जिसमें ज्ञान और दर्शन अर्थात् जानने और देखने की शक्ति विद्यमान है वह जीव है उस जीव के बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा ये तीन भेद है जिसमे अंतरात्मा का लक्षण इस प्रकार है-
जो आत्मा और शरीर को भिन्न-भिन्न समझकर आत्मा को ज्ञान-स्वरूप, अविनाशी और शरीर को अचेतन, नाशवान समझता है तथा शरीर से आत्मा को पृथक करने का उपाय करता है वह अंतरात्मा है। सम्यग्दृष्टि श्रावक और मुनि अंतरात्मा कहलाते है।