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विश्व के कोने कोने में विराजमान है जैनधर्म

October 16, 2022जैनधर्म की गौरव गाथाSurbhi Jain

विश्व के कोने कोने में विराजमान है जैनधर्म


अमरीका, फिनलैण्ड, सोवियत गणराज्य, चीन एवं मंगोलिया, तिब्बत, जापान, ईरान, तुर्किस्तान, इटली, एबीसिनिया, इथोपिया, अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान आदि विभिन्न देशों में किसी न किसी रूप में वर्तमानकाल में जैनधर्म के सिद्धान्तों का पालन देखा जा सकता है। इन देशों में मध्यकाल में आवागमन के साधनों का अभाव एक-दूसरे की भाषा से अपरिचित रहने के कारण, रहन-सहन, खान-पान में कुछ-कुछ भिन्नता आने के कारण हम एक-दूसरे से दूर हटते ही गए और अपने प्राचीन सम्बन्धों को भूल गए।

सम्पूर्ण विश्व में जैनधर्म था, इसका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-

  • अमरीका में आज भी अनेक स्थलों पर जैनधर्म श्रमण संस्कृति का जितना स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। वहाँ जैन मंदिरों के खण्डहर प्रचुरता में पाये जाते हैं।
  • अफगानिस्तान, ईरान, इराक, टर्की आदि देशों तथा सोवियत संघ के जीवन सागर एवं ओब की खाड़ी से भी उत्तर तक तथा लाटविया से उल्लई के पश्चिमी छोर तक किसी काल में जैन धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार था।
  • चीन की संस्कृति पर जैन संस्कृति का व्यापक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। चीन में भगवान ऋषभदेव के एक पुत्र का शासन था। जैन संघों ने चीन में अहिंसा का व्यापक प्रचार-प्रसार किया था। अतिप्राचीनकाल में भी श्रमण संन्यासी यहाँ बिहार करते थे। हिमालय क्षेत्र आविस्थान को दिया और कैस्पियाना तक पहले ही श्रमण संस्कृति का प्रचार-प्रसार हो चुका था।
  • चीन के जिगरम देश का ढाकुल नगर राजा और पूजा सब जैन धर्मानुयायी हैं। पीकिंग नगर में ‘तुवावरे’ मासन व पंचाम जाति के जैनियों के ३०० मंदिर हैं, जो सब मंदिर शिखर बंद है। इनमें जैन प्रतिमाएँ खड्गासन व पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं। कोरिया में भी जैनधर्म का प्रचार रहा है।
  • तिब्बत में जैनी आवरे जाति के हैं। एरुल नगर में एक नदी के किनार २०,००० जैन मंदिरहूँ खिलवन में १०४ शिखरबंद जैन मंदिर हैं। वे सब मंदिर रत्नजड़ित और मनोरम हैं। यहाँ के वनों में ३०,००० जैन मंदिर हैं।
  • इस्लाम की स्थापना के समय अधिकांश जैनी अरब छोड़कर दक्षिण भारत आ गए। के खण्डहर हैं। जो देखने नहीं दिए जाते। फोटो लेना भी मना किया गया हैं |
  • कम्बोडिया के प्राचीन में जैन परम्परा के अस्तित्व को देखा जा सकता हैं |
  • थाईलैण्ड में नागबुद्ध नाम से पूजित सभी प्रतिमाएँ भगवान् पार्श्वनाथ की हैं।
  • सिकन्दर अपने साथ कल्याण मुनि को ले गया था। उनके कारण बहुत से यूनानी जैन बने। उन्होंने ने भी अंत समय सल्लेखना धारण की। दिगम्बर मूर्तियाँ भी बनाई गई थीं। यूनानी साहित्य में यह वर्णन मिलता है।
  • बौद्ध शास्त्र की लेखिका श्रीमति डेविड लिखती हैं-श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार दिगम्बर साधु हो गया था। उन्होंने ईरान में धर्म प्रचार किया, जिससे वहाँ राजकुमार अद्रिक जैन साधु बना।
  • श्रीलंका में ई. पू. चौथी शताब्दी में सिंहनरेश पाण्डुकाभय ने वहाँ जैन मंदिर व मठ बनवाया था। इक्कीस राजाओं के राज्य तक ये मठ व मंदिर मौजूद थे, किन्तु ई. पू. ३८ में राजा वट्टगामिनी ने उनको नष्ट करके बौद्ध विहार बनवाया।
  • नेपाल में जैनधर्म था। वहाँ के पशुपतिनाथ मंदिर में आज भी अनेक जैन मूर्तियाँ रखी हुई हैं। वर्तमान में भी यहाँ काफी जैन समाज है । १९९१ में महावीर जैन निकेतन बनाया गया है। एक ही परिसर में नीचे-ऊपर दिगम्बर और श्वेताम्बर मंदिर बने हुए हैं। इसके अतिरिक्त अब अनेक जैन मंदिर और भी स्थानों पर बन चुके हैं।
  • पाकिस्तान में ६ मंदिर हैं। इतिहास की किताबें बताती हैं कि चौदहवीं सदी में इन मंदिरों को उस वक्त के राजपूत राजाओं ने बनवाया था। नगरपारकर में १ मंदिर, ३ मंदिर बोधिसार में, १ गोरी और १ वीरवाह में बना है। गोरी मंदिर को छोड़कर बाकी मंदिरों का ताल्लुक भगवान् महावीर के दौर से है।
  • ७वीं ताब्दी के चीनी यात्री ह्वेन-सांग के अनुसार पंजाब के सिंहपुर आदि स्थानों एवं अफगानिस्तान तक दिगम्बर जैनियों का बाहुल्य था। उनकी संख्या पर्याप्त थी। रावलपिण्डी में कोटेरा नामक ग्राम के निकट मूर्ति नामक पहाड़ी पर डॉ. स्टोन को प्राचीन मंदिर मिला था।
  • ईरान, स्याम और फिलिस्तीन में दिगम्बर जैन साधुओं का उल्लेख पाया जाता है।
  • यूनानी लेखक मिस्र, एबीसीनिया और इथोपिया में भी दिगम्बर मूर्तियों का अस्तित्व बताते हैं।
  • कम्बोडिया, चम्पा, बल्गेरिया आदि में भी जैनधर्म का प्रचार हुआ है।
  • ऋषभदेव ने बहली (बेक्ट्रिया), यवन (यूनान), सुवर्णभूमि (वर्मा), पण्डव (ईरान) आदि देशों में भ्रमण किया था।
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