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अयोध्या
अथ भावनेन्द्रादि पूजा
August 2, 2024
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jambudweep
अथ भावनेन्द्रादि पूजा
गीता छंद
भावन अधिप आदिक कहें, जो इन्द्रगण वे सब यहाँ।
आवें विराजें विघ्न नाशें, धर्मवत्सल से यहाँ।।
जो मुनि श्रुतावधि आदि ऋद्धि, से सहित उनको यहाँ।
मैं भक्ति से आह्वान कर, स्थापना भी कर रहा।।१।।
ॐ ह्रीं भावनेशादिश्रुतावध्यादियोगिनः अत्र अवतरत अवतरत, आह्वाननं।
ॐ ह्रीं भावनेशादिश्रुतावध्यादियोगिनः अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं भावनेशादिश्रुतावध्यादियोगिनः अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् सन्निधापनं।
अथ प्रत्येक पूजा
रोला छंद
निज वैभव परिवार, से शोभें भवनों में।
निज वाहन पर बैठ, आते जिन सदनों में।।
श्री जिनपति के भक्त, भवनवासि के पति जो।
इस विधान में आज, अर्घ समर्पित उनको।।१।।
ॐ ह्रीं भावनेंद्राय इदं अर्घं, पाद्यं जलं गंधं पुष्पं दीपं धूपं चरुं फलं बलिं स्वस्तिकं अक्षतं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।
व्यंतरसुर समुदाय, से सेवित हैं नित जो।
तीर्थेश्वर को नित्य, शिरसा नमन करें जो।।
ऐसे व्यंतर इन्द्र, अर्घ समर्पित उनको।
जिन भक्तों के सर्व, विघ्नों की शान्ति हो।।२।।
ॐ ह्रीं व्यंतरेन्द्राय इदं अर्घं, पाद्यं जलं गंधं पुष्पं दीपं धूपं चरुं फलं बलिं स्वस्तिकं अक्षतं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा।
श्री जिनेन्द्र की भक्ति, करने में तत्पर जो।
वाहन आदि विभूति, तथा कांति से युत जो।।
ज्योतिर्वासी इन्द्र, अर्घ समर्पण उनको।
यज्ञ विधी के सर्व, विघ्नसमूह नशे जो।।३।।
ॐ ह्रीं ज्योतिष्केन्द्राय इदं अर्घं……..।
कल्पवासिके इन्द्र, सभी सुरों से सेवित।
बहुत विभव से पूर्ण, अतिशय ऋद्धि समन्वित।।
जिन पूजन में भाग, लेने के अधिकारी।
उनको अर्घ समर्प्य, विधि हो पूर्ण हमारी।।४।।
ॐ ह्रीं कल्पेन्द्राय इदं अर्घं……।
वसंततिलका छंद
व्यवहार निश्चय सुसंयम पालते जो।
वैसी विशुद्धि युत उत्तम ध्यान धारें।।
ऐसे श्रुतावधि मुनीश्वर को जजूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।५।।
ॐ ह्रीं श्रुतावधिप्राप्तेभ्यो नमः जलं……।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय सुसंयम पालते जो।
वैसी विशुद्धि युत संतत ध्यान प्रेमी।।
देशावधी मुनि समूह उन्हें जजूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।६।।
ॐ ह्रीं देशावधिप्राप्तेभ्यो नमः जलं…….।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय सुसंयम पालते जो।
वैसी विशुद्धियुत ध्यान करें स्वयं का।।
परमावधी मुनि समूह उन्हें जजूूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।७।।
ॐ ह्रीं परमावधिप्राप्तेभ्यो नमः जलं……..।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय सुसंयम को धरें जो।
उत्तम विशुद्धि युत आतम ध्यान धरते।।
सर्वावधी मुनि समूह उन्हें भजूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।८।।
ॐ ह्रीं सर्वावधिप्राप्तेभ्यो नमः जलं……..।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय सुसंयम पालते जो।
वैसी विशुद्धियुत उत्तम ध्यान करते।।
वे बुद्धि ऋद्धिधर साधु उन्हें भजूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।९।।
ॐ ह्रीं बुद्धिऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः जलं…….।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय सुसंयम के धनी जो।
उत्तम विशुद्धियुत ध्यान करें स्वयं का।।
सर्वौषधी धरें ऋद्धि, उन्हें भजूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।१०।।
ॐ ह्रीं सर्वौषधिऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः जलं……।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय द्विसंयम को धरें जो।
उत्तम विशुद्धियुत ध्यान करें स्वयं का।।
धारें अनंतबल ऋद्धि उन्हें जजूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।११।।
ॐ ह्रीं अनंतबलऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः जलं…….।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय द्विसंयम पालते हैं।
उत्तम विशुद्धियुत धर्म व शुक्ल ध्यानी।।
जो तप्त ऋद्धिधर साधु उन्हें जजूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।१२।।
ॐ ह्रीं तप्तऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः जलं……।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय द्विसंयम पालते हैं।
उत्तम विशुद्धियुत स्वातम ध्यान धारें।।
रस ऋद्धि संयुत मुनी उनको जजूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।१३।।
ॐ ह्रीं रसऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः जलं…..।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय सुसंमय धारते हैं।
उत्तम विशुद्धियुत आतमध्यानलीन।।
जो विक्रियर्द्धि धर साधु उन्हें नमूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।१४।।
ॐ ह्रीं विक्रियाऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः जलं………।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय सुसंयम पालते हैं।
उत्तम विशुद्धियुत ध्यान करें स्वयं का।।
जो क्षेत्रऋद्धि धर साधु उन्हें नमूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।१५।।
ॐ ह्रीं क्षेत्रऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः जलं…….।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
व्यवहार निश्चय सुसंयम के धनी जो।
उत्तम विशुद्धि युत आतम तत्त्व ध्याते।।
अक्षीण ऋद्धि सुमहानस को जजूँ मैं।
स्वात्मैकजन्य समतारस को चखूँ मैं।।१६।।
ॐ ह्रीं अक्षीणमहानसऋद्धिप्राप्तेभ्यो नमः जलं……….।
(इसी मंत्र से चंदन आदि चढ़ावें।)
पूर्णार्घ्य-नरेन्द्र छंद
चतुर्निकायदेव के जितने, इंद्रवृंद माने हैं।
श्रुत अवधी आदिक ऋद्धीयुत, मुनिगण दुख हाने हैं।।
उन सबको मैं इस विधान में, पूरण अर्घ्य चढ़ाऊँ।
निज भक्तों को शिवसुख देवें, ऐसी आश लगाऊँ।।१७।।
ॐ ह्रीं भावनेशादिश्रुतावध्यादिमुनिभ्यः पूर्णार्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। पुष्पांजलिः।
भवनवासि व्यंतर ज्योतिष औ, वैमानिक के अधिपति।
श्रुतावधि देशावधि परमावधि सर्वावधि मुनिपति।।
बुद्धि ऋद्धि आदिक ऋद्धीधर, महामुनी हैं जितने।
मनुज लोक में शांति पुष्टि औ लक्ष्मी हमको देवें।।१८।।
इति इष्ट प्रार्थना।
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