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सूक्ष्म प्राणायाम की आठ विधियां!

April 11, 2017प्राकृतिक चिकित्साjambudweep

प्राणायाम एवं योगासन

सूक्ष्म प्राणायाम की आठ विधियां


१. भस्त्रिका प्राणायाम

इस प्राणायाम में नाक द्वारा लम्बी श्वांस लेकर अन्दर तक भरे एवं पूरी शक्ति के साथ श्वांस को लम्बा करके बाहर छोड़े। लेकिन जिनके फैफड़े व हृदय कमजोर हों, उन्हें यह प्राणायाम धीमी गति से करना चाहिए।

लाभ : इस प्राणायाम को करने से श्वांस रोग, दमा, एलर्जी, सर्दी जूखाम, टान्सिल, साइनस एवं सभी कफ रोगों में फायदा होता है। समय : यह प्राणायाम कम से कम २ मिनट या ३० बार करें।

‘‘जो छोटे छोटे प्राणियों से प्यार नहीं कर सकता, वह ईश्वर से प्यार क्या करेगा।’’

२. कपालभाति प्राणायाम

इस प्राणायाम में श्वांस को दोनो नासिका द्वारा पूरी शक्ति के साथ निकालते रहें। इसकी विधि भस्त्रिका प्राणायाम से थोड़ी अलग है। भस्त्रिका में समान रूप से श्वांस लेना और छोड़ना पड़ता है जबकि कपाल भाति में केवल श्वांस छोड़ना पड़ता है श्वांस को भरने की कोशिश नहीं करते हैं, बल्कि पूरी एकाग्रता के साथ श्वांस को छोड़ते रहना चाहिए। लाभ : इस प्राणायाम से चेहरा कान्तिमय एवं तेजमय होता है तथा दमा, ब्लडप्रशैर, शूगर, मोटापा, कब्ज, गैस, डिप्रेशन, प्रोस्टेट एवं किडनी सम्बन्धित सभी रोगों में बहुत ही लाभ होता है। समय : इस प्राणायाम को कम से कम ३ तीन मिनट या १०० बार करना चाहिए। मोटापा सब बिमारियों की जड़ है 

३. अनुलोम-विलोम प्राणायाम

 

इस प्राणायाम में दाएं हाथ के अंगूठे से दायी नासिका को दबाएं और बायीं नासिका को मध्यमा अंगूलि से दबाएं एवं् दायी नासिका से श्वास को पूरी ताकत से छोड़कर फिर उसी नासिका से श्वांस ले, फिर बांयी नासिका से श्वांस लें और दूसरी नासिका से श्वांस को छोड़ें, इस क्रम को बार बार दोहराएं। लाभ : इस प्राणायाम को करने से विचार एवं संस्कारों में शुद्धि आती है। शरीर के रोग जैसे अस्थमा, सर्दी , वातरोग, साइनस, खांसी, डिप्रेशन एवं स्नायु दुर्बलता आदि में बहुत लाभ होता है तथा नियमित अभ्यास से शिराओं में आए हुए ब्लोकेज भी खुलने की सम्भावना है। समय : इस प्राणायाम को कम से कम ५० बार करें।

‘‘बुद्धिमान व्यक्ति दूसरों की भूल से अपनी भूल सुधारता है’’

४. भ्रामरी प्राणायाम

इस प्राणायाम में श्वांस को पूरा अंदर भरकर दोनों हाथो के अंगूठे से दोनो कान को कान के बाहरी पर्दा द्वारा बन्द करे और नीचेकी तीनों अँगुली से आंखों को बंद करें एवं दोनो तर्जनी अंगूली को दोनो आँखों के भौंहो पर रखें तत्पश्चात मुँह को बंद करके नाक से भंवरे की आवाज की तरह ज्यादासमय तक आवाज निकालते रहें। लाभ : इस प्राणायाम से भगवान के प्रति ध्यान करने में एकाग्रता आती है तथा मन की अस्थिरता, डिप्रेशन, ब्लड प्रैशर एवं् मानसिक तनाव आदि में काफी लाभप्रद है। समय : इस प्रक्रिया को कम से कम ५ बार करें।

‘‘किसी भी शुभ कार्यो के लिए प्रेरणा, प्रोत्साहन एवं योगदान देते रहें’’

