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सिद्धभक्ति!

March 13, 2014दस भक्ति संग्रहjambudweep

प्राकृत सिद्ध भक्ति


अट्ठविह-कम्ममुक्के, अट्ठ-गुणड्ढे अणोवमे सिद्धे।

अट्ठमपुढवि-णिविट्ठे, णिट्ठिय-कज्जे य वंदिमो णिच्चं।।१।।

तित्थयरे-दरसिद्धे, जल-थल-आयासणिव्वुदे सिद्धे।

अंतयडे-दरसिद्धे, उक्कस्स-जहण्ण-मज्झिमोगाहे।।२।।

उड्ढ-मह-तिरियलोए, छव्विह-काले य णिव्वुदे सिद्धे।

उवसग्ग-णिरुवसग्गे, दीवोदहि-णिव्वुदे य वंदामि।।३।।

पच्छायडेय सिद्धे, दुग-तिग-चदुणाण-पंच-चदुर-जमे।

परिपडिदा-परिपडिदे, संजम-सम्मत्त-णाण-मादीहिं।।४।।

साहरणा-साहरणे, सम्मुग्घादेदरे य णिव्वादे।

ठिदपलियंक-णिसण्णे, विगयमले परमणाणगे वंदे।।५।।

पुंवेदं वेदंता, जे पुरिसा खवगसेढि-मारूढा।

सेसोदयेण वि तहाज्झाणु-वजुत्ता य ते हु सिज्झंति।।६।।

पत्तेयसयंबुद्धा, बोहियबुद्धा य होंति ते सिद्धा।

पत्तेयं पत्तेयं, समये समयं पणिवदामि सदा।।७।।

पण-णव-दु-अट्ठवीसा-चउतिय-णवदी य दोण्णि पंचेव।

वावण्णहीण-बियसय-पयडिविणासेण होंति ते सिद्धा।।८।।

अइसय-मव्वावाहं, सोक्ख-मणंतं अणोवमं परमं।

इंदियविसयातीदं, अप्पत्तं अच्चवं च ते पत्ता।।९।।

लोयग्ग-मत्थयत्था, चरम-सरीरेण ते हु क्चूइन्णा।

गयसित्थ-मूसगब्भे, जारिस-आयार तारिसायारा।।१०।।

जर-मरण-जम्मरहिया, ते सिद्धा मम सुभत्ति-जुत्तस्स।

दिंतु वरणाण-लाहं, बुहयण-परिपत्थणं परमसुद्धं।।११।।

किच्चा काउस्सग्गं, चउरट्ठय-दोसविरहियं सुपरिसुद्धं।

अइभत्ति-संपउत्तो, जो वंदइ लहु लहइ परमसुहं।।१२।।

अंचलिका

इच्छामि भंते! सिद्धभक्ति-काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं सम्मणाण-सम्मदंसण-सम्मचारित्तजुत्ताणं, अट्ठविह-कम्मविप्प-मुक्काणं, अट्ठगुण-संपण्णाणं, उड्ढलोय-मत्थयम्मि पयट्ठियाणं, तवसिद्धाणं, णयसिद्धाणं, संजमसिद्धाणं, चरित्तसिद्धाणं, अतीताणागद- वट्टमाण-कालत्तयसिद्धाणं, सव्वसिद्धाणं णिच्चकालं अंचेमि, पूजेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं।

Tags: Prakrit Bhakti
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