-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
—स्थापना—
तीनलोक में मध्यलोक के अंदर द्वीप असंख्य कहे।
उनमें ढाई द्वीपों तक अकृत्रिम सरवर कमल रहे।।
उन कमलों पर बने भवन में जिनप्रतिमा का यजन करूँ।
अपने हृदय कमल में प्रभु को स्थापित कर नमन करूँ।।१।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान-सर्वजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
—अष्टक—
तर्ज-मिलो न तुम तो………
कमल के ऊपर जिनभवनों में जिनवर बिम्ब विराजें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।टेक.।।
ढाई द्वीपों में अकृत्रिम, कमलों के ऊपर जिनवर मंदिर हैं। हो……..
उन सभी की पूजन हेतू, क्षीरोदधि का जल अति सुंदर है।।हो….
जन्मजरामृत्युविनाश हो, जलधारा करने से,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।१।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
कमल के ऊपर जिनभवनों में जिनवर बिम्ब विराजें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।टेक.।।
उन सभी अकृत्रिम प्रभु के, चरणों में चंदन चर्चन करना है।हो….
कमलों के जिनभवनों की, अर्चना में चंदन अर्पण करना है।।हो….
भव आताप शान्त हो जावे, चंदन चर्चन करके,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।२।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
कमल के ऊपर जिनभवनों में जिनवर बिम्ब विराजें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।टेक.।।
कमलों के अकृत्रिम मंदिर, में जाकर अक्षत पुंज चढ़ाना है। हो….
उन जिनवरों के सम्मुख, पूजन के द्रव्यों को सजाना है।।हो….
अक्षयपद की प्राप्ति होवे, अक्षत पुंज चढ़ाके,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।३।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
कमल के ऊपर जिनभवनों में जिनवर बिम्ब विराजें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।टेक.।।
ढाईद्वीप में करोड़ों, कमलों की शोभा अपरम्पार है। हो….
कमल मंदिरों में पुष्प, कमल के चढ़ाऊँ प्रभु के द्वार मैं।।हो…
कामव्यथा नश जावे मेरी, पुष्प चढ़ा प्रभु पद में,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।४।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
कमल के ऊपर जिनभवनों में जिनवर बिम्ब विराजें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।टेक.।।
कमल पुष्प अकृत्रिम जो, आज की धरा पर नहीं दिख रहे। हो….
भावों से उन पर निर्मित, मंदिरों के प्रभु की पूजा हम करें।। हो…..
पूजन में नैवेद्य चढ़ाकर क्षुधारोग नश जावे,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।५।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कमल के ऊपर जिनभवनों में जिनवर बिम्ब विराजें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।टेक.।।
प्राकृतिक इन सब कमलों पर, देवियाँ परिवार सहित रहती हैं। हो…
उनके ऊपर जिनभवनों में, श्रीजिनेन्द्रबिम्ब दर्शन करती हैं।। हो……
घृत दीपक से आरति करके, मोहतिमिर नश जावे,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।६।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्य: मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कमल के ऊपर जिनभवनों में जिनवर बिम्ब विराजें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।टेक.।।
कमलों की शोभा उनके, जिनमंदिरों से बढ़ जाती है। हो…..
धूपघट में धूप खेकर, चारों ओर सुरभि बढ़ जाती है।।हो…..
धूप जलाकर पूजन कर लें, अष्टकर्म नश जावें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।७।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्य: अष्टकर्मदहनाय धूपंं निर्वपामीति स्वाहा।
कमल के ऊपर जिनभवनों में जिनवर बिम्ब विराजें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।टेक.।।
कमलों के जिनभवनों में, प्रभुवर की फल से पूजा करना है। हो……
सेव आम अंगूरों के गुच्छे, समर्पित प्रभु को करना है।।हो….
फल की चाह में, फल को चढ़ाकर मोक्षमहाफल पाएं,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।८।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
कमल के ऊपर जिनभवनों में जिनवर बिम्ब विराजें,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।टेक.।।
ढाईद्वीपों के अकृत्रिम, कमलों के ऊपर जिनवर मंदिर हैं। हो….
अष्टद्रव्य की थाली ले, करें हम उन प्रभुवर की पूजन है।।हो….
अर्घ्य थाल ले चरण चढ़ाएं, पद अनर्घ्य पा जाएं,
करें हम पूजन प्रभु की-२।।९।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
कमल सरोवर से लिया, प्रासुक निर्मल नीर।
कमलमंदिरों में किया, शांतिधार सुखसीर।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
कमल सरोवर से चुने, कमल पुष्प के झुण्ड।
पुष्पांजलि प्रभु चरण में, कर पाऊँ गुणपुञ्ज।।१।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
—शेर छंद—
जय जय कमल जिनालयों की करूँ वंदना।
जय जय कमल जिनालयों की करूँ अर्चना।।
जय जय कमल जिनालयों में प्रभु को निरखना।
जय जय कमल जिनालयों का रूप सोहना।।१।।
सैंतालिस लाख त्रेसठ सहस्र नौ सौ चवालिस।
ये जम्बूद्वीप के हैं अकृत्रिम कहे कमल।।
हिमवान आदि छह कुलाचलों के हृदों में।
सीता व सीतोदा नदी के बीच हृदों में।।२।।
पंचानवे लख सत्ताइस हजार आठ सौ।
अट्ठासी की संख्या है पूर्वधातकी खण्ड में।।
इतने ही कमल माने पश्चिमधातकी खण्ड में।
कमलों पे बने हैं जिनेन्द्र भवन सभी में।।३।।
इक क्रोड़ नब्बे लाख व पचपन सहस तथा।
सात सौ छियत्तर पूर्वपुष्करार्ध में कहा।।
पश्चिम के पुष्करार्ध में भी इतने ही कहे।
इन सबमें श्रीजिनेन्द्रभवन राज रहे हैं।।४।।
सब कमल छह करोड़ व उन्नीस लख तथा।
इकतिस हजार दो सौ बाहत्तर कही संख्या।
ये ढाई द्वीप के हैं कुल कमल व जिनभवन।
उनमें विराजें बिम्बों को शत-शत मेरा नमन।।५।।
वैडूर्यमणि की नाल स्वर्ण कर्णिकाएं हैं।
ये दिव्य सुगंधी से युक्त पृथिवीकायिक हैं।।
उनमें जिनेन्द्रबिम्बों को सुरेन्द्र भी नमते।
मणिमय मुकुट झुका के अपना भाग्य बदलते।।६।।
इन कमलों पे रहती हैं श्री, ह्री आदि देवियाँ।
जिनमाता की सेवा में आतीं ये ही देवियाँ।।
ये पुण्यशालिनी हैं कहीं दिक्कुमारियाँ।
ये मध्यलोक में ही रहतीं दिक्कुमारियाँ।।७।।
इनके भवन के जिनवरों को अर्घ्य चढ़ाऊँ।
जयमाला ‘‘चन्दनामती’’ चरणों में चढ़ाऊँ।।
अपने हृदय कमल में कमल पुष्प खिलाऊँ।
भगवान बनने के लिए भगवान को ध्याऊँ।।८।।
—दोहा—
श्रीजिनेन्द्र की अर्चना, भुक्तिमुक्ति दातार।
उनके पद की वंदना, देवे सुख का सार।।९।।
ॐ ह्रीं ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अकृत्रिमकमलप्रासादमध्यविराजमान- सर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम: जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
—सोरठा—
अकृत्रिम जिनधाम, कमलों के ऊपर बने।
बन जाऊँ निष्काम, भाव यही जिनवर नमें।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।