दक्षिण भारत के कोल्हापुर जिले में यह क्षेत्र स्थित है।
करीब ढाई सौ साल पहले नान्द्रे गाँव के पूज्य मुनि श्री १०८ बाहुबली महाराज यहाँ तपस्या एवं ध्यान करते थे। उनकी त्याग-तपस्या के प्रभाव से हिंसक शेर आदि उन्हें व किसी भी दर्शनार्थियों को नहीं देते थे, इसी कारण यह तीर्थ श्री अतिशय क्षेत्र बाहुबली नाम से प्रसिद्ध हुआ।
दक्षिण भारत में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को प्रारम्भ करने के उद्देश्य से आषाढ़ शुक्ल दोज, १ जुलाई १९३४ के शुभ दिन केवल पाँच विद्यार्थियों को लेकर परम पूज्य गुरुदेव १०८ श्री समंतभद्रजी महाराज ने बाहुबली ब्रह्मचर्याश्रम संस्था का शुभारम्भ किया था। जिसमें आज लगभग ३५० से भी अधिक विद्यार्थी लाभ ले रहे हैं तथा १५०० से अधिक विद्यार्थी संस्था के विद्यालय में विद्यार्जन कर रहे हैं ।
परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज के उपदेशानुसार सन् १९६३ में संस्था में भगवान् बाहुबली की २८ फीट ऊँची मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान की गई ।
सन् १९७० में और सन् १९८० में भारत के कतिपय सुप्रसिद्ध दिगम्बर सिद्धक्षेत्रों की मनोहारी रचना तैयार की गई है। इसके अतिरिक्त श्री महावीर समवसरण जिनमन्दिर, स्वयम्भू मन्दिर, रत्नत्रय जिन मन्दिर, नन्दीश्वर, पंचमेरु की सुन्दर रचना, मानस्तम्भ, कीर्ति स्तम्भ आदि कई दर्शनीय एवं वंदनीय स्थानों का निर्माण हुआ, जिससे यह एक पावन तथा पुण्यवर्धक तीर्थधाम बना हुआ है।
गुरुदेव समन्तभद्रजी के आशीर्वाद से शील, ज्ञान, प्रेम, सेवा और व्यवस्था रूप गुरुकुल की पंचसूत्री प्रणाली के अनुसार कारंजा, स्तवनिधि, सोलापुर, खुरई, कारकल, वागेवाड़ी, एलोरा, तेरदाल, कुंथलगिरि इत्यादि क्षेत्रों पर यह संस्था अपना कार्य सुचारू रूप से कर रही है ।