र के द्वारा उर्जाओं की जो जाँच की गई लगभग १ लाख सकारात्मक ऊर्जाओं का अस्तित्व रहता है। भवन या फ्लैट के मुख्य द्वार पर एवं हर रुम के द्वार पर अंकित करने से सकारात्मक ऊर्जाओं का आगमन होता है। मनुष्य से भूल होना स्वाभाविक है। विद्ववत् जन त्रुटियों की जानकारी से अवगत करावें।