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१८. चार प्रकार के देवों के 32 इन्द्र!

April 13, 2020गौतम गणधर वाणीjambudweep

चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र


(अध्याय १) 

‘‘अमरमुकुटच्छायोद्गीर्णप्रभापरिचुम्बितौ।।’’

अमृतर्विषणी टीका—

अर्थ—देवेंद्रगण जब आपको नमस्कार करते हैं तब आपके चरण कमल उनके मुकुटों की मणियों की कांति से स्पर्शित होते हैं। ३२ इंद्र अपने असंख्य देव—देवी परिवार के साथ आपके चरणों में नमस्कार करते हैं— 

४ प्रकार के देवों के ३२ इन्द्र—

भवनवासी देवों के १० भेदों के मुख्य १० इंद्र— (१) असुरकुमार इन्द्र, (२) धरणकुमार इन्द्र, (३) सुपर्णकुमार इन्द्र, (४) द्वीपकुमार इन्द्र, (५) उदधीकुमार इन्द्र, (६) स्तनितकुमार इन्द्र, (७) विद्युत्कुमार इन्द्र, (८) दिक्कुमार इन्द्र, (९) अग्निकुमार इन्द्र, (१०) वायुकुमार इन्द्र। व्यंतर देवों के आठ भेदों के मुख्य ८ इंद्र— (१) किन्नर इन्द्र, (२) किंपुरुष इन्द्र, (३) महोरग इन्द्र, (४) गंधर्व इन्द्र, (५) यक्ष इन्द्र, (६) राक्षस इन्द्र, (७) भूत इन्द्र, (८) पिशाच इन्द्र। ज्योतिषी देवों के मुख्य २ इन्द्र— (१) चन्द्र इन्द्र, (२) भास्कर इन्द्र। कल्पवासी देवों के मुख्य १२ इन्द्र— (१) सौधर्म इन्द्र, (२) ईशान इन्द्र, (३) सनत्कुमार इन्द्र, (४) माहेन्द्र इन्द्र, (५) ब्रह्म इन्द्र, (६) लान्तव इन्द्र, (७) शुक्र इन्द्र, (८) शतार इन्द्र, (९) आनत इन्द्र, (१०) प्राणत इन्द्र, (११) आरण इन्द्र, (१२) अच्युत इन्द्र। मुख्य रूप से ये ३२ इंद्र माने हैं।

 

Tags: Chaitya Bhakti
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