

श्रीसुमति तीर्थंकर जगत में, शुद्धमति दाता कहे।
प्रभु चार गतियों में बहुत ही, घूमकर अब थक चुका। 


अहमिन्द्र से भि निगोद तक, सुख दु:खमयी सब पद धरे।
बहुविध अयश से खिन्न हो, नहिं स्वात्मगुण यश पा सका। 
लड्डू इमरती पूरियाँ, फेनी मलाई खीर से।
दीपक अंधेरा दूर करता, एक कोठे का अरे। 


बादाम पिस्ता सेव केला, आम दाड़िम फल लिया।




चिन्मूरति परमात्मा, चिदानंद चिद्रूप। 