श्र्यादिदेवीकमलेषु, परिवारकंजेष्वपि।
जिनालया जिनार्चाश्च, तांस्ता: स्वात्मश्रियै नुम:।।१।।
श्री आदि-ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी इनके कमलों में तथा इनके परिवार कमलों में भी जिनमंदिर हैं और जिनप्रतिमाएँ हैं। उन सभी जिनमंदिर व जिनप्रतिमाओं को हम अपनी आत्मा की श्री-लक्ष्मी-गुणसंपत्ति को प्राप्त करने के लिए नमस्कार करते हैं।।१।।
कमलों कमलों में जिनमंदिर, इनमें जिनप्रतिमाएँ सुंदर।
छह करोड़ उन्निस लाख इकतीस हजार दो सौ बाहत्तर।।
मुनिगण सुरगण से वंदित ये, शाश्वत रत्नों की प्रतिमाएँ।
हम इनका वन्दन कर करके, शाश्वत अनुपम सुख पा जाएं।।२।।
जम्बूद्वीप में हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी ऐसे छह कुलाचल पर्वत हैं। इनके ऊपर पद्म, महापद्म, तिगिंछ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक नाम के छह सरोवर हैं। उन सरोवरों में क्रम से श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी नाम की देवियाँ अपने परिवार सहित रहती हैं।
ये श्री आदि देवियाँ जम्बूद्वीप के भरत, ऐरावत व विदेहक्षेत्र के तीर्थंकरों की माता की सेवा के लिए आती हैं।
उन सरोवरों में इन देवियों के जितने परिवार कमल हैं, उन सबमें जिनमंदिर हैं और सभी जिनमंदिरों में जिनप्रतिमाएँ विराजमान हैं।
इसी प्रकार ‘त्रिलोकसार’ ग्रंथ के अनुसार जम्बूद्वीप में सीता-सीतोदा नदी के पूर्व, पश्चिम व दक्षिण तथा उत्तर में पाँच-पाँच सरोवर ऐसे २० सरोवर हैं। उनमें भी नागकुमारी देवियों के कमल हैं। उनके परिवार कमल भी श्रीदेवी के परिवारकमल प्रमाण हैं। उन सभी २६ सरोवरों के कमलों में जिनमंदिर हैं, उन सभी में जिनप्रतिमाएँ विराजमान हैं।
जम्बूद्वीप के समान पूर्व धातकीखण्ड में श्री आदि देवियों के छह सरोवर व सीता-सीतोदा नदी के बीस सरोवर तथा पश्चिम धातकीखण्ड के भी छह और बीस सरोवर, ऐसे ही पूर्व पुष्करार्ध व पश्चिम पुष्करार्ध के छब्बीस-छब्बीस सरोवर सभी मिलकर २६*५ =१३० सरोवर हो जाते हैं।
तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार व लोकविभाग आदि ग्रंथों में धातकीखण्ड द्वीप के हिमवान आदि पर्वतों का विस्तार आदि दूना-दूना कहने से स्पष्ट हो जाता है कि वहाँ पर सरोवरों के विस्तार भी दूने-दूने हैं तथा श्री, ह्री आदि देवियों के परिवार कमल भी दूने-दूने हैं।
ऐसे ही सीता-सीतोदा के परिवार कमलों की संख्या भी दूनी-दूनी है।
ऐसे ही पुष्करार्ध द्वीप में भी हिमवान पर्वत व पद्म सरोवर आदि का विस्तार भी दूना-दूना कहा गया है अत: श्रीदेवी आदि के परिवारकमलों की संख्या तथा सीता-सीतोदा नदियों के परिवार कमलों की संख्या भी धातकीखण्ड की अपेक्षा दूनी-दूनी है, ऐसा समझना चाहिए।
पूर्व धातकी व पश्चिम धातकी में भरत-ऐरावत व विदेहक्षेत्रों के तीर्थंकर की माता की सेवा के लिए वहीं-वहीं की श्री आदि देवियाँ आती हैं, ऐसे ही पूर्व व पश्चिम पुष्करार्ध के तीर्थंकरों की माता की सेवा के लिए वहीं-वहीं की देवियाँ आती हैं।
इन सबके कमलों की संख्या छह करोड़, उन्नीस लाख, इकतीस हजार दो सौ बहत्तर-६,१९,३१,२७२ हो जाती है। इन कमलों में अकृत्रिम जिनमंदिर हैं एवं सभी मंदिरों में रत्नमयी जिनप्रतिमाएँ विराजमान हैं।
