-मंगलाचरण-
श्र्यादिदेवीकमलेषु, परिवारकंजेष्वपि।
जिनालया जिनार्चाश्च, तांस्ता: स्वात्मश्रियै नुम:।।१।।
श्री आदि-श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी इनके कमलों में तथा इनके परिवार कमलों में भी जिनमंदिर हैं और जिनप्रतिमाएँ हैं। उन सभी जिनमंदिर व जिनप्रतिमाओं को हम अपनी आत्मा की श्री-लक्ष्मी-गुणसंपत्ति को प्राप्त करने के लिए नमस्कार करते हैं।।१।।
-शंभु छंद-
कमलों कमलों में जिनमंदिर, इनमें जिनप्रतिमाएँ सुंदर।
छह करोड़ उन्नीस लाख इकतीस हजार दो सौ बाहत्तर।।
मुनिगण सुरगण से वंदित ये, शाश्वत रत्नों की प्रतिमाएँ।
हम इनका वन्दन कर करके, शाश्वत अनुपम सुख पा जायें।।२।।