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सोमग्रह अरिष्ट निवारक श्री चन्द्रप्रभ पूजा!

February 18, 2014पूजायेंjambudweep

चन्द्रग्रह अरिष्ट निवारक

श्री चन्द्रप्रभ पूजा

 

गीताछंद

चन्दाकिरण समश्वेत चन्द्रप्रभु जिनेन्द्र समर्चना।

शशिग्रह अरिष्ट विनाश हेतू, मैं करूँ अभ्यर्थना।।

आओ विराजो नाथ मन-मन्दिर मेरा यह रिक्त है।

बस भावना है प्रमुख मेरी, द्रव्य तो अतिरिक्त है।।१।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारकश्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारकश्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारकश्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।

अष्टक

तर्ज-नदिया किनारे मेरो धाम…………।

चन्दाप्रभू भगवान, अरज मेरी सुन लीजे।

शशिग्रह बाधा हान, करो जी प्रभु सुख दीजे।।

गंगा का शीतल जल लेके प्रभुवर, चरणों में जल धारा डालूँ जिनवर।

पा जाऊँ लक्ष्य महान, अरज मेरी सुन लीजे।।१।।शशिग्रह……………….

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

काश्मीरी केशर घिस करके भगवन्, चरणों में तेरे करना है चर्चन।

हो भवआतप हान, अरज मेरी सुन लीजे।।शशि………….।।२।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

 

तन्दुल धवल वासमति के लाऊँ, चरणों में अक्षत पुञ्ज चढ़ाऊ।

अक्षयपना होवे प्राप्त, अरज मेरी सुन लीजे।।शशि………..।।१३।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

 

बेला कमल आदि सुमनों को लाऊँ, निज मन सुमन युत पद में चढ़ाऊ।

कामव्यथा होवे हान, अरज मेरी सुन लीजे।।शशिग्रह……..।।४।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

पकवान का थाल लाऊँ भराके, जिनवर सम्मुख चढ़ाउँ आके।

क्षुधरोग हो मेरा हान, अरज मेरी सुन लीजे।। शशिग्रह……।।५।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

 

घृत दीपक की आरति सजाकर, आरति उतारूँ प्रभु सम्मुख आकर।

मोहतिमिर हो हान, अरज मेरी सुन लीजे।।शशिग्रह……।।६।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

 

अष्टगन्ध की धूप जलाऊँ, उसके निमित्त कर्मों को जलाऊँ।

पा जाऊँ निष्कर्म धाम, अरज मेरी सुन लीजे।।शशिग्रह…….।।७।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

पिस्ता व किसमिस बादाम लाकर, जिनवर निकट थाल फल का चढ़ाकर।

फल चाहूँ शिवधाम, अरज मेरी सुन लीजे।। शशिग्रह……।।८।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

अष्टद्रव्य का थाल सजाकर, चन्दाप्रभू के सम्मुख चढ़ाकर।

हो ‘‘चन्दना’’ सारे काम, अरज मेरी सुन लीजे।।शशिग्रह…….।।९।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

मनशांति हेतू है शांतिधारा, प्रभु के चरण में त्रय बार डाला।

निज में हो मम विश्राम, अरज मेरी सुन लीजे।। शशिग्रह…।।

                                                                  शांतये शांतिधारा।

नीले कमल लाल कमलों को लाऊँ, हाथों की अंजलि भरकर चढ़ाऊ।

मृदु हों मेरे परिणाम, अरज मेरी सुन लीजे।। शशिग्रह……।।

                                                                दिव्य पुष्पांजलिः।।

(अब मण्डल के ऊपर चन्द्रग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्य चढ़ावें।)

शंभुछंद

हे प्रभु! कुछ कर्म असातावश, ग्रह चन्द्र मुझे दुख देता है।

तन में व्याधी को पैदाकर, मुझको अशान्त कर देता है।।

इसलिए तुम्हारी भक्ती में, आठों ही द्रव्य समर्पित हैं।

‘‘चन्दना’’ चन्द्रग्रह शांति हेतु, भावों का अघ्र्य समर्पित है।।१।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

                                                               शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

जाप्य मंत्र- ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय नमः।

जयमाला

रोला छंद

अहो चन्द्रप्रभु देव! तुम हो जग के चन्दा।

महासेन पितु और लक्ष्मणा माँ के नन्दा।।

काशी के ही पास, चन्द्रपुरी नगरी है।

जहाँ जन्म से धन्य, हुई प्रजा सगरी है।।१।।

पहले ब्याह रचाय, फिर संन्यास लिया था।

केवलज्ञान उपाय, जग कल्याण किया था।।

सम्मेदाचल जाय, ऐसा ध्यान किया था।

आठों कर्म नशाय, पद निर्वाण लिया था।।२।।

पहले निजग्रह नाश, कर फिर परग्रह नाशा।

पूर्ण हुई निज आश, पर की भी अभिलाषा।।

यह महिमा सुन आज, भक्त तिहारे आए।

सुनो मेरे महाराज, तुम से प्रभु हम पाए।।३।।

कर्म अनादीकाल, से मेरे संग लागे।

इसीलिए ग्रहचन्द्र, मुझको आय सताते।।

तुम शशिग्रह के नाथ! मेरा कष्ट हरो जी।

मेरा सब दुखदर्द, प्रभु अब दूर करो जी।।४।।

इसीलिए यह अघ्र्य, करूँ समर्पण प्रभु जी।

मेरा सब कुछ आज, तुझको अर्पण प्रभु जी।।

ग्रह शान्ती के साथ, आतमशक्ति दिला दो।

झुका ‘चन्दना’ माथ, परमातम प्रगटा दो।।

ॐ ह्रीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

                                                                           शान्तये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

दोहा

श्रीचन्द्रप्रभनाथ की, करो भक्ति तिहुँकाल।

चन्द्र सदृश शीतल बना, ग्रह हरते तत्काल।

। इत्याशीर्वादः। दिव्य पुष्पांजलिः।

 

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