हिमवान पर्वत के मध्य में पूर्व-पश्चिम लंबा, पांच सौ योजन विस्तार से सहित और इससे दुगुणी अर्थात् एक हजार योजन प्रमाण लंबाई से शोभायमान पद्म नामक द्रह है।।१६५८।।
विष्कंभ ५००। आयाम १०००। यह पद्मद्रह दश योजन गहरा तथा चार तोरण, वेदियों, नन्दनवनों और शुभसंचय युक्त रत्नों से रचे गये विकसित फूलों से सहित है।।१६५९।।
इस पंकजद्रह के ईशानकोण में वैश्रवण नामक कूट और आग्नेय दिशा में श्रीनिचय नामक कूट निर्दिष्ट किया गया है।।१६६०।।
उसके नैऋत्य भाग में क्षुद्रहिमवान् कूट और पश्चिमोत्तर भाग में ऐरावत नामक कूट कहा गया है।।१६६१।।
पद्मद्रह के उत्तर भाग में श्रीसंचय नामक कूट स्थित है। इन पांच कूटों से हिमवान् पर्वत ‘पंचशिखरी’ इस नाम से संयुक्त है।।१६६२।।
नाना प्रकार के रत्नों से निर्मित ये सब कूट उपवन-वेदियों से सहित और व्यन्तरों के नगरों से रमणीय हैं।।१६६३।।
पद्मद्रह के जल में उत्तर दिशा की ओर से प्रदक्षिण रूप में जिनकूट, श्रीनिचय, वैडूर्य, अंकमय, आश्चर्य, रुचक, शिखरी और उत्पलकूट, ये कूट उसके जल में तटवेदियों और वन-वेदियों से सहित होते हुए व्यन्तर नगरों से शोभायमान हैं।।१६६४-६५।।
उन कूटों में से प्रत्येक कूट की ऊँचाई पच्चीस योजन, भूविस्तार भी इतना अर्थात् पच्चीस योजन, मुखविस्तार पच्चीस योजन के अर्धभागप्रमाण और मध्यविस्तार भूमि तथा मुख के जोड़ का अर्धभाग मात्र है।।१६६६।। २५ । २५ । २५/२ । ७५/४ ।
तालाब के मध्य में बयालीस कोस ऊंचा और एक कोस मोटा कमल का नाल है। इसका मृणाल रजतमय और तीन कोस बाहल्य से युक्त है।।१६६७।। उत्सेध को. ४२, बा. को. १।
उस कमल का कन्द अरिष्टरत्नमय और नाल वैडूर्यमणि से निर्मित है। इसके ऊपर चार कोस ऊँचा किंचित् विकसित पद्म है।।१६६८।।
उसके मध्य में चार कोस और अन्त में दो अथवा चार कोस विस्तार है। उसकी कर्णिका की ऊँचाई और आयाम में से प्रत्येक एक कोस मात्र है।। १६६९।।को. ४ । २ । ४ । को. १।
अथवा, कर्णिका की ऊँचाई और लम्बाई दो-दो कोस मात्र है। यह कमलकर्णिका ग्यारह हजार पत्तों से संयुक्त है। इस कर्णिका के ऊपर वैडूर्यमणिमय कपाटों से संयुक्त और उत्तम स्फटिकमणि से निर्मित कूटागारों में श्रेष्ठ भवन है। इसकी लम्बाई एक कोस, विस्तार अर्ध कोस प्रमाण और ऊँचाई एक कोस के चार भागों में से तीन भाग मात्र है।।१६७०-१६७१।। को १ । १/२ । ३/४।
इस भवन में एक पल्योपमप्रमाण आयु की धारक और दश धनुष ऊँची श्री नामक सौधर्म इन्द्र की सहदेवी निवास करती हैं।।१६७२।।
श्रीदेवी के सामानिक, तनुरक्ष, तीनों प्रकार के पारिषद, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक जाति के देव हैं।। १६७३।।
विविध प्रकार के अंजन और भूषणों से शोभायमान तथा सुप्रशस्त एवं विशालकाय (शरीर) वाले वे सामानिक देव चार हजार प्रमाण हैं।। १६७४ ।। ४०००।
ईशान, सोम (उत्तर) और वायव्य दिशाओं के भागों में पद्मों के ऊपर उन सामानिक देवों के चार हजार भवन हैं।। १६७५ ।। ४०००।
