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बुध ग्रह अरिष्ट निवारक श्री मल्लिनाथ पूजा

February 18, 2014पूजायेंjambudweep

श्री मल्लिनाथ पूजा

स्थापना

तर्ज-मेरे मन मन्दिर में आन………..

मेरे हृदय महल में आन, पधारो मल्लिनाथ भगवान।।

आओ तिष्ठो नाथ! विराजो मण्डल ऊपर प्रभु तुम राजो।।

बुधग्रह की बाधा हो हान, पधारो मल्लिनाथ भगवान।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारकश्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारकश्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।

अष्टक

दोहा

 

यमुना सरिता नीर ले, करूँ चरण जलधार।

मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।१।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरा-मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

चंदन घिस कर्पूर युत, चरणन चर्चूं नाथ।

मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।२।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

 

मुक्ता सम तन्दुल धवल, अर्पूं प्रभु तुम पास।

मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।३।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

 

विविध भाँति के पुष्प ले, चरण चढ़ाऊँ नाथ।

मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।४।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

थाल भरा नैवेद्य का, अर्पित है प्रभु पास।

मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।५।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

 

घृत दीपक की आरती, आरत हरे अपार।

मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।६।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

 

धूप सुगंधित दहन से, नशें कर्म दुखकार।

मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।७।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

सेव आम्र अंगूर से, मिले सुफल साकार।

मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।८।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

 

 

अष्ट द्रव्य ले ‘‘चन्दना’’, अघ्र्य चढ़ाऊँ आज।

मल्लिनाथ प्रभु बालयति, हैं सुख के आधार।।९।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

 

 

दोहा

रत्नत्रय की प्राप्ति में, त्रयधारा आधार।

स्वर्णभृंग की नाल से, कर लो शांतीधार।।

                                   शांतये शांतिधारा।

पुष्पों की भर अंजली, अर्पूं प्रभु के पास।

महक उठे उस गंध से, मन का मंदिर आज।।

                                         दिव्य पुष्पांजलिः।

 

अब मण्डल के ऊपर बुधग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्य चढ़ावें)

तर्ज-ऐ माँ तेरी सूरत से अलग……

हे मल्लिनाथ! तुम चरणों में, ग्रहशांति हेतु हम आए हैं।

भगवान्……भगवान् तुम्हारे सम्मुख हम, यह अघ्र्य चढ़ाने आए हैं।।टेक.।।

यह बात सुनी हमने, तुम बुधग्रह स्वामी हो।

तुम उसके निग्रह में, सक्षम प्रभु ज्ञानी हो।।

‘‘चन्दना’’ तुम्हारी पूजन से, सब संकट हरने आए हैं।

भगवान्…….भगवान् तुम्हारे सम्मुख हम, यह अघ्र्य चढ़ाने आये हैं।।१।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

                                                        शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

जाप्यमंत्र-ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्राय नमः।

जयमाला

तर्ज-जैनधर्म के हीरे मोती………

हे प्रभु! पूजा के माध्यम से, एक सुखद संवेदन है।

संसारी औ सिद्धों का प्रभु, आज यहाँ सम्मेलन है।।टेक.।।

नाथ! तुम्हारी और मेरी, आत्मा में अन्तर बहुत बड़ा।

तुम हो सिद्धशिला के वासी, मैं भवसागर बीच खड़ा।।

निश्चय नय से दोनों की आत्मा में इक सम वेदन है।

संसारी औ सिद्धों का प्रभु, आज यहाँ सम्मेलन है।।१।।

तुम सम बनने हेतु मुझे, पुरुषार्थ बहुत करना होगा।

बाह्य और आभ्यंतर तप की, अग्नी में तपना होगा।

तभी खान सम सोना यह बन, जाएगा कुन्दन सम है।

संसारी औ सिद्धों का प्रभु, आज यहाँ सम्मेलन है।।२।।

निज को पूज्य बनाने में प्रभु, की पूजा इक साधन है।

जिनवर के गुणगान से समझो, होता निज आराधन है।।

कर्मों की शृँखला का होता, इन सबसे ही छेदन है।

संसारी औ सिद्धों का प्रभु, आज यहाँ सम्मेलन है।।३।।

ग्रह का चक्र मेरी आत्मा के, संग अनादीकाल से है।

उनमें से इक बुध ग्रह है, जिससे अशांत मुझ तन मन है।।

उसी की शांती हेतु ‘‘चन्दना’’ रची नवग्रह पूजन है।

संसारी औ सिद्धों का प्रभु, आज यहाँ सम्मेलन है।।४।।

ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णाघ्र्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

दोहा

कर्ममल्ल को नष्ट कर, बने मल्लि भगवान् ।

तीर्थंकर पद प्राप्त कर, पाया पद निर्वाण।।

इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।

 

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