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शाकाहार एवं अहिंसा के प्रति विभिन्न धर्मों का मत!

July 29, 2017विशेष आलेखaadesh

शाकाहार एवं अहिंसा के प्रति विभिन्न धर्मों का मत


जैनधर्म

अहिंसा जैन धर्म का सबसे मुख्य सिद्धांत है। अिंहसा जैनधर्म का प्राण है। किसी भी जीव की हिंसा मत करो, हिंसा करने वाले का सब धर्म-कर्म व्यर्थ हो जाता है। संसार में सब को अपनी जान प्यारी है, कोई मरना नहीं चाहता, अत: किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो। सम्पूर्ण जीव ‘सृष्टि के प्रति अपनेपन, प्रेम और आपस में सहिष्णुता, यही अहिंसा का अंग है। ‘जिओ और जीने दो’ यही भगवान महावीर का संदेश है।

हिन्दू (सनातन) धर्म

मांसाहार करने वाले, मांस का व्यापार करने वाले और मांस के लिए जीव हत्या करने वाले लोग समान रूप से दोषी हैं। उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति कभी भी नहीं हो सकती है। दूसरे का मांस खाकर अपना मांस बढ़ाने की इच्छा जो रखता है, वह आदमी पापी और सबसे अधिक निर्दयी होता है।
-अनुशासन पर्व (महाभारत)

क्रिश्चियन (ईसाई) धर्म

पशु वध करने के लिए नहीं है। मैं दया चाहूँगा, बलिदान नहीं। तुम रक्त बहाना छोड़ दो, अपने मुँह में मांस मत डालो। ईश्वर बड़ा दयालु है उसकी आज्ञा है कि मनुष्य पृथ्वी से उत्पन्न शाक, फल और अन्न से अपना जीवन निर्वाह करे। ईसा मसीह (जीसस क्राईस्ट) के दो प्रमुख सिद्धांत- तुम जीव हत्या नहीं करोगे, अपने पड़ोसी से प्यार करो।

इस्लाम धर्म

‘बिस्मिल्ला हिर्रहामार्निर्रहीम’ खुदा का विश्लेषण ‘रहीम’ है अर्थात् समस्त विश्व पर रहम, दया करने वाला चिराग-दीपक। सभी सूफी संतों ने नेक जीवन, दया, सादे शाकाहारी भोजन पर बहुत जोर दिया है। इस्लामधर्म के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद अपने अनुयायियों को कहते हैं, ‘पशु मनुष्य के छोटे भाई हैं’ ‘‘अल्लाह के पास पशु बलि का न मांस पहुँचता है, न खून, बल्कि वो वहाँ पहुँचता है जो आपके पास शुद्ध है, पवित्र है।’’ यदि तुम्हें बलि देनी है तो अपने अहम भाव और अभिमान की बलि दो।

सिक्ख धर्म

सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक ने जीवों पर दया करने का उपदेश दिया है। ‘‘उनसे परमात्मा कभी प्रसन्न नहीं हो सकता, जो जीव हत्या करते हैं।’’ अपने शिष्यों को उपदेश देते समय वे उन्हें मांस भक्षण और मद्यसेवन से दूर रहने की सलाह देते थे। मांस भक्षी लोगों को वे राक्षस कहते थे। गुरुद्वारों में लंगर में अनिवार्यत: शाकाहार ही बनता है।

यहूदी धर्म

पृथ्वी के हर पशु को और उड़ने वाले पक्षी को तथा उस हर प्राणी को जो धरती पर रेंगता है, जिसमें जीवन है, उन सबके लिए मैंने मांस की जगह हरी पत्ती दी है, जब तुम प्रार्थना करते हो तो मैं उसे नहीं सुनता, यदि तुम्हारे हाथ खून से रंगे हैं।

बौद्ध धर्म

सारे प्राणी मरने से डरते हैं, सब मृत्यु से भयभीत हैं, उन्हें अपने समान समझो। अत: न उन्हें कष्ट दो और न उनके प्राण लो। बौद्ध धर्म के पंचशील अर्थात् सदाचार के पांच नियमों में प्रथम व प्रमुख नियम किसी प्राणी को दुःख न देना, अिंहसा ही है व पांचवाँ नियम शराब आदि नशीले पदार्थों से परहेज की शिक्षा है। वही भोजन उचित बताया गया है, जिसमें माँस व खून का अंश न हो।
 
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