आर्यिका श्री १०५ विर्शोयमतीं माताजीसंघस्था ग. आर्यिका श्री १०५ विशुद्धमती माताजी
१. लौंग को जल के साथ किसी सिल पर घिसकर अंजनहारी पर दिन में दो तीन लेप करने से शीघ्र ही अंजनहारी नष्ट हो जाती है।
२. बोर के ताजे कोमल पत्तों को कूट—पीसकर, किसी कपड़े में बांधकर रस निकालें। इस रस को अंजनहारी पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
३. इमली के बीजों को सिल पर घिसकर उनका छिलका अलग कर दें। अब इमली के सफेद बीज को जल के साथ सिल पर घिस कर दिन में कई बार अंजनहारी (फुसी) पर लगाएं । इसके लगाने से अंजनहारी शीघ्र नष्ट होता है।
४. १० ग्राम त्रिफला के चूर्ण को ३०० ग्राम जल में डालकर रखें। सुबह बिस्तर से उठने पर त्रिफला के उस जल को कपड़े से छानकर नेत्रों को साफ करने से गुहेरी की विकृति नष्ट होती है। त्रिफला के जल से नेत्रों की सब गंदगी निकल जाती है। प्रतिदिन त्रिफला का ३—३ ग्राम चूर्ण जल के साथ सुबह—शाम सेवन करने से गुहरी की विकृति से राहत मिलती है।
५. काली मिर्च को जल के साथ पीसकर या जल के साथ घिसकर अंजनहारी पर लेप करने से प्रारंभ में थोड़ी सी जलन होती है, लेकिन जल्दी ही गुहेरी का निवारण हो जाता है।
६. ग्रीष्म ऋतु में पसीने के कारण अंजनहारी की विकृति बहुत होती है। प्रतिदिन सुबह और रात्रि को नेत्रों में गुलाब जल की कुछ बूंदे डालने से बहुत लाभ होता है।
७. त्रिफला चूर्ण ३—३ ग्राम मात्रा में उबले हुए दूध के साथ सेवन करने से अंजनहारी से सुरक्षा होती है।
८. लौंग को चंदन और केशर के साथ जल के छींटे डालकर, घिसकर अंजनहारी का लेप करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
९. सहिजन के ताजे व कोमल पत्तों को कूट—पीसकर कपड़े में बांधकर रस निकालें। इस रस को दिन में कई बार अंजनहारी पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
१०. नीम के ताजे व कोमल पत्तों का रस मकोय का रस बराबर मात्रा में कपड़े से छानकर नेत्रों में लगाने से अंजनहारी के कारण शोथ व नेत्रों की लालिमा शीघ्रनष्ट होती है।
११. अंजनहारी में शोथ के कारण तीव्र जलन व पीड़ा हो तो चंदन के जल के साथ घिसकर दिन में कई बार लेप करने से तुरंत लाभ होता है।