श्रीदेवी के तनुरक्षक देव सोलह हजार हैं। इनके पूर्वादिक दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में चार हजार भवन हैं।। १६७६ ।। ४ ² ४००० · १६०००।
अभ्यन्तर परिषद् में बत्तीस हजार देवों का अधिपति धीर आदित्य नामक उत्तम देव है।। १६७७।।
पद्मद्रह के कमलों के ऊपर आग्नेय दिशा में उन देवों के उत्तम रत्नों से रचित बत्तीस हजार भवन हैं।। १६७८ ।। ३२०००।
पद्मद्रह पर मध्यम परिषद् के बहुत यान और शस्त्रयुक्त चालीस हजार देवों का अधिपति चन्द्र नामक देव है।। १६७९ ।। ३२०००।
बाह्य परिषद् के अड़तालीस हजार देवों का स्वामी प्रतापशाली जतु नामक देव श्रीदेवी की सेवा करता है।। १६८०।। ४८०००।
नैऋतदिशा में उन देवों के उन्नत तोरणद्वारों से रमणीय अड़तालीस हजार भवन पद्मद्रह के मध्य में स्थित हैं।। १६८१ ।। ४८०००।
कुंजर, तुरंग, महारथ, बैल, गन्धर्व, नर्तक और दास, इनकी सात सेनाएँ हैं। इनमें से प्रत्येक सात कक्षाओं से सहित हैं।।१६८२।।
प्रथम अनीक का प्रमाण सामानिक देवों के सदृश है। शेष छः सेनाओं में से प्रत्येक का प्रमाणउत्तरोत्तर दूना-दूना है।।१६८३।।
निर्मल शक्ति से संयुक्त देव हाथी आदि के शरीरों की विक्रिया करते और माया एवं लोभ से रहित होकर नित्य ही श्रीदेवी की सेवा करते हैं।। १६८४।।
सात अनीक देवों के सात घर पद्मद्रह के पश्चिम प्रदेश में कमल कुसुमों के ऊपर सुवर्ण से निर्मित हैं।। १६८५।।
उत्तम रूप व विनय से संयुक्त और बहुत प्रकार के उत्तम परिवार से सहित ऐसे एक सौ आठप्रतीहार, मंत्री एवं दूत हैं।। १६८६।।
उनके अतिशय रमणीय एक सौ आठ भवनद्रह के मध्य में कमलों पर दिशा और विदिशा के विभागों में स्थित हैं।। १६८७।।
पद्मपुष्पों पर स्थित जो प्रकीर्णक आदिक देव हैं, उन चारों के प्रमाण का उपदेश कालवश नष्ट हो गया है।। १६८८।।
वे सब अकृत्रिम पृथिवीमय सुन्दर कमल एक लाख चालीस हजार एक सौ सोलह हैं।। १६८९।। १४०११६।
इस प्रकार कमलों के ऊपर स्थित उन महानगरों का प्रमाण एक लाख चालीस हजार एक सौ सोलह है। इनके अतिरिक्त क्षुद्रपुरों की पूर्णरूप से गिनती करने के लिए कौन समर्थ हो सकता
है ?।। १६९०।।
पद्मद्रह में सब ही उत्तम गृह पूर्वाभिमुख हैं और शेष क्षुद्रगृह यथायोग्य उनके सम्मुख स्थित हैं।। १६९१।।
उन कमल पुष्पों पर जितने भवन कहे गए हैं, उतने ही वहां विविध प्रकार के रत्नों से निर्मित जिनगृह भी हैं।। १६९२।।
वे जिनेन्द्रप्रासाद नाना प्रकार के तोरण द्वारों से सहित और झारी, कलश, दर्पण, बुद्बद्, घंटा एवं ध्वजा आदि से परिपूर्ण हैं।। १६९३।।
उन जिनभवनों में उत्तम चमर, भामण्डल, तीन छत्र और पुष्पवृष्टि आदि से संयुक्त जिनेन्द्रप्रतिमाएँ विराजमान हैं।। १६९४।।
मेरु पर्वत की पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर इन चारों दिशाओं में स्थित द्रहों का प्रमाण तथा एक-एक ह्रद के दोनों तटों पर स्थित काञ्चनशैलों की संख्या तथा उत्सेध चार गाथाओं द्वारा कहते हैं—
गाथार्थ-यमकगिरि से पाँच सौ योजन आगे जाकर कुरु और भद्रशाल क्षेत्रों में पाँच-पाँच द्रह हैं,
जिनमें प्रत्येक के बीच पाँच-पाँच सौ योजन का अन्तराल है। ये द्रह नदी के अनुसार यथायोग्य दीर्घहैं तथा इनमें रहने वाले कमल आदि का आयाम पद्मद्रह के सदृश है।।६५६।।
