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18. साधु के २८ मूलगुण

February 12, 2017Booksjambudweep

साधु के २८ मूलगुण


(अन्तर-ग्रंथों में)

मूलाचार में २८ मूलगुणों के नाम-

पंचय महव्वयाइं समिदीओ पंच जिणवरुद्दिट्ठा।
पंचेविंदियरोहा छप्पि य आवासया लोओमूलाचार पूर्वार्ध पृ. ५। ।।२।।
आचेलकमण्हाणं खिदिसयणमदंतघंसणं चेव।
ठिदिभोयणेयभत्तं मूलगुणा अट्ठवीसा दु।।३।।

अर्थ – पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रियों का निरोध, छह आवश्यक, लोच, आचेलक्य, अस्नान, क्षितिशयन, अदन्तधावन, स्थितिभोजन और एकभक्त ये अट्ठाईस मूलगुण जिनेन्द्रदेव ने यतियों-मुनियों के लिए कहे हैं।।२-३।। जिनसहस्रनाम स्तवन (पं. आशाधरविरचित) की प्रस्तावना में साधु परमेष्ठी के २८ मूलगुण भिन्न प्रकार से हैं- साधु परमेष्ठी के २८ गुण- दस सम्यक्त्वगुण, मत्यादि पाँच ज्ञानगुण और तेरह प्रकार का चारित्र, ये साधु के २८ गुण माने गए हैं। इनमें से सम्यक्त्व के दस गुण इस प्रकार हैं- # आज्ञा सम्यक्त्व # मार्ग सम्यक्त्व # उपदेश सम्यक्त्व # सूत्र सम्यक्त्व # बीज सम्यक्त्व # संक्षेप सम्यक्त्व  विस्तारसम्यक्त्व # अर्थ सम्यक्त्व # अवगाढ़ सम्यक्त्व # परमावगाढ़ सम्यक्त्व । मतिज्ञानादि पाँच ज्ञानगुण और पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्तिरूप तेरह प्रकार का चारित्र सर्वविदित ही है।

 

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