५. उदर (पेट) प्राणायाम 

 (क) इस प्राणायाम में नासिका के द्वारा पेट के अन्दर की श्वांस को पूरी ताकत के साथ बाहर निकाल दें। श्वांस निकालने के बाद श्वांस को न लेने व छोड़ने की स्थिति में २ सेकेन्ड के लिए स्थिर हो जाएं।

(ख) अब दोनो हाथो को घुटनो पर रखकर पेट को कम से कम १५ सैकण्ड तक पूरी शक्ति के साथ अन्दर दबाएं, फिर धीरे धीरे श्वांस लेना शुरू करें। लाभ : इस प्राणायाम को करने से मन को शान्ति मिलती है, बुद्धि में तीव्र विकास होता है। पेट के अन्दर की नाड़ियो का व्यायाम होता है एवं उदर रोगों में बहु लाभदायक है। समय इस प्राणायाम को कम से कम तीन बार करना चाहिए। (हृदय के रोगी को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए)

‘‘सबसे मूल्यावान वस्तु है- समय और मन’’

६. कंठ प्राणायाम 

(क) इस प्राणायाम को करते समय गले को सिकोड़ ले फिर श्वाँस को अन्दर भरतें समय गले में खर्राटे जैसी आवाज करते हुए श्वाँस ले। खर्राटे की आवाज गले से ही करने की कोशिश करें, नाक से नहीं करना चाहिए। श्वाँस छोड़ते समय दायीं हाथ के अंगूठे से दांयी नाक को बन्द करके बांयी नाक से श्वाँस छोड़ना चाहिए तथा १०—१५ दिन अभ्यास करने के बाद श्वांस को १५ सैकेण्ड रोककर श्वाँस छोड़े।

(ख) जमीन पर बैठकर दोनो पैर पिछे की तरफ करके दोनो हाथ सामने जमीन पर टीका कर सामने की तरफ झुक जाएं। जीभ पूरी तरह से बाहर निकाल कर गले से सिंह गर्जन की तरह आवाज कम से कम १०/१५ सेकेन्ड तक निकालते रहे। यह क्रिया २/३ बार करें। लाभ : इस प्राणायाम को करने से थाइराइड, पीलिया, अनिन्द्रा, मानसिक तनाव आदि में लाभ होता है। इसमें बच्चों का हकलाना बिमारी में फायदा होता है तथा आवाज में मधुरता आती है। समय : इस प्राणायाम को कम से कम तीन बार करना चाहिए

‘‘व्यंग और कटाक्ष वचन कभी नहीं बोलने चाहिए’’

७.कर्ण प्राणायाम 

इस प्राणायाम में दोनो नाक द्वारा श्वाँस भरें और मुँह बन्द करके दोनो नाक को दाहिने हाथ के अंगुठा और तर्जनी अँगूली से बन्द करने के बाद मुंह फुलाकर श्वाँस को कान की तरफ कम से कम १० सैकण्ड तक ढकेलने की कोशिश करें, फिर नाक से अँगूली हठाकर श्वाँस को जोर से बाहर निकालें। लाभ : यह प्राणायाम करने से कान की नसो में रक्त संचार एवं श्रवण इन्द्रीयां ज्यादा सक्रिय तथा कर्ण सम्बन्धी रोगों में फायदा होता है। समय : इस व्यायाम को कम से कम ३ बार करें।

‘‘अच्छी शिक्षा जहां से भी मिलें तुरन्त लें’’

८. ओंकार प्राणायाम 

 सभी प्राणायाम को करने के बाद ॐ का ध्यान करें। ॐ का ध्यान करते समय आधी आंख को खोलकर नासिका के अग्र भाग को देखते हुए ‘‘ओम्’’ का उच्चारणर करते रहें तथा धीरे धीरे इस अभ्यास को बढ़ाकर कम से कम १ मिनट ‘‘ओम्’’का जाप करने की कोशिश करें। लाभ : ॐ का ध्यान और जाप करने से मन में एकाग्रता आती है मानसिक शान्ति मिलती है तथा लगातार अभ्यास करने से हम अपनी आत्मा के स्वरूप को पहचान कर खुद को अपने ईष्ट देव के समीप महसूस कर सकते हैं। समय : इस प्राणायाम को कमसे कम एक मिनट या तीन बार करें।

‘‘फूल और संगीत से जो प्रेम नहीं करता उस मनुष्य का मन कभी निरमल एवं दयावान नहीं हो सकता’’

 

Tags: Yoga
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