विशेषार्थ-यमकगिरि पर्वतों से पाँच सौ योजन आगे जाकर सीता और सीतोदा नदी में देवकुरु, उत्तरकुरु, पूर्व भद्रशाल और पश्चिम भद्रशाल इन चार क्षेत्रों के मध्य पाँच-पाँच अर्थात् २० द्रह हैं। ये द्रह नदी के अनुसार यथायोग्य दीर्घ हैं अर्थात् ये द्रह सीता-सीतोदा नदी के बीच-बीच में हैं अत: नदी की जहाँ जितनी चौड़ाई है, उतनी ही चौड़ाई का प्रमाण द्रहों का है। इन द्रहों की लम्बाई पद्म द्रह के सदृश १००० योजन प्रमाण है। जिस प्रकार पद्म द्रह में कमलादिक की रचना है, उसी प्रकार इन द्रहों में भी है।
गाथार्थ-नील, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत और माल्यवन्त ये पाँच द्रह सीता नदी के हैं तथा निषध, देवकुरु, सूर, सुलस और विद्युत ये पाँच सीतोदा नदी के द्रहों के नाम हैं।।६५७।।
गाथार्थ-ये सभी सरोवर नदी के प्रवेश एवं निर्गम द्वारों से सहित हैं तथा इन सरोवरों के परिवार आदि कमलों का वर्णन पद्मद्रह के सदृश ही है किन्तु सरोवर स्थित कमलों के गृहोंं में नागकुमारी देवियाँ निवास करती हैं।।६५८।।
विशेषार्थ-दोनों नदियों के प्रवाह के बीच में सरोवर हैं और इन सरोवरों की वेदिकाएँ हैं, जो नदी के प्रवेश और निर्गम द्वारों से युक्त हैं। इन सरोवरों के परिवार कमलों का वर्णन पद्मद्रह के परिवार कमलों के सदृश ही है। विशेषता केवली इतनी है कि इन कमलों पर स्थित गृहों में नागकुमारी देवियाँ सपरिवार निवास करती हैं।
गाथार्थ-उन सरोवरों के दोनों तटों पर पाँच-पाँच काञ्चन पर्वत हैं, जिनका उदय, भूव्यास और मुख व्यास क्रमश: सौ योजन, सौ योजन और पचास योजन प्रमाण है। ये सभी पर्वत ह्रदाभिमुख अर्थात् ह्रदों के सम्मुख हैं। इन पर्वतों के शिखरों पर पर्वत सदृश नाम एवं शुक सदृश कान्ति वाले देव निवास करते हैं।।६५९।।
‘श्री’ देवी के कुल कमल | -१,४०,११६ |
‘ह्री’ देवी के कुल कमल | -२,८०,२३२ |
‘धृति’ देवी के कुल कमल | -५,६०,४६४ |
‘कीर्ति’ देवी के कुल कमल | -५,६०,४६४ |
‘बुद्धि’ देवी के कुल कमल | -२,८०,२३२ |
‘लक्ष्मी’ देवी के कुल कमल | -१,४०,११ |
कुल कमल | -१९,६१,६२४ |
(२) सीता-सीतोदा नदियों के सरोवरों संबंधी कमल
१,४०,११६ * २० = २८,०२,३२०
जम्बूद्वीप संबंधी कुल कमल | -१९,६१,६२४ |
-२८,०२,३२० | |
-४७,६३,९४४ |
सैंतालिस लाख तिरेसठ हजार नौ सौ चौवालिस कमल
‘श्री’ देवी के कुल कमल | -२,८०,२३२ |
‘ह्री’ देवी के कुल कम | -५,६०,४६४ |
‘धृति’ देवी के कुल कमल | -११,२०,९२८ |
‘कीर्ति’ देवी के कुल कमल | -११,२०,९२८ |
‘बुद्धि’ देवी के कुल कमल | -५,६०,४६४ |
‘लक्ष्मी’ देवी के कुल कमल | -२,८०,२३२ |
कुल कमल | -३९,२३,२४८ |
२,८०,२३२ * २० = ५६,०४,६४०
पूर्व धातकीखण्ड संबंधी कुल कमल | -३९,२३,२४८ |
-५६,०४,६४० | |
-९५,२७,८८८ | |
पूर्व धातकीखण्ड द्वीप के कुल कमल | -९५,२७,८८८ |
पश्चिम धातकीखण्ड द्वीप के कुल कमल | -९५,२७,८८८ |
धातकीखण्ड द्वीप के कुल कमल | -१,९०,५५,७७६ |
एक करोड़ नब्बे लाख पचपन हजार सात सौ छियत्तर
‘श्री’ देवी के कुल कमल | -५,६०,४६४ |
‘ह्री’ देवी के कुल कमल | -११,२०,९२८ |
