हिंसा, झूठ , चोरी, कुशील और परिग्रह यह पांच पाप है इन पांचो पापों के अणु अर्थात् एकदेश रूप त्याग को अणुव्रत कहते है। मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना से संकल्प पूर्वक किसी त्रस जीव को नहीं मारना अहिंसा अणुव्रत है। स्वयं स्थूल झूठ न बोले, न दूसरों से बुलवावे और ऐसा सच भी नहीं बोले कि जिससे धर्म आदि पर संकट या जावे वह सत्याणुव्रत है। किसी का रखा हुआ,पड़ा हुआ, भूला हुआ अथवा बिना दिया हुआ धन पैसा आदि द्रव्य नहीं लेना और न उठाकर किसी को देना अचौर्याणुव्रत है । अपनी विवाहित स्त्री या पुरूष के सिवाय अन्य स्त्री या पुरूष के साथ कामसेवन नहीं करना ब्रह्मचर्य अणुव्रत अथवा शीलव्रत कहलाता है। धन, धान्य, मकान आदि वस्तुओं का जीवन भर के लिए परिमाण कर लेना, उससे अधिक की बांछा नहीं करना परिग्रह परिमाण अुणव्रत है।
निरतिचार पालन किये गये ये अणुव्रत नियम से स्वर्ग को प्राप्त कराते है जिनके नरक, तिर्यंच या मनुष्य की आयु बंध गई है वे पंच अणुव्रत नहीं ले सकते है।