ह भ म र घ झ स ख बीजाक्षर ये, बीज सदृश फलदायी।
पिंड वर्ण आदी से संयुत, सब विध मंगलदायी।।
इनका आह्वानन स्थापन, सन्निधिकरण करूँ मैं।
सर्व अमंगल गृहबाधादिक, संकट दुःख हरूँ मैं।।१।।
ॐ ह्रीं पिंडवर्णादिसंयुताः ह भ म र घ झ स खाः बीजाक्षराः! अत्र अवतरत अवतरत आह्वाननं।
ॐ ह्रीं पिंडवर्णादिसंयुताः ह भ म र घ झ स खाः बीजाक्षराः! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं पिंडवर्णादिसंयुताः ह भ म र घ झ स खाः बीजाक्षराः! अत्र मम सन्निहितो भवत भवत सन्निधापनं।
स्ववर्गयुत ‘हं’ बीजाक्षर, पिंडाक्षर से युत है।
साग्नी और सबिंदु सकल यह, छट्ठे स्वर से युत है।।
श्रद्धा से इसकी पूजाकर, सब दुःख कष्ट मिटाऊँ।
मल पच्चीस दोष से विरहित, सम्यग्दर्शन पाऊँ।।१।।
ॐ ह्रीं शाकिनीग्रहभूतवेतालपिशाचादिक-उच्चाटननाशनादिसमर्थाय अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ¸ ऌ ल¸ ए ऐ ओ औ अं अः संयुताय र्ह्म्ल्व्य्रूं इति बीजवर्णाय जलं…….।
(इसी मंत्र से चंदनादि चढ़ावें।)
स्ववर्ग संयुत ‘भं’ बीजाक्षर, पिंडाक्षर से युत है।
साग्नी और सबिंदु सकल है, छट्ठे स्वर से युत है।।
श्रद्धा से इसकी पूजा कर, सब दुःख कष्ट मिटाऊँ।
मल पच्चीस दोष से विरहित, सम्यग्दर्शन पाऊँ।।२।।
ॐ ह्रीं शाकिनीग्रहभूतवेतालपिशाचादिक-उच्चाटननाशनादिसमर्थाय क ख ग घ ङ संयुताय र्भ्म्ल्व्यूं्र इति बीजवर्णाय जलं…….।
(इसी मंत्र से चंदनादि चढ़ावें)
स्ववर्ग संयुत ‘मं’ बीजाक्षर, पिंडाक्षर से युत है।
साग्नी और सबिंदु सकल है, छट्ठे स्वर से युत है।।
श्रद्धा से इसकी पूजा कर, सब दुःख कष्ट मिटाऊँ।
मल पच्चीस दोष से विरहित, सम्यग्दर्शन पाऊँ।।३।।
ॐ ह्रीं शाकिनीग्रहभूतवेतालपिशाचादिक-उच्चाटननाशनादिसमर्थाय च छ ज झ ञ संयुताय र्म्म्ल्व्यूं्र इति बीजवर्णाय जलं…….।
(इसी मंत्र से चंदनादि चढ़ावें।)
स्ववर्ग संयुत ‘रं’ बीजाक्षर, पिंडाक्षर से युत है।
साग्नी और सबिंदु सकल है, छट्ठे स्वर से युत है।।
श्रद्धा से इसकी पूजा कर, सब दुःख कष्ट मिटाऊँ।
मल पच्चीस दोष से विरहित, सम्यग्दर्शन पाऊँ।।४।।
ॐ ह्रीं शाकिनीग्रहभूतवेतालपिशाचादिक-उच्चाटननाशनादिसमर्थाय ट ठ ड ढ ण संयुताय र्म्ल्व्यर्ू्रं इति बीजवर्णाय जलं……।
(इसी मंत्र से चंदनादि चढ़ावें)
स्ववर्ग संयुत ‘घं’ बीजाक्षर, पिंडाक्षर से युत है।
साग्नी और सबिंदु सकल है, छट्ठे स्वर से युत है।।
श्रद्धा से इसकी पूजा कर, सब दुःख कष्ट मिटाऊँ।
मल पच्चीस दोष से विरहित, सम्यग्दर्शन पाऊँ।।५।।
ॐ ह्रीं शाकिनीग्रहभूतवेतालपिशाचादिक-उच्चाटननाशनादिसमर्थाय त थ द ध न संयुताय र्घ्म्ल्व्यूं्र इति बीजवर्णाय जलं…….।
(इसी मंत्र से चंदनादि चढ़ावें।)
स्ववर्ग संयुत ‘झं’ बीजाक्षर, पिंडाक्षर से युत है।
साग्नी और सबिंदु सकल है, छट्ठे स्वर से युत है।।
श्रद्धा से इसकी पूजा कर, सब दुःख कष्ट मिटाऊँ।
मल पच्चीस दोष से विरहित, सम्यग्दर्शन पाऊँ।।६।।
ॐ ह्रीं शाकिनीग्रहभूतवेतालपिशाचादिक-उच्चाटननाशनादिसमर्थाय प फ ब भ म संयुताय र्झ्म्ल्व्यूं्र इति बीजवर्णाय जलं…….।
(इसी मंत्र से चंदनादि चढ़ावें।)
स्ववर्ग संयुत ‘सं’ बीजाक्षर, पिंडाक्षर से युत है।
साग्नी और सबिंदु सकल है, छट्ठे स्वर से युत है।।
श्रद्धा से इसकी पूजा कर, सब दुःख कष्ट मिटाऊँ।
मल पच्चीस दोष से विरहित, सम्यग्दर्शन पाऊँ।।७।।
ॐ ह्रीं शाकिनीग्रहभूतवेतालपिशाचादिक-उच्चाटननाशनादिसमर्थाय य र ल व संयुताय र्स्म्ल्व्यूं्र इति बीजवर्णाय जलं……..।
(इसी मंत्र से चंदनादि चढ़ावें।)
स्ववर्ग संयुत ‘खं’ बीजाक्षर, पिंडाक्षर से युत है।
साग्नी और सबिंदु सकल है, छट्ठे स्वर से युत है।।
श्रद्धा से इसकी पूजा कर, सब दुःख कष्ट मिटाऊँ।
मल पच्चीस दोष से विरहित, सम्यग्दर्शन पाऊँ।।८।।
ॐ ह्रीं शाकिनीग्रहभूतवेतालपिशाचादिक-उच्चाटननाशनादिसमर्थाय श ष स ह संयुताय र्ख्म्ल्व्यूं इति बीजवर्णाय जलं……..।
(इसी मंत्र से चंदनादि चढ़ावें।)
‘ह भ म र घ झ स ख’ बीजाक्षर हैं, सब सुख शांति प्रदाता।
पिंडवर्ण आदी से संयुत, मेटें सर्व असाता।।
जल चन्दन अक्षत आदिक ले, पूरण अर्घ बनाऊँ।
आत्यंतिक सुख शांति प्राप्त कर, पूरण निजपद पाऊँ।।९।।
ॐ ह्रीं समस्तपिंडाक्षरेभ्यो पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
‘ह भ म र घ झ स ख’ बीजाक्षर हैं, पिंडवर्ण आदिक युत।
द्वादशांग के बीजरूप ये, सर्वशक्ति से अन्वित।।
जल आदिक से पूजन करते, सब सुख संपत्ति पाऊँ।
लक्ष्मी वृद्धि समृद्धी पाकर, निजगुण संपति पाऊँ।।
इति पुष्पांजलिः।