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तीर्थंकर जन्मभूमि वंदना

June 13, 2014जिनेन्द्र भक्तिjambudweep

तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थ वंदना


शेर छन्द


जय जय जिनेन्द्र जन्मभूमियाँ प्रधान हैं।

जय जय जिनेन्द्र धर्म की महिमा महान है।।

जय जय सुरेन्द्रवंद्य ये धरा पवित्र हैं।

जय जय नरेन्द्र वंद्य ये तीरथ प्रसिद्ध हैं।।१।।

मिश्री से जैसे अन्न में मिठास आती है।

वैसे ही पवित्रात्मा तीरथ बनाती हैं।।

हो गर्भ जन्म दीक्षा व ज्ञान जहाँ पर।

वे तीर्थ कहे जाते हैं आज धरा पर।।२।।

जिनवर जनम से पहले वहाँ इन्द्र आते हैं।

नगरी को सुसज्जित कर उत्सव मनाते हैं।।

सुंदर महल सजाया जाता है वहाँ पर।

जिनवर के पिता-माता रहते हैं वहाँ पर।।३।।

पहली जनमभूमि है नगरि तीर्थ अयोध्या।

शाश्वत जनमभूमी प्रभू की कीर्ति अयोध्या।।

इस युग में किन्तु पाँच जिनेश्वर वहाँ जन्मे।

वृषभाजित अभीनंदन सुमति अनंत वे।।४।।

श्रावस्ती ने संभव जिनेन्द्र को जनम दिया।

कौशाम्बी में श्रीपद्मप्रभू ने जनम लिया।।

वाराणसी सुपाश्र्व पाश्र्व से पवित्र है।

श्रीचन्द्रपुरी चन्द्रप्रभू से प्रसिद्ध है।।५।।

काकन्दी को सौभाग्य मिला पुष्पदंत का।

भद्दिलपुरी जन्मस्थल शीतल जिनेन्द्र का।।

श्रेयाँसनाथ से पवित्र सारनाथ है।

जिनशास्त्रों में जो सिंहपुरी से विख्यात है।।६।।

श्रीवासुपूज्य जन्मभूमि चम्पापुरी है।

कम्पिल जी विमलनाथ जिनकी जन्मभूमि है।।

तीरथ रतनपुरी है धर्मनाथ की भूमी।

रौनाही से प्रसिद्ध है वह आज भी भूमी।।७।।

श्रीशांति कुंथु अरहनाथ हस्तिनापुर में।

जन्मे जिनेन्द्र तीनों त्रयलोक भी हरषे।।

मिथिलापुरी में मल्लि व नमिनाथ जी जन्मे।

तीर्थेश मुनिसुव्रत जी राजगृही में।।८।।

है जन्मभूमि शौरीपुर नेमिनाथ की।

महावीर से कुण्डलपुरी नगरी सनाथ थी।।

चौबीस जिनवरों की जन्मभूमि को नमूँ।

कर बार-बार वंदना सार्थक जनम करूँ।।९।।

श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा मिली।

कई जन्मभूमियों में नई ज्योति तब जली।।

उन प्रेरणा से जन्मभूमि वन्दना रची।

प्रभु जन्मभूमि तीर्थों की भक्ति मन बसी।।१०।।

प्रभु बार-बार मैं जगत में जन्म ना धरूँ।

इक बार जन्मधार बस जीवन सफल करूँ।।

इस भाव से ही जन्मभूमि वन्दना करूँ।

निज भाव तीर्थ प्राप्ति की अभ्यर्थना करूँ।।११।।

यह भक्तिसुमन थाल है गुणमाल का प्रभु जी।

अर्पण करूँ है भावना यात्रा करूँ सभी।।

बस ‘‘चन्दनामती’’ की इक आश है यही।

संयम की ही परिपूर्णता जीवन की हो निधी।।१२।।

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