

दर्शन से जिनके कटते हैं पाप, पूजन से मिटते हैं गुरुग्रह ताप, 
क्षीरसिन्धु नीर को मैं भरूँ भृंग में। 
काश्मीर की सुगन्धियुक्त केशर लिया। 
वासमती के धुले तंदुलों को लिया।


शुद्ध नैवेद्य को बनाय थाल भर लिया। 


धूप कर्पूर मिश्रित जला अग्नि में। 
सेव अंगूर अमरूद भर थाल में। 
जलफलादिक अष्टद्रव्य को सजाय के। 