‘धृति’ देवी के कुल कमल | -२२,४१,८५६ |
‘कीर्ति’ देवी के कुल कमल | -२२,४१,८५६ |
‘बुद्धि’ देवी के कुल कमल | -११,२०,९२८ |
‘लक्ष्मी’ देवी के कुल कमल | -५,६०,४६४ |
कुल कमल | -७८,४६,४९६ |
५,६०,४६४, * २० = १,१२,०९,२८०
पूर्व पुष्करार्ध द्वीप के कुल कमल | -७८,४६,,४९६ |
-१,१२,०९,२८० | |
-१,९०,५५,७७६ | |
पूर्व पुष्करार्धद्वीप के कुल कमल | -१,९०,५५,७७६ |
पश्चिम पुष्करार्ध द्वीप के कुल कमल | -१,९०,५५,७७६ |
पुष्करार्ध द्वीप के कुल कमल | -३,८१,११,५५२ |
तीन करोड़ इक्यासी लाख ग्यारह हजार पाँच सौ बावन
जम्बूद्वीप के कुल कमल | =४७,६३,९४४ |
धातकीखण्ड द्वीप के कुल कमल | =१,९०,५५,७७६ |
पुष्करार्ध द्वीप के कुल कमल | =३,८१,११,५५२ |
=६,१९,३१,२७२ |
सर्व कमल ६ करोड़ उन्नीस लाख इकतीस हजार दो सौ बहत्तर हैं।
इन सभी कमलों के जिनमंदिर-जिनप्रतिमाओं को मेरा कोटि-कोटि नमस्कार होवे।
तीर्थंकर माता की सेवा करने वाली श्री आदि देवियाँ
जम्बूद्वीप के हिमवान आदि छह कुलाचलों के पद्म आदि सरोवरों में रहने वाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी देवियाँ जम्बूद्वीप के भरत-ऐरावत व विदेह क्षेत्रों में होने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा के लिए आती हैं। ऐसे ही पूर्वधातकीखण्ड के सरोवरों की श्री आदि देवियाँ वहाँ के भरत, ऐरावत और विदेह क्षेत्र में होने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा करती हैं। पश्चिमधातकीखण्ड में वहीं के सरोवरों के कमलों में रहने वाली श्री आदि देवियाँ वहीं के भरत-ऐरावत व विदेह क्षेत्रों में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा करने जाती हैं।
इसी प्रकार पूर्वपुष्करार्ध द्वीप में वहीं के हिमवान आदि पर्वतों के सरोवरों में रहने वाली श्री आदि देवियाँ वहीं पर भरत-ऐरावत व विदेह क्षेत्रों में होने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा करने जाती हैं। ऐसे ही पश्चिमपुष्करार्ध द्वीप में कुलाचलों के कमलों की श्री आदि देवियाँ वहीं पर भरत-ऐरावत व विदेहों में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा के लिए जाती हैं। जम्बूद्वीप की देवियाँ धातकीखण्ड व पुष्करार्ध द्वीप में सेवा करने नहीं जाती हैं।
कुछ विद्वान् पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में कह देते हैं कि ये देवियाँ स्वर्गों से आई हैं यह गलत है। ये श्री आदि देवियाँ मध्यलोक से ही आती हैं। यह ध्यान रखना है।
जम्बूद्वीप में एक भरत क्षेत्र, एक ऐरावत क्षेत्र व बत्तीस विदेह क्षेत्र हैं। ऐसे ही पूर्वधातकी, पश्चिमधातकी व पूर्वपुष्करार्ध तथा पश्चिमपुष्करार्ध द्वीपों में १-१ भरत, १-१ ऐरावत व ३२-३२ विदेह क्षेत्र हैं इसलिए ढाई द्वीप में ५ भरत, ५ ऐरावत व ३२²५·१६० विदेह क्षेत्र हो जाते हैं। इन ५+५+१६०=१७० कर्मभूमियों में तीर्थंकर भगवान जन्म लेते हैं। जम्बूद्वीप, पूर्व-पश्चिम धातकीखण्ड व पूर्व-पश्चिम पुष्करार्धद्वीप में हिमवान आदि छह-छह सरोवरों में ये देवियाँ रहती हैं। ढाई द्वीप के ये श्री आदि देवियों के सरोवर ६²५·३० ही हैं, यह ध्यान में रखना है।