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पीठाधीश पद के गौरव-अलंकार हैं-स्वस्तिश्री कर्मयोगी रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी

July 10, 2017ज्ञानमती माताजीjambudweep

 

पीठाधीश पद के गौरव-अलंकार हैं-स्वस्तिश्री कर्मयोगी रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी



दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, विश्वविख्यात जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर के प्राण तत्त्व पीठाधीश पूज्य क्षुल्लकरत्न श्री मोतीसागर जी महाराज के मुनि अवस्था में भव्य समाधिमरण दिनाँक १० नवम्बर २०११ को होने के उपरांत दिनाँक २० नवम्बर २०११ को जिन माननीय बाल ब्रह्मचारी कर्मयोगी रवीन्द्र कुमार जी ‘भाई जी’ को ‘‘पीठाधीश’’ पद पर अधिष्ठित कर उन्हें ‘‘स्वस्तिश्री कर्मयोगी पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी’’ अभिधान से अलंकृत किया गया है,
 
उनसे हमारी सर्वप्रथम भेंट अक्टूबर १९९२ में दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर एवं मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ (उ.प्र.) द्वारा हस्तिनापुर में दिनाँक ८-१२ अक्टूबर १९९२ को आयोजित ‘अंतर्राज्यीय चारित्र निर्माण संगोष्ठी’ के मध्य हुई।
 
तब से परमपूज्य चारित्रचन्द्रिका गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के ससंघ सान्निध्य में प्रवर्तित-दिल्ली, हस्तिनापुर, अयोध्या, वाराणसी, प्रयाग, कुण्डलपुर, महमूदाबाद आदि विभिन्न स्थानों में सुसम्पन्न भव्य और विशाल समायोजनों में हमने निकटत: उनका वात्सल्य प्राप्त कर उनमें सन्निविष्ट लक्ष्य प्राप्ति के प्रति नैष्ठिक समर्पण, दूर दृष्टि और पक्का इरादा अनुशासनबद्ध ‘मिलिट्रीमैन’ की भांति देव-शास्त्र-गुरु की आज्ञा पालन के प्रति प्रतिबद्धता, सतत जागरूकता, प्रबंध-पटुता, सदा सर्वजन-सुलभता, ‘हितं च सारं च वचो हि वाग्मिता’ को चरितार्थ करती कल्याणी मधुर वाणी, आर्ष प्रणीत सांस्कृतिक दृष्टि, बीसवीं शती के प्रथम आचार्य चारित्रचक्रवर्ती शांतिसागर महाराज एवं गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी के संदेश को जन-जन तक सम्प्रेषित करने में सम्पृक्त-सन्नद्धता पायी है।
 
पूर्व में उन्हें ‘कर्मयोगी’ विरुद से विभूषित कर उनके अन्तरंग गुणों और क्षमता का प्रकटीकरण ही हुआ है। जैसे विश्वविख्यात श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोल में परमपूज्य कर्मयोगी स्वस्तिश्री पण्डिताचार्यवर्य चारुकीर्ति महास्वामी जी श्रमण संस्कृति के संरक्षण-सम्वद्र्धन-समुन्नयन और स्व-परकल्याण में सदैव सन्नद्ध हैं, वही कार्य उत्तर भारत में कर्मयोगी स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी ‘पीठाधीश’ पद पर अधिष्ठित होने के पूर्व से कर रहे हैं, इस पद पर अधिष्ठित होने के साथ उनके क्रिया-कलापों, आदर्शों और साधना में पूर्णत: अधिक ऊँचाईयाँ परिलक्षित हो रही हैं।
 
वस्तुत: उत्तर भारत में उन्हें श्रवणबेलगोला स्वामी जी का लघु भ्राता कहना अधिक उपयुक्त होगा। पूज्य क्षुल्लकरत्न श्री मोतीसागर जी महाराज के समाधिमरण के उपरांत कर्मयोगी बाल ब्रह्मचारी रवीन्द्र कुमार जी को ‘पीठाधीश’ पद पर अधिष्ठित किया जाना सम्पूर्ण समाज और संस्कृति के लिए गौरव-सम्वद्र्धक है। वस्तुत: ‘पीठाधीश’ पद के गौरव-अलंकरण हैं-स्वस्तिश्री कर्मयोगी रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी। उन्हें शतश: प्रणाम निवेदित कर श्री जिनेन्द्र प्रभु के शासन से प्रार्थना करता हूँ कि-
 
यावद् वाति नभस्वान्, भाति विवस्वान् विभासते हिमगु।
विलसतु ‘पीठाधीश:’, रवीन्द्रकीर्तिर्नाम विख्यात:।।
 
अर्थात्-जब तक वायु संचरणशील है, सूर्य और चन्द्रमा प्रद्योतित-सुशोभित हो रहे हैं तब तक (स्वस्तिश्री) पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति (स्वामी जी) विख्यात (विद्यमान) रहें।
 
Tags: Meri Smritiyan
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