

हे पुष्पदन्त भगवान् पुष्प तव, चरणों में जब चढ़ता है।
साधुचित्त के समान शुद्ध नीर ले लिया।
दिव्य चन्दन की ही प्रतीक केशर मेरी।
तुच्छ तंदुलों में मोतियों की कल्पना मेरी।
फूल हो या पीले चावलों में पुष्पभावना।
खीर और पूरियों को थाल में भरा लिया।


धूप धूपघट में खेके पापकर्म नाश हों।
सत्फलों से युक्त मोक्षफल की याचना करूँ।





भगवान् तुम्हारी पूजन से, सम्यग्दर्शन मिल जाता है।