
सब बीजाक्षर में ह्रीं एक, बीजाक्षर पद कहलाता है।
ह्रीं को मेरा नमस्कार है, चौबिस जिनवर से जो साकार है। 
दुनिया का राग तजकर आ गया, तेरा विराग मुझको भा गया।
इन्द्रियसुख में मैं अब तक लीन था, आतम के ज्ञान से विहीन था।
चौबीसों जिनवर जग को छोड़कर, संयम लिया सबसे मुख मोड़कर।
कितने ही व्यंजन मैंने खाए हैं, लेकिन न तृप्ती कर पाए हैं।
विद्युत के दीपक जग में जलते हैं, रात्रि का अंंधकार हरते हैं।
कर्मों से निर्मित यह संसार है, दुर्लभ इससे हो जाना पार है।
मनवांछितफल की सिद्धी हेतु मैं, फिरता हूँ मारा मारा देव मैं। 


जय जय प्रभुवर, चौबिस जिनवर, से सहित ह्रीं सुखकार है,