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साधु -सम्मेलन एवं युग प्रतिक्रमण

June 19, 2022ऋषभगिरि मांगीतुंगीSurbhi Jain

महोत्सव में हुआ साधु सम्मेलन का महत्वपूर्ण आयोजन

‘सामाजिक संगठन एवं समरसता पर हुई विशेष चर्चा’

महोत्सव के मध्य दिनाँक २० फरवरी २०१६ को मध्यान्ह में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की भावनानुसार समिति द्वारा साधु सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन आर्ष परम्परा के उन्नयन एवं जैन पुरातत्व के संरक्षण हेतु आयोजित किया गया, जिसमें प्राचीन तीर्थों के जीर्णोद्धार व विकास के संदर्भ में सभी साधुओं ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये। विशेषरूप से आर्ष परम्परा के संरक्षण व उन्नयन हेतु भी इस अवसर पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई और सभी साधुओं का एकमत यही कहना रहा कि समाज को बीसपंथ व तेरहपंथ के भेदभाव से बचकर सदैव संगठित रहना चाहिए। निष्कर्ष रूप में सभी मुनि, आर्यिकाओं की यही भावना थी कि जिस तीर्थ पर अथवा जिस मंदिर में जो परम्परा चल रही है, उसका उस क्षेत्र पर सतत ही निराबाध पालन होना चाहिए।

अर्थात् जहाँ बीसपंथ है, महिलाएं अभिषेक करती हैं, वहाँ की परम्परा इसी प्रकार बनी रहकर किसी के द्वारा हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए तथा जहाँ तेरहपंथ की परम्परा चल रही है, वहां उसी परम्परा के सिद्धान्तों के अनुसार पूजा-पाठ-अभिषेक की विधि सम्पन्न होना चाहिए। इसी क्रम में सभी का यह निष्कर्ष मान्य हुआ कि प्राचीन जिनमंदिरों के जीर्णोद्धार एवं विकास के लिए कभी उस मंदिर के पुरातत्त्व को एवं वहां चली आ रही परम्पराओं को मिटाना नहीं चाहिए, अपितु प्राचीनता का संरक्षण रखते हुए उस मंदिर अथवा तीर्थ का विकास होना चाहिए। शासन देवी-देवताओं के विषय में सभी का यही मन्तव्य था कि जिस मंदिर में तीर्थंकर भगवन्तों के शासन देवी-देवताओं की प्रतिमाएं विराजमान हैं, उनको उस मंदिर से हटाने का प्रयास नहीं करना चाहिए, जिससे समाज में किन्हीं की भावनाओं को ठेस न लगे और जिस मंदिर में शासन देवी-देवताओं की प्रतिमाएं नहीं रखने का प्रावधान है, वहाँ भी अनावश्यक प्रतिमाएं विराजमान करने का प्रयास नहीं होना चाहिए।

साधुओं/विद्वानों के निमित्त से अथवा श्रावकों के निमित्त से समाज में यदि दोनों परम्पराओं के प्रति इस प्रकार का समादर प्रतिष्ठापित होता है, तो यह सामाजिक संगठन एवं एकता के लिए दिगम्बर जैन समाज में एक वरदान सिद्ध होगा। इस प्रकार सभी साधुओं द्वारा विभिन्न चर्चाओं के माध्यम से एक प्रस्ताव भी पारित किया गया, जो इस पत्रिका में पृष्ठ क्रमांक २९८ पर समाहित है।

साधु संघों का हुआ युग प्रतिक्रमण

विशेष उपलब्धिस्वरूप महोत्सव में दिनाँक २१ फरवरी २०१६ को ‘‘युग प्रतिक्रमण’’ का आयोजन किया गया। प्रात:काल आचार्यश्री अनेकांतसागर जी महाराज व पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के संघ सहित समस्त साधुसंघ एक साथ एकत्रित हुए और सभी ने युग प्रतिक्रमण करके जैन इतिहास की प्राचीन परम्परा को प्रस्तुत किया। ज्ञात होवे कि प्राचीनकाल में दिगम्बर जैन साधुसंघों का युग प्रतिक्रमण प्रत्येक ५ वर्षों में एक बार एक स्थान पर एकत्रित होकर किया जाता था अत: इसी परम्परा को याद दिलाते हुए सभी साधुसंघों ने एक साथ बैठकर युग प्रतिक्रमण सम्पन्न किया, जो इस महोत्सव के लिए एक आदर्श बना।

 

 

आगम चर्चा से सराबोर हुए सभी संत

पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का सान्निध्य प्राप्त करके आने वाले प्रत्येक संत ने गौरव का अनुभव किया। सभी संतों के मन में जितनी भावनाएँ ऐतिहासिक प्रतिमा के दर्शन करने की थी, वैसी ही भावनाएं इस सदी की ऐतिहासिक साध्वी के रूप में पूज्य माताजी से मिलने की थी।

 

चूँकि वर्तमान में पूज्य माताजी बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी में दीक्षित समस्त १४००-१५०० साधु-साध्वियों में सर्वप्राचीन दीक्षा प्राप्त हैं अत: पूज्य माताजी से मिलना और उनके जीवन के प्रत्यक्ष अनुभवों से साक्षात्कार करना यह सभी संतों की विशेष अभिरुचि और ज्ञानपिपासा का कारण था। अत: इन्हीं भावनाओं के आधार पर महोत्सव में पधारने वाले सभी साधु-संत पूज्य माताजी के साथ एवं आपस में आगम चर्चा करके आल्हाद की अनुभूति से सराबोर हुए। इस संदर्भ में सभी साधुओं की एक विशेष वार्ता दिनाँक २२ फरवरी २०१६ को प्रात: रत्नत्रय निलय में सम्पन्न हुई।

 

Tags: Mangitungi festival 2016
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