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अकेलापन!
July 23, 2018
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अकेलापन :
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प्रत्येकम् प्रत्येकम् निजभाव्, कर्मफलमनुभवताम्। क: कस्य जगति स्वजन:? क: कस्य वा परजनो भणित:।।
—समणसुत्त : ५१५
यहाँ प्रत्येक जीव अपने—अपने कर्मफल को अकेला ही भोगता है। ऐसी स्थिति में यहाँ कौन किसका स्वजन है और कौन किसका परजन ?
एगो य मरदि जीवो एगो य जीवदि सयं। एगस्स जादि मरणं एगो सिज्झदि णीरयो।।
—नियमसार : १०१
जीव अकेला ही मरता है, अकेला ही जन्म लिया करता है। जन्म—मरण अकेले का ही होता है और वह अकेला ही कर्म—रज—रहित सिद्ध हुआ करता है।
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